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बेनामी संपत्ति क्या है? संपत्ति के बेनामी हस्तांतरण पर रोक किस तरह की है?

मुंबई की वर्षा झा के प्रश्न के उत्तर में लिखी गई तीसरा खंबा की चिट्ठी पिताजी ने अपनी अर्जित आय से संपत्ति माँ के नाम खरीदी थी। संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा? पर राज भाटिया जी ने टिप्पणी की थी …

दिनेश जी आप की बात समझ में नहीं आई आज, अगर कोई आदमी अपनी पत्नी के नाम से मकान या कोई संपत्ति बनाता है, ओर फ़िर उन दोनों के मरने के बाद वो संपत्ति या मकान आनामी कहलाएगी या बाकी बचे परिवार के नाम होगा? कृपया दोबारा से विस्तार से समझाएँ।

मुझे लगता है भाटिया जी बेनामी संपत्ति का अर्थ ही नहीं समझ पाए हैं। “बेनामी हस्तांतरण” कानून द्वारा उस हस्तांतरण को कहा गया है जिस में। कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति को धनराशि के बदले हस्तांतरित करता है जिस की धनराशि किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाई या उपलब्ध गई हो। 

इस तरह हस्तांतरित संपत्ति को बेनामी संपत्ति कहा गया है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति भाटिया जी की पत्नी को बेचता है लेकिन उस की कीमत भाटिया जी की पत्नी के स्थान पर भाटिया जी ने चुकाई या उपलब्ध कराई हो। इस तरह यह संपत्ति बेनामी संपत्ति कहलाएगी। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि संपत्ति खरीदी तो भाटिया जी ने लेकिन उसका विक्रय पत्र पत्नी के नाम लिख कर रजिस्टर करवा लिया। इस तरह उस संपत्ति के वास्तविक स्वामी तो भाटिया जी हुए लेकिन दस्तावेजों और रिकार्ड में यह संपत्ति भाटिया जी की पत्नी के नाम दर्ज रहेगी।
1988 के पहले यह स्थिति थी कि इस बेनामी संपत्ति का वास्तविक स्वामी वही व्यक्ति माना जाता था जिस ने उस संपत्ति को खरीदने के लिए धनराशि चुकाई हो। लेकिन संपत्ति जिस के नाम दस्तावेजों या रिकार्ड में होती थी वह उसे दस्तावेजों के सहारे से किसी को बेच देता या दान, हस्तांतरण आदि कुछ कर देता तो बाद में इस तरह के विवाद अदालतों में आते थे कि वह संपत्ति तो बेनामी थी और वास्तविक स्वामित्व किसी और का था। इस से निरर्थक विवाद बहुत होते थे। 1988 में भारतीय संसद ने बेनामी हस्तांतरण (निषेध) अधिनियम  1988 पारित किया। इस में यह प्रावधान रखा गया कि कोई भी व्यक्ति बेनामी हस्तांतरण में शामिल नहीं होगा तथा किसी संपत्ति को बेनामी बता कर स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति को उस का वास्तविक स्वामी बताते हुए कोई भी वाद, दावा या कार्यवाही नहीं कर सकेगा। इस तरह किसी भी संपत्ति को बेनामी बताते हुए दायर होने वाले मुकदमों का अदालत में प्रस्तुत किया जाना बंद हो गया।  बेनामी हस्तांतरण को इस कानून के द्वारा दंडनीय अपराध बना दिया गया जिस में तीन वर्ष तक की कैद की सजा का प्रावधान है जो बिना जुर्माने या जुर्माने के साथ हो सकती है। दूसरी ओर बेनामी घोषित की गई संपत्ति को सरकार  द्वारा अपने कब्जे और स्वामित्व में  लेने का प्रावधान भी किया गया। 
लेकिन इस कानून में यह अपवाद भी रखा गया कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी या अविवाहित पुत्री के नाम से बेनामी संपत्ति खरीद सकता है जिसे अपराध नहीं समझा जाएगा।  जब तक इस के विरुद्ध तथ्य किसी अदालत में प्रमाणित नहीं कर दिया जाए तब तक यह माना जाएगा कि वह संपत्ति खर

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