पोटा या नया कानून?
|मुम्बई में आतंकवाद के ताजा हमले के बाद फिर से पोटा जैसे कानून की जरूरत की बात कर के राजनीति को चमकाने का मौका कोई खोना नहीं चाहेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में पोटा को हटाया जाना एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर उभरा था और नयी सरकार ने अपने वादे के अनुसार पोटा को कानूनों की पुस्तक से विदा कर दिया। वास्तव में पोटा एक निरंकुश कानून था जिस के जरिए किसी भी व्यक्ति के जनतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के मूल अधिकार को छीना जा सकता था। इस की अनेक शिकायतें पिछली पोटा समर्थक सरकार को मिली थी और उन्हें पोटा के दुरुपयोग की जाँच के लिए मजबूर होना पड़ा था।
लेकिन मौजूदा आतंकवादी गतिविधियाँ पोटा कानून के न होने के कारण नहीं हैं। उन का कारण देश में की जा रही धर्म, जाति और क्षेत्रवाद की राजनीति है जिसने देश के नागरिक के एक भारतीय होने के अहसास को समाप्त प्रायः कर दिया है और किसी धर्म, जाति और क्षेत्र का होने के अहसास को बढ़ावा दिया है।
पोटा कानून पर बहुत बहस हो चुकी है और उसे जनतांत्रिक पद्धति के विरुद्ध पाया है। पोटा में जिस तरह के दमन के औजार थे वैसे तो अमरीका के आंतकविरोधी कानूनों में भी नहीं हैं और कोई भी जनतांत्रिक देश उस तरह के प्रावधानों को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। क्या हम आतंकवाद के उकसावे पर अपने जनतांत्रिक और नागरिक अधिकारों की बलि चढ़ा सकते हैं?
मौजूदा कानूनों में कोई कमी नहीं है, वे आतंकवाद का मुकाबला करने और उस से देश को बचाने में समर्थ हैं। जरूरत तो इस बात की है कि हमारा खुफिया सूचना तंत्र मजबूत हो। हमारी जाँच ऐजेंसियाँ पुलिसिया प्रणाली से मुक्त हों। एक प्रभावी अन्वेषण तंत्र, खुफिया सूचना तंत्र, और एक मजबूत निगरानी तंत्र मिल कर आतंकवाद का मुकाबला कर सकते हैं।
अंत में मेरा एक प्रश्न है कि क्या हमें देश के विरुद्ध युद्ध करने वालों से निपटने के लिए भी क्या किसी खास कानून की आवश्यकता है? यदि नहीं तो आतंकवाद से निपटने के लिए क्यों जरूरी है। हम क्या यह भावना विकसित नहीं कर सकते कि आतंकवाद न केवल देश के विरुद्ध अपितु संपूर्ण मानवता के विरुद्ध एक युद्ध है। हमें इन से उसी तरह निपटना होगा। हमारे राजनेता किसी भी सरकार के विरुद्ध बोलने और जनता का मनोबल तोड़ने के स्थान पर लोगों के शिक्षित करें कि आतंकवाद देश के विरुद्ध युद्ध है और हर देशवासी को उस के विरुद्ध उठ खड़ा होना चाहिए। हर देशवासी सतर्क होगा तो आतंकवाद को भारत की ओर देखने के पहले दस बार सोचना होगा।
आतंकवाद के विरुद्ध विजय के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं। केवल एक संकल्प, एक देशव्यापी संकल्प की जरूरत है।
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मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूं..देश के राजनेता तो सिर्फ अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना चाहते है, कानून बने या न बने उसकी ज़रूरत है या नही, उन्हे उससे मतलब नही, उन्हें तो सिर्फ एक मुद्दा चाहिए जिस पर वो संसद में हंगामा कर सके और बता सके कि मौजूदा सरकार कितनी नाकारा हैं बस यही होता रहेगा..ज़रूरत है तो पहले अपने ही घर में पनपे इस तरह के आतंकवाद को ख़त्म करने की फिर बाहर के किसी भी आतंकवादी की तो हिम्मत ही नहीं हो सकती हमारे घर पर आंख उठाने की ….जय हिन्द..।
कानून बनाने की जगह आतंकवादियो के ख़िलाफ़ सार्थक कार्यवाही की जाना चाहिए और कार्ययोजना को असली जामा पहिनाना जरुरी है . नेताओ के भरोसे इस मुद्दे को छोडा नही जाना चाहिए और राष्ट्रिय सहमति ली जाना चाहिए .
पोटा का मुद्दा तो रियेक्शन का है। जरूरत तो एक्शन की है।
आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत
दिखावा करने की जगह काम करना जरूरी है
यहाँ ना पुराना कानून काम करेगा और ना नया कानून काम करेगा !ये क्राईसेस निपट जाने दीजिये ! फ़िर कोई भी बात नही करेगा ! अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग ! चंद लोग आपस में माथा फोड़ कर क्या कर लेंगे ! बहस ही बेमानी है ! बिल्कुल दुखद और लाचार ! सबके अपने स्वार्थ हैं ! सिर्फ़ जिनके लोग इस में शहीद होगये उनके अलावा इस घटना को कोई नही याद रखेगा ! हो सकता है कोई वर्षी या छमाही जैसा कार्यक्रम हो जाए कभी कभार ! लच्चर नेता, लच्चर बातें और कुछ नही ! सब ऐसे ही चलेगा ! जनता को तो यों भी मरना है और मर ही रही है ! नेता आबाद रहे ! और क्या चाहिए ? एक दो दिन और रुक जाईये फ़िर देखिये नेताओं की बयानबाजी ! इब रामराम !
“आतंकवाद के विरुद्ध विजय के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं। केवल एक संकल्प, एक देशव्यापी संकल्प की जरूरत है।”
अफसोस यह है कि जो देश का संचालन करते हैं उन में से कई लोगों को यह तथ्य नहीं मालूम. वे सोचते हैं कि एक नया कानून बनाते ही अमन चैन आ जाता है.
अब तो चुनावे के लिये खडे होने से पहले कम से कम स्नातक स्तर की पढाई के लिये मांग करनी होगी.
जब हर नौकरी के लिये पढाई जरूरी है तो राजकाज के लिये तो यह और भी अधिक जरूरी है.
सस्नेह — शास्त्री
दिनेशजी,
ऐसे नाजुक वक्त में आपने वास्तविकता को याद दिलाते हुये इस पोस्ट को लिखा, इसकी जितनी सराहना करूँ कम है । एक लोकतांत्रिक देश में जहाँ पहले ही पुलिसिया अत्याचार के आगे मानवाधिकारों का हनन आम बात है, ऐसे में पोटा की प्रासंगिकता की वकालत जायज नहीं है वो भी तब जब इसकी इफ़ेक्टिवनैस (हिन्दी याद नहीं आ रही) पर घोर संदेह है ।
किसी ब्लाग पर पढा कि पीओके पर आक्रमण कर दो । उससे भी क्या होगा?
आतंकवाद से निपटना कन्वेन्शनल वारफ़ेयर के बस में नहीं है । मेरी मन्द बुद्धि तो कहती है कि अगर धन के चक्र को जकड लिया जाये तो बहुत से सुराग मिल सकते हैं । मुम्बई जैसी घटना को अंजाम देने के लिये कितना धन लगा होगा ।
प्रधानमंत्रीजी के भाषण को केवल पढा ही है लेकिन जिस प्रकार की ऐजेन्सी की उन्होने वकालत की अगर उसे ईमानदारी से बनाया जाये तो वो काफ़ी प्रभावकारी हो सकता है ।
कुछ नही वकील साहब हमारे नेता खा-खा के मोटा गये है। एक बार हम-आप सडक पर उतरकर लाक्खो की संख्या मे दिल्ली की ओर कूच करे और नेताओ को घेरे तभी वे पाकिस्तान के विरुद्ध कुछ करेंगे।
इतने सारे ब्लागो पर लेखो को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि हम भी नेताओ की तरह ही बात कर रहे है, सिर्फ बात। कोई ब्लागर कविता की रोटी सेक रहा है तो कोई पोटा वाले कानून की। तवा जो गरम है। क्या मै गलत कह रहा हूँ?
@cmpershad
कभी कोई नहीं भाई, जितने पकड़े गए उन में से कम से कम सत्तर अस्सी परसेंट। अब तक का अनुभव यही है। यह मानवाधिकार का प्रश्न नहीं है। यह आतंकवाद को उन नागरिक स्वतंत्रताओं पर हावी होने देने का सवाल है जो हमने बहुत कुर्बानियों और लम्बे संघर्ष से हासिल की हैं। अमरीका ने नागरिक स्वतंत्रताओं को अक्षुण्ण रखते हुए यह सब किया है, तो हम क्यों नहीं कर सकते?
आप के चिचारों से काफी हद तक सहमत हूँ| आपने सही कहा है-“आतंकवाद के विरुद्ध विजय के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं। केवल एक संकल्प, एक देशव्यापी संकल्प की जरूरत है।”
लेकिन क्या इतने सालों तक पिटने के बाद भी हमारे कर्ण धारों ने कोई संकल्प लिआ?क्या ये कभी कुर्सी का मोह छोड़ कर देश के बारे में सोचेगें?उम्मीद बहुत कम लगती है।
पोटा जैसा कानून मानव अधिकार जैसी नपुंसक संस्थाओं का मुंह बंद करने के लिए आवश्यक है। हो सकता है कि कभी कोई निरपराधी भी इसकी गिरफ्त में आ जाय परंतु घुन पिसने के डर से गेहूं के पीसने को तो रोका जाना तर्कहीन है ना।
आतंकवाद के विरुद्ध विजय के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं। केवल एक संकल्प, एक देशव्यापी संकल्प की जरूरत है। बिलकुल सही कहा आप ने, लेकिन यह संकलप केसे काम करेगा जब हमारे नेता ही कमीना पन करे तो???