बाल श्रम उन्मूलन पर एक लघु परिचर्चा
|देश भर में बाल श्रम उन्मूलन सप्ताह मनाया जा रहा है। इस संबंध में राष्ट्रीय विधिक प्राधिकरण द्वारा सभी जिला विधिक प्राधिकरण को एक परिपत्र जारी कर इस सप्ताह में बाल श्रम उन्मूलन के विचार को अधिक से अधिक प्रचारित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा गया है। इन्हीं निर्देशों के अंतर्गत आज श्रम न्यायालय एवं औद्योगिक न्यायाधिकरण कोटा में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिस में अधिवक्ताओं और श्रमिक-नियोजक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर बोलते हुए कोटा की श्रम न्यायाधीश श्रीमती अनुराधा शर्मा ने कहा कि बालश्रम दोहन की मात्रा किसी भी समाज के पिछड़ेपन का पैमाना है। जिस समाज में जितना अधिक बालश्रम दोहन होगा उतना ही वह समाज पिछड़ा रहेगा। बालश्रम से मुक्ति प्राप्त किए बिना भारत अपने पिछड़ेपन से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। समाज विकास का वह स्तर प्राप्त करना हमारा लक्ष्य होना चाहिए जिस में बालकों से किसी भी प्रकार का श्रम नहीं लिया जाए।
इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता और नियोजक प्रतिनिधि श्री एम.के.शर्मा ने कहा कि अधिकांश बाल श्रम का उपयोग छोटे और कुटीर उद्योगों, दुकानों तथा घरों में होता है। बालश्रम के उन्मूलन के लिए जन-जाग्रति की आवश्यकता है जिसे विद्यालयों के विद्यार्थियों के माध्यम से घर-घर पहुँचाया जा सकता है। हिन्द मजदूर सभा राजस्थान के संयुक्त मंत्री और श्रमिक प्रतिनिधि श्री नरेन्द्र तिवारी ने कहा कि उन का संगठन बाल श्रम उन्मूलन के लिए लगातार प्रयासरत है तथा कस्बों और गावों में श्रमिक परिवारों में यह चेतना पहुंचाने का कार्य कर रहा है कि वे अपने बालकों से बिलकुल श्रम नहीं कराएँ और उन्हें विद्यालयों में भेजें। उन के इन प्रयासों के सकारात्मक नतीजे भी सामने आए हैं और श्रमिक अब अपने बालकों को विद्यालयों में भेजने लगे हैं।
अधिवक्ता दिनेशराय द्विवेदी ने कहा कि बालश्रम समाज को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाता है। बालकों का श्रम उन के स्वयं के विकास में ही उपयोग में लिया जाना चाहिए। बालश्रम का दोहन बालकों के स्वाभाविक विकास में बाधक बनता है। बाल श्रम सस्ता होने से उस के उपयोग से वयस्क बेरोजगारी में वृद्धि होती है। इसे रोका जाना आवश्यक है। जिन परिवारों में 14 वर्ष की उम्र में काम पर जाना बालकों की मजबूरी है उन मामलों में बाल श्रमिकों के काम के घंटे 4 प्रतिदिन से अधिक नहीं होने चाहिए। इस संबंध में केन्द्र सरकार के सहयोग से बाल श्रमिकों के लिए चलाए जा रहे विद्यालयों ने बहुत जाग्रति पैदा की है और काम पर जाने वाले बालकों के अध्ययन की व्यवस्था हो सकी है। इस परिचर्चा में रामावतार जोशी, नन्दलाल शर्मा, रमेशचन्द्र नायक व अन्य अधिवक्ताओं व श्रमिक-नियोजक प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। परिचर्चा का संचालन अधिवक्ता रामस्वरूप शर्मा ने किया।
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13 Comments
इस महंगाई के जमाने मे बाल श्रमीक कोई शोक से नही बनता है , परिवारीय मजबूरीया ही उसे मजबूर करती है ।
जिन पहलुओं से अपरिचित रहे थे अभी तक
तीसरे खंबे ने परिचित करा दिया
परिचर्चा की बातों को हमारे साथ बांटने का शुक्रिया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जब तक पुनर्वास की समुचित व्यवस्था न हो… मुश्किल है.
इस बारे में एक कहानी लिखी थी कभी.
http://ojha-uwaach.blogspot.com/2007/03/blog-post_29.html
जो बाल कलाकार फिल्मों और सीरियल आदि में काम करते हैं, क्या वह भी बालश्रमिक हैं।
नमस्कार स्वीकार करें
@ताऊ रामपुरिया,
ताऊ जी, उक्त रिपोर्ट में यह कहीं नहीं है कि 14 वर्ष से कम आयु के बालकों के काम के घंटे चार से अधिक नहीं होने चाहिए।
वास्तविकता तो यह है कि कुछ कामों और प्रक्रियाओं में ही बाल श्रम का कानून द्वारा उन्मूलन किया गया है। शेष स्थानों पर बाल श्रम लिया जाना कानून में बाधित नहीं किया गया है। मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि 14 वर्ष से कम आयु के बाल-श्रम का तो पूरी तरह से उन्मूलन कर दिया जाना चाहिए। हाँ 14 वर्ष की उम्र में यदि विवशता हो तब भी 18 वर्ष तक की उम्र तक उन से केवल चार घंटे ही काम लिया जाना चाहिए। इस संबंध में कानून की स्थिति अगले आलेख में रखने का प्रयत्न रहेगा।
dinesh jee..pehle to aabhaar sweekaar kaein achhee report prastut kee aapne..magar jahaan tak mujhe lagtaa hai ki baalshram ke unmoolan ke mudde par kaam karne se pehle ye samjhna hoga ki baal shram ke bahut saare roop hain aur unmein jo sabse adhik kahstkaaree hai usko target kiya jaaye…maslan kisi chaay kee dukaan par kaam karne wala bachcha . kisi kaaleen factory mein kaam karne wala bachcha ..aur kisi khet mein apne pita kaa haath bataata bachcha..teeno hee baal shram hain..magar jaahir see baat hai ki sabse pehle us kaaleen factory wale bachche ko hee sahee mukti dilaanee hogee..isee tarah kee baatein hain..jo is muhim mein gaur nahin kee jaa rahee hain..sabhee pahluon ko ek saath uthaane ke kaaran kisi mein bhee purn safaltaa nahin mil paa rahee hai…aur ..chaliye vistaar se fir kabhi charcha karenge….
बिलकुल सही कहा आप ने ,
इसके लिए व्यापक परिचर्चा का आयोजन – गाँव -ब्लाक -तहसील स्तर पर होना चाहिए ,तभी इसमें सफलता मिल पायेगी .
आपका प्रयास और इस दिशा में लिखा गया आलेख सराहनीय है . आभार.
सभ्य समाज में बाल श्रमिकों का निरंतर शोषण किया जाना निसंदेह चिंता का विषय है . देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालो के बच्चो को मजबूरीवश पेट की खातिर काम करना पड़ता है . देश में कई कानून बनाए तो गए है पर नौकरशाही या नेताओं द्वारा उन कानूनों को असलीजामा नहीं पहिनाया गया है . १४ वर्ष की कम आयु के बच्चो से काम लेना अपराध माना गया है पर देखने में आया कि बढ़ती महगाई के कारण निरंतर बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है . राजनेता भी बाल श्रमिकों के हाथो से चाय पीते लेते जा सकते है पर मैंने किसी राजनेता को उन्ही बाल श्रमिकों के अधिकारों कि रक्षा करने के लिए आवाज बुलंद करते नहीं देखा है यह सच है . आपका प्रयास और इस दिशा में लिखा गया आलेख सराहनीय है और उनके बारे में ब्लॉग में चर्चा करने के लिए आभारी हूँ . आभार.
ये रीपोर्ट एक सही मुद्दे पर और आवश्यक है –
बच्चोँ को पहले विकसित होने दिया जाये –
एक फूल जैसे बच्चे पर
श्रम का बोझ लद जाये
तब वह खिलेगा कैसे ?
– लावण्या
बहुत अच्छी जानकारी दी. आपने लिखा कि १४ साल से कम उम्र के बालकों के काम के घंटे चार से कम होने चाहिये तो क्या चार घंटे के लिये बाल श्रमिक रखे जा सकते हैं? यह तो बडी ऊहापोह की स्थिति हो गई.
रामराम.