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पत्नी ओ.सी.डी. (जुनूनी बाध्यकारी विकार) रोग की रोगी है, मुझे क्या करना चाहिए ?

   दिनेश जी ने सलाह चाही है – – –
 
मेरा विवाह पिछले वर्ष ही उत्तर प्रदेश में हुआ है, मैं ने पाया कि मेरी पत्नी ओ.सी.डी. (जुनूनी बाध्यकारी विकार) रोग की रोगी है। वह लगातार औषधियाँ लेती है और बहुत संवेदनशील है। विवाह के उपरांत वह केवल दो सप्ताह मेरे साथ रही उस के बाद उस ने नियमित चिकित्सा के लिए अपने मायके चली गई। मुझे अब जानकारी मिली है कि वह पिछले पाँच वर्ष से इस रोग की रोगी है। वह एक वर्ष से मेरे साथ नहीं रह रही है, और तलाक के लिए तैयार नहीं है। वह चार औषधियाँ प्रतिदिन ले रही है जिन की कीमत 100 रुपया प्रतिदिन है। अब वह मेरे साथ आ कर रहना चाहती है।  कृपया मुझे सलाह दें जिस से कि मैं सही नतीजे पर पहुँच सकूँ।
उत्तर – – – 
दिनेश जी,
प ने अपने विवरण में यह नहीं बताया है कि इस रोग के कारण आप की पत्नी का रोजमर्रा का व्यवहार कैसा है? शायद आप बता सकने की स्थिति में भी नहीं हैं, क्यों कि आप की पत्नी आप के साथ मात्र 15 दिन रही है। आप के साथ वह एक वर्ष से नहीं रह रही है, यदि इसे आप यह भी मान लें कि उस ने आप का परित्याग किया है तो भी एक वर्ष का परित्याग तलाक का आधार नहीं है। फिर उस दशा में तो बिलकुल नहीं है जब कि वह आप के साथ आ कर रहना चाहती है।
प की पत्नी ओसीडी रोग से ग्रस्त है। लेकिन ओसीडी रोग ऐसा नहीं कि जिसे सामान्य रूप से तलाक का आधार बनाया जा सके। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 (iii) के अनुसार ठीक नहीं हो सकने वाली विकृत-चित्तता ही तलाक का आधार हो सकती है। ओसीडी ऐसा रोग नहीं है। इस के अतिरिक्त मानसिक विकार इस प्रकार और इस गंभीरता का हो कि आप का उस के साथ यथोचित रीति से रहना संभव नहीं हो। आप के मामले में आप की पत्नी आप के साथ केवल 15 दिन रही है, ऐसी अवस्था में यह कहना कि आप का उस के साथ इस रोग के कारण यथोचित रीति से निवास कर सकना संभव नहीं है, उचित नहीं है और इसे न्यायालय में साबित नहीं किया जा सकेगा।
स तरह आप के पास आप की पत्नी से तलाक लेने का कोई आधार वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। ओसीडी रोग लक्षणानुसार अनेक प्रकार का होता है। इस रोग में किसी काम को करने की बार बार इच्छा होती है और रोगी उस काम को बार-बार करता है। आप की पत्नी के इस रोग के लक्षण क्या हैं, यह आपने नहीं बताया है। लेकिन बता सकने की स्थिति तो तभी उत्पन्न हो जब वह आप के साथ आ कर रहे। यह रोग ऐसा नहीं है कि एक व्यक्ति सामान्य जीवन नहीं जी सके। अनेक प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति इस रोग से ग्रसित रहे हैं लेकिन उन्हों ने अपना सामान्य जीवन ही नहीं जिया अपितु सामाजिक जीवन में अपने कामों से प्रसिद्धि भी पाई। इसलिए इस स्तर पर यह कहना कि आप अपनी पत्नी के साथ सहज जीवन नहीं बिता सकते संभव नहीं है। अभी तक किसी भारतीय न्यायालय ने इस रोग के आधार पर तलाक की अर्जी मंजूर नहीं की है। जितने भी प्रकरण प्रकाश में आए हैं उन में इस रोग के आधार पर प्रस्तुत की गयी तलाक की याचिकाएँ निरस्त ही की गई हैं।
प के मन में दो बातें हो सकती हैं। एक तो विवाह के पूर्व आप की पत्नी के रोग के बारे में आप को नहीं बताया गया, दूसरा यह कि चिकित्सा का व्यय तीन हजार रुपए प्रतिमाह के लगभग है जो हमेशा आप के लिए एक अतिरिक्त व्यय बना रहेगा। लेकिन आप की भावी पत्नी के बारे में आप को स्वयं भी पूरी जानकारी विवाह के पूर्व ही करनी चाहिए थी। निश्चित ही आप ने यह जानकारी नहीं की होगी कि आप की पत्नी कहीं किसी गंभीर रोग की रोगी तो नहीं है। इस तरह इस मामले में आप की भी गलती रही है। आप को इस बात को विस्मृत कर देना चाहिए कि आप के साथ धोखा हुआ है। दूसरी बात यह है कि यदि विवाह के उपरांत आप की पत्नी को यह रोग हो जाता तो आप को चिकित्सा तो करानी ही होती। या दुर्भाग्य से यह रोग आप को हो जाता तो भी यह खर्च आप को करना होता। इस कारण से ये दोनों बातें आप अपने मन से निकालें।

मारी राय में आप को अपनी पत्नी को अपने पास ला कर उस के साथ रहना चाहिए। उस से प्रेमपूर्वक व्यवहार करें। आप के अपने व्यवहार और आप की सहायता से भी आप की पत्नी के इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। फिर आप की पत्नी आप के साथ लगातार रहेगी तो इस बात का भी पता लगेगा कि आप का उस के साथ जीवन बिताना संभव है या नहीं। साथ रहने की इस अवधि में आप उसे इस रोग से मुक्त होने में सहायता करें। हो सकता है वह आप के व्यवहार और सहायता से इस रोग से मुक्ति प्राप्त कर ले और आप दोनों का संपूर्ण जीवन सुखमय गुजरे। मेरी भी यही कामना है।

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