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पिछले दरवाजे से की गई नियुक्ति क्या है?

समस्या-

सागर के डाक्टर हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय में 2008 में संविदा अध्यापक रखे गए। सात सदस्यों की समिति ने साक्षात्कार लिया। इस का विज्ञापन रोजगार समाचार मध्यप्रदेश व दैनिक भास्कर मध्यप्रदेश में निकला। तीन साल बाद मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की पीठ ने इन की नियुक्तियों को पिछले दरवाजे से की गई नियुक्ति मान कर निरस्त कर दिया। 110 लोग पिछले दो वर्ष से बेरोजगार हैं। क्या उक्त निर्णय सही है?

-राजा खान, सागर, मध्यप्रदेश

समाधान-
ब आप प्रश्न में किसी उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख कर रहे हों तो उस निर्णय की तिथि और प्रकरण का शीर्षक अवश्य देना चाहिए। जिस से उस निर्णय को पढ़ कर बताया जा सके कि आगे क्या किया जा सकता है। आप ने मामले के बहुत ही संक्षिप्त तथ्य  दिए हैं जिस से पूरा मामला स्पष्ट नहीं हो रहा है। फिर भी आपने जो तथ्य दिए हैं उस से लगता है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय उचित है।
प को समझना चाहिए कि पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियाँ कौन सी हैं। प्रत्येक सार्वजनिक संस्थान जिस की स्थापना संविधान या किसी अन्य कानून के अंतर्गत हुई है और जिस की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से सार्वजनिक धन से चलती है उस का देश की पूरी जनता के प्रति दायित्व होता है। ऐसे संस्थानों पर यह बाध्यता है कि वे जब भी किसी व्यक्ति को स्थाई पद पर नियुक्ति प्रदान करें तब वे संविधान और उस के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार प्रक्रिया अपना कर करें। यदि ये संस्थान किसी भी स्थाई पद पर किसी व्यक्ति को इन संवैधानिक नियमों को ताक पर रख कर नियुक्त करते हैं तो यह इस देश के बहुत से योग्य लोगों के साथ अन्याय होता है। इसी कारण से ऐसी नियुक्तियों को पिछले दरवाजे से की गई नियुक्ति कहा गया है और इन्हें अवैधानिक माना गया है। इस का आधार यह है कि राज्य किसी के साथ भी गैरबराबरी का व्यवहार नहीं कर सकता तथा गैर बराबरी को बराबरी के समान मान्यता प्रदान नहीं कर सकता।
प के मामले में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि आप के मामले में जो विज्ञापन नियुक्तियों के लिए दिए गए थे वे सभी संविदा पर आवश्यक व आकस्मिक कार्यों के लिए नियुक्तियों के लिए थे। इस तरह जो लोग केवल संविदा पर अस्थाई और नियतकालीन नियुक्तियों के लिए तैयार थे केवल उन्हीं लोगों ने आवेदन प्रस्तुत किए और चयन प्रक्रिया के द्वारा उन्हीं लोगों में से कुछ को संविदा पर नियुक्तियाँ प्रदान की गईं। अब तीन वर्ष तक कार्य करने के उपरान्त इसी आधार पर आप स्थाई नियुक्तियाँ चाहते हैं क्यों कि विभाग या विश्वविद्यालय में स्थाई पद रिक्त हैं और उन पर नियुक्तियाँ की जानी हैं।  लेकिन वे लोग जो केवल स्थाई नियुक्तियाँ चाहते थे और संविदा पर कार्य करने को तैयार नहीं थे उन्हों ने तो उस समय कोई आवेदन नहीं किया था, यदि आप को ये नियुक्तियाँ प्रदान कर दी जाती हैं तो वे तो इस अवसर से वंचित हो ही जाएंगे। फिर अब जब स्थाई नियुक्तियाँ की जा रही हैं तो उन्हें केवल उन्हीं लोगों के लिए क्यों सुरक्षित किया जाए जिन्हें संविदा के आधार पर पहले से नियुक्ति दी हुई है। स्थाई नियुक्ति के लिए जो नियम निर्धारित हैं और जो लोग उस नियुक्ति के लिए अर्हता रखते हैं उन्हें इस अवसर से क्यों वंचित रखा जाए। इस तरह यदि आप को संविदा नियुक्ति को आधार मान कर स्थाई नियोजन प्रदान किया जाता है तो बहुत से योग्य व्यक्तियों का नियुक्ति के लिए आवेदन करने और चयन प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर समाप्त हो जाएगा। इसी कारण से ये नियुक्तियाँ पिछले दरवाजे से की गई नियुक्तियाँ कहलाती हैं।
ब आप कह सकते हैं कि आप के तीन वर्ष बेकार हो गए। आप चाहते तो इस अवधि में अन्य कोई स्थाई नियोजन प्राप्त कर सकते थे। लेकिन उस के लिए आप को रोका किसने था? आप को यदि कोई स्थाई नियोजन मिल रहा होता तो आप अनुबंध का यह नियोजन त्याग कर वह नियोजन अपना सकते थे। फिर आप को पहले ही बता दिया गया था कि आप का नियोजन अस्थाई है और केवल नियत कालावधि के लिए है। किसी ने आप को स्थाई नियोजन प्रदान करने की गारन्टी नहीं दी थी। इस कारण से आप को यदि नियोजन से हटा दिया गया है तो भी आप के साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। फिर भी यदि आप स्थाई नियोजन चाहते हैं तो आप को भी खुली भरती का सामना करना पड़ेगा। हाँ आप के पक्ष में एक बात अवश्य जा सकती है कि आप को तीन वर्ष का अनुभव है और वह आप की योग्यता का धनात्मक बिंदु है। खुली भरती में यह बिन्दु आप के पक्ष में रहेगा।
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