पत्नी यदि पति के साथ न रहे तो भी क्या गुजारा भत्ता की अधिकारी है?
|श्री सुशील बाकलीवाल ने तीसरा खंबा की पोस्ट “तलाक चाहता हूँ, क्या करना चाहिए?” पर अपनी टिप्पणी में एक प्रश्न कर दिया। बाद में कुछ पाठकों ने कहा कि मैं इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दूँ।
संतान न हो और शादी के पहले दूसरे वर्ष में ही पत्नि साथ रहना बन्द करदे तो भी क्या गुजारा भत्ता पति पर आरोपित हो जाता है ?
उत्तर –
कोई भी विवाहित स्त्री यदि स्वयं अपने भरण-पोषण में असमर्थ हो तो वह विभिन्न कानूनों के अंतर्गत अपने लिए भरण पोषण के लिए न्यायालय में आवेदन या वाद प्रस्तुत कर सकती है। इन में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन, हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दीवानी वाद और 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान प्रमुख हैं। हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत दीवानी वाद लाने पर वादिनी को वाद के मूल्य पर न्यायशुल्क अदा करनी होती है, जिस के कारण इस का व्यवहार बहुत कम होता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन और 2005 का घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग सर्वाधिक हो रहा है। इस में भी धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता का उपाय सब से अधिक और बहुत लंबे समय से उपयोग में लिया जा रहा है। हम आज यहाँ इस के प्रावधानों का उल्लेख करेंगे।
धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता निम्न प्रकार है –
125. पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश –
(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति-
(ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क सन्तान का चाहे वह विवाहित हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
(ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिस ने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
अपने माता-पिता का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भरण पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इन्कार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इन्कार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संन्तान पिता या माता के भरण-पोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठाक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिस को संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे;
परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (ख) में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्देश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दे जब तक वह अवयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट
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14 Comments
8 mahina se nahi aar kahti hai ki bacha hone par augi bacha ho gya nhi aae mughe dahej ka dhamki deti hai kya kare
शादी को 3 साल हो चुके है 2 साल पहले वो घर छोड़कर चली गयी थी
3 माहिने बाद मैं उसे लेकर आया था उसको लाने के दौरान
उसके घर वालो ने मेरा बहुत अपमान हुआ था। इसीलिए मैं अब उनके गगर नहीं जाता । उसको जाने डेटअ हूँ वो ई अपने घर आती जाती है जिस दिन वो मैं उसे लेकर आया था उस दिन के बाद से मैं अलग रहने लगा हूँ। उसने स्पस्ट नहीं कहा पर मुझे लगता है की वो मुझे अपने माँ और भाई से अलग करना चाहती है। वो किसी से ढंग से बात नहीं करती है और जंहा मैं रहता हूँ वंहा से हर शनिवार को घर जाना होता है पर उसके मन में जाना नहीं होता ।मैं घर का बड़ा हूँ।
साडी जवाबदारी मेरी है उसको लगता है की मैं कोई जवाबदारी का निर्वहन न करू ना अपनी माँ की सेवा करू।
मैं क्या करू आप बताये मैंने उसको समझने की कोसिस की है पर अब मैं उसे समझने की कोसिस भी नहीं करता । वो मुझे कभी तलाक़ से अपना हक़ लेने की धमकी भी दे चुकी है।
भूल सुधार:- श्रीमान जी, आपने बहुत अच्छी जानकारी विस्तार से दी, मुझे लगता है कि-श्री सुशील बाकलीवाल जी के प्रश्न और मेरे बड़े भाई के किरायेदार के लड़के की पत्नी के केस का आपकी इस पोस्ट के अंतिम बिंदु (4-5) में उत्तर है. जोकि सही भी है. उपरोक्त कानून की परिभाषा कठिन शब्दावली में होने के कारण कम पढ़े-लिखे व्यक्ति को जल्दी समझ में नहीं आती हैं. अगर संभव हो तो आवश्कता के अनुसार भाषा को सरल कर दिया करें. उपरोक्त धारा पर जानकारी देने का निवेदन स्वीकार करने के लिए आपका हार्दिक धन्यबाद!
श्रीमान जी, आपने बहुत अच्छी जानकारी विस्तार से दी, मुझे लगता है कि-श्री सुशील बाकलीवाल जी के प्रश्न और मेरे बड़े भाई के किरायेदार के लड़के की पत्नी के केस का आपकी इस पोस्ट के अंतिम बिंदु (4-5) में उत्तर है. जोकि सही भी है. उपरोक्त कानून की परिभाषा कठिन शब्दावली में होने के कारण कम पढ़े-लिखे व्यक्ति जल्दी समझ में नहीं आती हैं. अगर संभव हो तो आवश्कता के अनुसार भाषा को सरल कर दिया करें. उपरोक्त धारा जानकारी देने का निवेदन स्वीकार करने के लिए आपका हार्दिक धन्यबाद!
125. पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश-(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन भरण पोषण या अन्तरिम भरण पोषण के भत्ते और कार्यवाहियों के खर्चे जैसी भी स्थिति हो, भत्ता प्राप्त करने की हकदार न होगी, यदि वह जारता की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इन्कार करती है अथवा यदि वे पारस्परिक सहमति से पृथक रह रहे हैं। (5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिस के पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इन्कार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे
बहुत अच्छी जानकारी, धन्यवाद
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
विस्तृत जानकारी के लिये आपको धन्यवाद.
बहुत ही महत्वपूर्ण और काम की जानकारी।
आभार।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
बहुत विस्तृत जानकारी दी है आपने सरल भाषा में … शुक्रिया ..
बहुत काम की और उपयोगी जानकारी, आभार.
रामराम.
लगता है आप हमे वकालत पढा कर ही दम लेंगे। अच्छी जानकारी धन्यवाद।
इस विस्तृत जानकारी के लिये आपको धन्यवाद.
अच्छी जानकारी.
उत्तम जानकारी…