प्रसंज्ञान लेने के पूर्व मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को सुनने का अधिकार नहीं
समस्या-
मुम्बई, महाराष्ट्र से नारायण ने पूछा है-
मेरी पत्नी ने अदालत में भा.दं.विधान (आईपीसी) की धारा ४२०, ४९३, ४९४ में मुझ पर मिथ्या शिकायत दाखिल की है। जिस में कुछ भी सत्य नहीं है। वह शिकायत न्यायाधीश महोदय को मान्य नहीं है। अब तक वह शिकायत दाखिल किए हुए एक साल हो रहा है। फिर भी अब तक न्यायालय ने समन जारी नहीं किया है। मैं ने न्यायाधीश महोदय से निवेदन किया कि वे शिकायत रद्द करें। लेकिन वे मेरी बात नहीं मान रहे हैं । मैं कौन से कानून के तहत वह शिकायत रद्द करने कि गुजारिश कर सकता हूँ। मुझे अभी तक न्यायालय से समन नहीं मिला है।
समाधान-
किसी व्यक्ति द्वारा न्यायालय को किसी अपराध के किए जाने की शिकायत करना एक कानूनी अधिकार है और इसे किसी भी प्रकार से बाधित नहीं किया जा सकता। किसी अपराध की शिकायत प्राप्त होने पर न्यायालय उस पर शिकायत करने वाले का बयान लेता है। इस से न्यायालय यह समझे कि शिकायत तथ्यपूर्ण है तो उसे अन्वेषण के लिए पुलिस को भेज सकता है या स्वयं ही उस शिकायत की जाँच साक्ष्य ले कर कर सकता है। जाँच के उपरान्त यदि न्यायालय यह समझे कि मामला प्रसंज्ञान लेने लायक है तो उस शिकायत पर प्रसंज्ञान ले कर समन जारी करता है। यदि मामला प्रंसज्ञान लेने लायक नहीं है तो शिकायत को निरस्त कर सकता है।
किसी शिकायत पर प्रसंज्ञान लिए जाने के पहले उस शिकायत में वर्णित अभियुक्त को यह अधिकार नहीं कि वह न्यायालय के समक्ष अपनी ओर से कुछ तथ्य प्रस्तुत कर सके अथवा न्यायालय से कोई निवेदन कर सके। इसी कारण से न्यायालय ने आप के निवेदन को अस्वीकार कर दिया है।
यदि न्यायालय आप के विरुद्ध प्रसंज्ञान लेता है और समन जारी करने के लिए आदेश करता है तो आप न्यायालय के प्रसंज्ञान लेने और समन जारी करने के आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण आवेदन सेशन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं और उस आदेश को निरस्त करवाने की चेष्टा कर सकते हैं। यदि मजिस्ट्रेट न्यायालय स्वयं ही शिकायत को निरस्त कर देता है तो आप को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।