पुलिसवालों के अपराध के विरुद्ध सीधे न्यायालय में शिकायत और सबूत पेश कर मुकदमा दर्ज कराएँ
| नासिक से मनीष अग्रवाल ने पूछा है –
तीन वर्ष पहले इंटरनेट पर जबलपुर के एक पुलिस वाले आशुतोष अवस्थी से दोस्ती हुई. कुछ समय बाद उस ने कहा कि उस की बहन प्रियंका अवस्थी बंगलोर में पढ़ाई करने जाएगी, हम गरीब आदमी हैं आप उस की पढ़ाई के लिए मदद कर दीजिए। मैं दो साल तक उस के खाते में धन डालता रहा। उस के बाद मुझे पता लगा कि इंटरनेट पर दोनों बहन भाई मिल कर लोगों को फँसा रहे हैं। मैं ने नासिक में साइबर क्राइम में रिपोर्ट करा दी। इस बीच आशुतोष बंगलौर गया और वहाँ केजीबी नगर पुलिस स्टेशन में मेरे विरुद्ध झूठी रिपोर्ट लिखवा कर वहाँ के तीन पुलिस वालों सब इंसपेक्टर मोनेश्वर, अभयंकर और रेड्डी को ले कर 26.05.2011 को नासिक आया। मुझे जबरन पुलिस वाले उठा कर बंगलौर ले गए और जबरदस्ती हवालात में बंद कर दिया गया दूसरे दिन आशुतोष अवस्थी वहाँ पहुँचा और मेरे साथ मारपीट कर, डरा-धमका कर लिखवा लिया कि मैं ने प्रियंका अवस्थी के खाते में जो धन डाला था वह मुझे मिल गए हैं मैं इन लोगों को फोन कर के कभी तंग नहीं करूंगा और नासिक में दी हुई सारी शिकायतें वापस ले रहा हूँ। वहाँ अन्वेषण के लिए मेरा लेपटॉप और पचास हजार रुपए जो मैं ले कर गया था वे भी रख लिए। ऐसा क्यों किया गया मुझे पता नहीं। बाद में मुझे छोड़ दिया गया। वापस आ कर मैं ने नासिक में रिपोर्ट दर्ज करवानी चाही तो मुझे भगा दिया गया। पहले से जो रिपोर्ट दर्ज की हुई थी उस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। मैं ने बंगलौर मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र के गृहमंत्री और देश के बड़े नेताओं को भी मेल किए पर किसी ने जवाब नहीं दिया। मेरे घर वाले बहुत डरे हुए हैं। क्या कानून की मदद ले कर मैं कुछ कर सकता हूँ? पुलिस वाले ही चोर बन जाएंगे तो जनता किस के पास जाएगी?
उत्तर-
मनीष जी,
आप ने मात्र इंटरनेट की पहचान के आधार पर मदद करने का निश्चय कर और मदद कर के गंभीर भूल की है। मदद करने के पहले वास्तविकता की जाँच नहीं की। दुनिया में, बहुत लोग हैं जिन्हें मदद की आवश्यकता होती है और आप जैसे भी बहुत लोग हैं जो मदद करना चाहते हैं। लेकिन मदद हमेशा सुपात्र की ही करनी चाहिए। कुपात्र को की गई मदद जी का जंजाल बन सकती है, यह आप के उदाहरण से स्पष्ट है। पुलिस का जो चरित्र है उसे सब जानते हैं और भारत में न्याय की स्थिति से भी लोग अनजान नहीं हैं। ऐसे में इन सब से जितना बच कर रहा जाए उतना ठीक है। आप को किसी की मदद करनी ही थी तो आप नासिक में ही ऐसे लोग तलाश सकते थे जिन्हें मदद की आवश्यकता है, या फिर किसी ईमानदार संगठन को यह मदद दे सकते थे। खैर!
आप के बताए गए तथ्य पूरी तरह सही हैं तो वाकई आप के साथ बहुत बुरा हुआ है। अब आप चाहते हैं कि कानून आप की मदद करे, तो आप के पास सीधे न्यायालय के पास जाने का मार्ग खुला है। आप को अपने घर से उठाया गया था। आप नासिक में आप के क्षेत्र के पुलिस थाने का क्षेत्राधिकार जिस मजिस्ट्रेट की अदालत को है वहाँ अपनी शिकायत प्रस्तुत करें। आप के साथ जो भी घटनाएँ हुई हैं मजिस्ट्रेट के न्यायालय में अपने स्वयं के बयान कराएँ और जो भी साक्षी उपलब्ध हों उन के बयान कराएँ। आप के द्वारा
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9 Comments
महोदय क्या हमारे द्वारा उच्च अधिकारियों को किये गए ईमेल देखे जाते है ? क्या उन पर कोई कार्यवाही होती है ?
इस प्रकार के साईबर क्राईम के मामले लगातार बढ़ रहे है |
माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रेम हजारा बनाम सतिन्दर सिंह ग्रेवाल ( दिल्ली १९८५ (२) आर सी आर ( क्रिमिनल ) २५६) में स्पष्ट किया है कि जब पुलिस अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की जाती है तो मजिस्ट्रेट को स्वयं जांच करनी चाहिए और मामला अनुसन्धान हेतु पुलिस अधिकारी को नहीं दिया जाना चाहिए चाहे पुलिस अधिकारी उससे वरिष्ठ ही क्यों न हो | इस द्दृष्टिकोण के पीछे विवेक स्पष्ट है | शिकायतकर्ता के दिमाग में यह अंदेशा बना रहेगा कि जब एक पुलिस अधिकारी उसके मामले में जांच करेगा तो वह निष्पक्ष नहीं रह सकता और जांच के लिए निष्पक्ष दिमाग का प्रयोग नहीं कर सकेगा |अतः जाँच करने वाले मंच की निष्पक्षता और अरुचि के विषय में शिकायतकर्ता के वर्तमान प्रकरण जैसे मामले में अंदेशों को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि शिकायत या जाँच को किसी अन्य पुलिस अधिकारी को नहीं सौंपी जाये |
अजब-गजब वाकये है ,आपनें अच्छी कानूनी सलाह दी,आभार.
हवालात में रखा, हवा और लात खिलाईं और छोड़ दिया।
समझो जान बच गई, कहीं कुछ और हो जाता तो …?
शुक्रिया !
समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape
सदा की तरह एक उपयोगी जानकारी मिली, शुभकामनाएं.
रामराम.
गुरुदेव जी, बहुत अच्छी सलाह है आपकी. लेकिन इस क़ानूनी प्रक्रिया में जहाँ पुलिस अधिकारी दोषी हो वहाँ जांच की निष्पक्षता पर एक प्रश्न चिन्ह है.
अच्छा प्रयास।
लोगों की जानकारी बढाने वाला है ये प्रयास।
पर कितने लोग इसकी हिम्मत जुटा पाएंगे। क्यों जल में रहकर मगर से वैर करना कौन चाहेगा। वैसे जानकारी उपयोगी है और हिम्मत वालों के काम आएगी।
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जीवन का सूत्र…
NO French Kissing Please!