पिता द्वारा धन देने के बाद भी बेटियों ने पैतृक संपत्ति के विभाजन का दावा किया, क्या करें?
|मेरे पिता जी के नाम से 5 एकड़ पैतृक सम्पति है, उनकी मुत्यु हो चुकी है। हम 5 भाई बहन हैं, पिता जी ने जीवित समय में बहनों को उनके हिस्से की भूमि के बदले पैसा दे दिया था। लेकिन उनकी मुत्यु के बाद बहनो ने मुकदमा कर दिया है और हिस्से माँग रहे हैं। हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है कि हमने पैसा दिया है।
हम क्या करें?
प्रशांत भाई, आप की समस्या कानूनी बिलकुल नहीं है। कोई भी संपत्ति या उस में निहीत अधिकार बिना पंजीकृत दस्तावेज के स्थानांतरित नहीं होता है। पैतृक संपत्ति में कोई भी अधिकार बालक/बालिका के गर्भ में आते ही स्थापित हो जाता है। पैतृक संपत्ति अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की साझा संपत्ति होती है। उस में बंटवारे के द्वारा ही हिस्से अलग किए जा सकते हैं। इस के अलावा केवल एक मार्ग और है। .यदि अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार का कोई सदस्य साझा संपत्ति में अपना भाग छोड़ता है तो उसे एक विमुक्ति विलेख (Release Deed) निष्पादित कर उसे उप पंजीयक के कार्यालय में पंजीकृत करवाना चाहिए। इस के अभाव में तो यही माना जाएगा कि संपत्ति में अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार के सभी सदस्यों का हित मौजूद है। यदि कोई धनराशि आप के पिता जी ने अपनी पुत्रियों को दी है, तो यह भी तो हो सकता है कि उन्हों ने यह राशि अपनी प्रसन्नता से पुत्रियों को दी हो। यह भी होता है कि कोई व्यक्ति जब अपने पुत्रों के अध्ययन और उन का घर बसाने के लिए खर्च करता है तो उस की समानता के लिए अपनी बेटियों को भी कुछ धन दे देता है। बेटियों के ब्याह के बाद जब तक अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति का विभाजन नहीं होता है तब तक उस का कोई लाभ बेटियों को नहीं मिलता है। किसी भी विवाद के समय इन तमाम सामाजिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
अब तो एक ही मार्ग शेष है कि आप अपनी बहनों को मनाइए या उन्हें उन के हिस्से के बदले कुछ दे कर भूमि में उन के हिस्से का विमुक्ति विलेख उन से निष्पादित करवा कर पंजीकृत करवा लीजिए। अन्यथा स्थिति में न्यायालय तो संपत्ति का विभाजन सभी भागीदारों के मध्य उन के कानूनी हिस्से के अनुसार कर देगा। अधिक उचित यही है कि आपस में मिल बैठकर समझौते के माध्यम से समस्या का हल निकाला जाए।
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@ मसिजीवी जी, नमस्कार, जी यह वो आत्मविशवास है जो मुझे अपने संस्कारो मे मिला है, आप की जान कारी के लिये बता दुं, मेने दहेज मै भी एक पेसा नही लिया, क्योकि लालाच नाम की चीज मेने नही पाली, फ़िर बीबी को क्या जरुरत भाईयो के बसे बसये घर मै जा कर उथल पुथल मचाने की, नारी यह तभी करती है जब उस का पति उसे भडकाये.
ओर यह बीबी मेरे लिये कोई प्राणी नाम की चीज नही, शायद आप जेसे लोग के लिये हो सकती है? हमे एक दुसरे पर इतना विशवास है कि ना तो मेने कभी अपनी बीबी का ही विश्वास तोडा है न हमारी बीबी ने ही,
आप को बहुत बहुत शु्भकामनये
आपका परामर्श तो सदैव की तरह ही सराहनीय है। किन्तु इस प्रसंग से कम होती जा रही पारिवारिकता तीव्रता से उभर कर सामने आती है।
आदरणीय सर, जनाब प्रशांत मिश्रा जी को दी गई आपकी सलाह वाजिब ही है और यही उन्हें करना भी चाहिए. अब तो सन १९५६ निकल चुका और मज़ा तो तब आएगा जब विधि निर्माताओं की यह भूल सिर्फ़ ज़रोज़मीन ही नहीं, परिवारों को भी क़तरा क़तरा कर डालेगी. एक चक का सिद्धांत मटियामेट हो जाएगा. खै़र तब हम न होंगे ।
कानूनी सलाह इतनी सहज भाषा
में देकर आप सचमुच समाज की
बड़ी सेवा कर रहे है.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
यही बजह है कि बेटियों को शादी में उपहार के तौर पर कुछ पैसे ,गहने सामान दिए जाते है ,जो स्त्री धन कहलाता है प्रचीन काल में इसे दायज कहते थे -दहेज ।पर जब अपने सबसे प्रिय रिश्ते में संपंति आ जाए तो स्नेह नहीं रह जाता -जहाँ मेरी ननद ने कभी नाराज हो कर ऐसी चर्चा की थी और मेरी सासू माँ के कान तक खबर गई तो उन्होनें यही कहा वहाँ भी तो बहन है पहले उसे दें बात आई गई खत्म हो गई। सही यही है जब ऐसी परिस्थितआए तो आपस में सलाह कर ही निपटा लें ।कानून के हवाले से मार्मिक पोस्ट.
आप अपनी बहनों को मनाइए या उन्हें उन के हिस्से के बदले कुछ दे कर भूमि में उन के हिस्से का विमुक्ति विलेख उन से निष्पादित करवा कर पंजीकृत करवा लीजिए।
सलाह तब तक तो ठीक ही है जब तक हम ये मानें कि ‘कुछ देकर’ का मतलब उनके हिस्से की जमीन की वाजिब कीमत है।
@राज भाटिया- ‘मै अपनी बीबी को यह सब नही करने दुगां’
गजब का आत्मविश्वास है… ये बीबी नाम के प्राणी की अपनी कोई भिन्न राय हुई तब तो गई बेचारीं। शुभाकांक्षाएं
वाह क्या बात है, लेकिन मै अपनी बीबी को यह सब नही करने दुगां, क्योकि जेसे मेने अपना घर बनाया, वेसे ही सभी लोग अपना घर बनाते है, फ़िर अचानक कई सालो के बाद बहिन आये ओर ….. आज सब रिश्ते नाते सिर्फ़ पेसे के है, भाड मै जाये भाई भाड मै जाये बहिन.
धन्यवाद , आप ने सही राय दी
पिता की मृत्यु के बाद मिलकत मेँ हिस्सा माँगना और उससे जुडी हर बात बहुत इमोशनल हो जातीँ हैँ
अगर, बेटीयोँ को बेटोँ की तरह हिस्सा मिलने लगे तब समाज मेँ बहुत बडा परिवर्तन आयेगा
-लावण्या
बढ़िया सुझाव है। आमतौर पर परिवार यही मानकर चलते हें कि बेटियाँ अपना हिस्सा नहं माँगेंगी। जब वे माँगती हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं या तिलमिला जाते हैं। वैसे यदि जमीन के बदले धन दिया गया था तब भी कहीं लिखित यही सोचकर नहीं लिया गया होगा कि वे अपना हिस्सा नहीं माँगेंगी।
घुघूती बासूती
आपने सही सलाह दी है इन्हे आपसी सुझभुझ से ही मामला सलटा लेना चाहिए !
प्रकरण में आपके द्वारा सम्बंधित को बढ़िया सलाह दी है कोर्ट के माध्यम से न कर कि आपसी समझ बूझ से समझौता कर प्रकरण का निराकरण कर ले . उचित सलाह सम्बंधित को देने के लिए धन्यवाद. यदि प्रकरणों का निराकरण आपसी समझबूझ से कर लिया जाए तो आदमी को कोर्ट का मुंह न देखना पड़े.
लड़कियों का अधिकार तो बनता ही है, पैत्रिक सम्पत्ति पर। पता नहीं पिता जीते जी अपनी अचल सम्पत्ति का बटवारा कर गये होते लड़कों, लड़कियों के सामने तो शायद यह झंझट न होता।