मंदिर परिसर में पशु-बलि कैसे प्रतिबंधित हो?
|समस्या-
मामला धर्म व सामाजिक मुद्दे पर आधारित है। गोरखपुर जिले से 20 किमी दुर स्थित तरकुहली देवी मंदिर पर प्रतिदिन 500 बकरों का बलि दिया जाता है और वह भी मंदिर से बिल्कुल सटे सिर्फ 10 कदम पर। सारा खून पूरे मंदिर परिसर और आस पास के मार्गों पर फैल जाता है, इससे खून के सड़ने तथा मॉस के अवशेष से काफी बदबू आती है और महामारी फैलने की आशंका बनी रहती है, ऐसे में क्या कानूनी तौर पर इस प्रकार की जीव हत्या को बंद कराने या उसे मंदिर परिसर से कम से कम 3 किमी के बाहर भेजने का कोई प्रावधान है कि नहीं? एक सामाजिक व्यक्ति व मानवता के कारण मैं आपसे इसके विषय में मदद चाहता हूँ कि उच्च न्यायालय मे क्या कोई रिट दाखिल किया जा सकता है, एक जनहित याचिका के रूप में?
-सत्यप्रकाश पाण्डेय, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
समाधान-
सार्वजनिक स्थलों पर पशुबलि पर प्रतिबंध के विरुद्ध कोई केंद्रीय कानून नहीं है। लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने इस तरह के कानून बनाए हैं। खेद की बात है कि इस तरह का कानून उत्तर प्रदेश में आज तक नहीं बन सका है। लेकिन ….
सार्वजनिक स्थान पर पशुबलि आज भी होती है यह जान कर आश्चर्य होता है। निश्चित रूप से पशुवध कम से कम सार्वजनिक स्थान पर नहीं होना चाहिए चाहे उसे बलि कह कर धार्मिक स्वरूप क्यों न दे दिया जाए। इस देश की आबादी में जैन भी हैं जो किसी भी तरह की जीव हत्या के विरुद्ध हैं। जैन धर्मावलम्बियों के अतिरिक्त हिन्दू धर्मावलम्बियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा है जो पशुवध को पाप की श्रेणी में रखता है। सार्वजनिक स्थान पर पशुबलि से इस तरह की आबादी को जो मानसिक कष्ट पहुँचता है वह एक तरह का न्यूसेंस है। दूसरी ओर सार्वजनिक स्थान पर इस तरह बलि देने से जो रक्त और मांस जिस तरह से आबादी के बीच फैलता है वह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक है। यह राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन का दायित्व है कि इस तरह आबादी में फैल रहे न्यूसेंस को रोके।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 में यह प्रावधान है कि जिला मजिस्ट्रेट या उप जिला मजिस्ट्रेट को यदि यह बात ध्यान में लाई जाती है कि किसी तरह का न्युसेंस सार्वजनिक स्थल पर हो रहा है तो वह उसे हटाने का आदेश दे सकता है। इस तरह कानून में इस तरह के न्यूसेंस को हटाए जाने का उपबंध मौजूद है। बस सरकार और प्रशासन में उसे बंद करने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए।
हमारी राय है कि आप को अपने क्षेत्र के जिला मजिस्ट्रेट एवं कलेक्टर को मिल कर इस समस्या की ओर ध्यान दिलाना चाहिए ओर सार्वजनिक स्थल पर होने वाली पशुबलि को रोकने की मांग उठानी चाहिए। आप जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 133 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आवेदन भी प्रस्तुत कर सकते हैं। आप राज्य सरकार को इसे बंद करने के लिए कानूनी नोटिस दे सकते हैं और नोटिस देने के उपरान्त भी राज्य सरकार द्वारा यथेष्ट कार्यवाही नहीं किए जाने पर उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। इसी तरह की एक जनहित याचिका पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 25 नवम्बर 2011 को भूखाल मंदिर में पशुबलि पर प्रतिबंधित किया गया है।
श्रीमानजी बड़ी कृपा होगी यदि मुजे आप ये जानकारी दे की किसी स्थाई या आस्थाई श्रमिक को कंपनी किस क़ानून का उपयोग करके निकाल सकती हे या किस अपराध मे उसे निकल सकती हे,तथा मुजे इसी से सामबांधितप्रमुख श्रमिक क़ानूनो की जानकारी दे ….ताकि मे ये जान साकु की श्रमिको के हितों मे क्या क़ानूनी प्रावधान हे,,,,,,,,,
सत्य प्रकाश पाण्डेय जी आपने बहुत ही कल्याणकारी समस्या की ओर ध्यान दिया , आपको बहुत -बहुत धन्यवाद. मैं भी इस मंदिर में अक्सर जाता रहता हूँ और ये देख कर बहुत दुःख होता है कि धर्म के नाम पर इस तरह से सार्वजानिक रूप से पशु हत्या की जाती है. इसे यदि हम रोक पायें तो यह जनहित में बहुत बड़ा कार्य होगा. मेरा मोबाईल 9792250013 .
जानकारी देती अच्छी पोस्ट।
मनोज कुमार का पिछला आलेख है:–.कर्दम ऋषि
श्री मान जी आपको धन्यवाद कि आपने मेरे द्वारा पोस्ट किये गये प्रश्न का उत्तर बहुत ही अच्छे ढ़ंग से दिया है मै आशा करता हुँ कि आपके दिये सुझाव पर आगे बढने मे काफी मदद मिलेगी,