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लोक अदालत से निर्णय होने पर पूरी कोर्ट-फीस वापस होगी

समस्या-

अनिल कुमार साहू ने मौगंज, जिला रीवा, मध्य प्रदेश से पूछा है-

हमारा दीवानी वाद का निस्तारण लोक अदालत के माध्यम से हो गया और पूरी कोर्ट फीस वापसी का ऑर्डर कोर्ट से हो गया है। समस्या ये है कि ऐसा बताया जा रहा कि शासन द्वारा कोर्ट फीस में 10 प्रतिशत की कटौती की जाएगी और कुछ रिश्वत भी स्टाम्प कलेक्टर के यहाँ देना होगा। लोक अदालत से वाद निस्तारण के संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2 अप्रैल 2019 को आदेश एक रिट याचिका में दिया कि लोक अदालत मामले में पूरी कोर्ट फीस वापस होगी। क्या यह आदेश मध्य प्रदेश के लिए भी लागू होगा। हमारे वकील द्वारा जानकारी दी गयी कि बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश मध्य प्रदेश में वैध नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी गाइडलाइन मे कहा है कि कोर्ट फीस 10 दिनों के भीतर वापस हो। कोर्ट फीस वादी के खाते में जाएगी जिसके नाम से आदेश हुया या उनके वकील के खाते में जिन्होने हमारे लिए स्टाम्प खरीदा था?

समाधान-

किसी भी वाद का निस्तारण लोक अदालत के माध्यम से होने पर पूरी कोर्ट फीस वापसी का प्रावधान दी लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज एक्ट,1987 की धारा 21 उपधारा (1) में किया गया है। इसके अनुसार लोक अदालत के माध्यम से किसी वाद का निस्तारण होने पर कोर्ट फीस की वापसी कोर्ट फीस एक्ट 1870 के अनुसार होगी।

कोर्ट फीस एक्ट 1870 की धारा-17 के अनुसार भी इस तरह के मामलों में संपूर्ण कोर्ट फीस की वापसी का ही प्रावधान किया गया है।

आपके मामले में इन्हीं प्रावधानों के अन्तर्गत न्यायालय ने पूरी कोर्ट फीस वापसी का आदेश दिया है। अब इस आदेश का उलटा जाना संभव नहीं है। मुम्बई उच्च न्यायालय का आदेश कानून के अनुसार सही है इस कारण वह मध्यप्रदेश में भी प्रभावी होगी। तो पूरी ही कोर्ट फीस वापस होगी। क्योंकि न्यायलय के आदेश को उलटा जाना संभव नहीं है। इस तरह के मामलों में मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने भी अनेक मामलों में पूरी कोर्ट फीस बिना किसी कटौती के वापस लौटाने के आदेश दिए हैं। ऐसी स्थिति में फीस वापसी में किसी तरह की कटौती संभव नहीं है। जहाँ तक रिश्वत देने की बात है तो आपको पता होना चाहिे कि रिश्वत देना और लेना दोनोें ही अपराध हैं।

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