मद्रास की अंग्रेजी बस्ती : भारत में विधि का इतिहास-13
|सूरत में व्यापारिक केन्द्र मजबूत हो जाने के बाद कंपनी ने अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी फैक्ट्रियाँ स्थापित करने का निर्णय किया जिस के परिणाम स्वरूप मद्रास, कोलकाता और मुम्बई की अंग्रेजी बस्तियाँ अस्तित्व में आईँ जिन्हें प्रेसीडेंसी नगर कहा गया। मद्रास इन में पहला और महत्वपूर्ण था। 1639 में चंन्द्रगिरी के हिन्दू राजा से कंपनी प्रतिनिधि फ्रासिंस डेविस ने एक छोटा भू-भाग अनुदान में प्राप्त किया और 1640 में वहाँ फैक्ट्री कायम की। जिस का नाम फोर्ट सेंट जॉर्ज रखा गया। कंपनी ने राजा से सिक्के ढालने और प्रचलन का अधिकार प्राप्त करने के साथ ही निकटस्थ ग्राम मद्रासपट्टनम् का प्रशासनिक नियंत्रण भी अपने हाथों में ले लिया। जिस के बदले बंदरगाह से प्राप्त होने वाले राजस्व का आधा भाग राजा को देने का समझौता संपन्न हुआ। फैक्ट्री के कारण कुछ ही वर्षों में वहाँ विकास दिखाई देने लगा। यह इलाका दो भागों में बंटा था। पहला फैक्ट्री के अंदर का भाग जहाँ अंग्रेज रहते थे जो व्हाइट सिटी कहा जाता था और दूसरा निकटवर्ती क्षेत्र जहाँ स्थानीय निवासी रहते थे और जिसे ब्लेक सिटी कहा जाता था। दोनों के एकीकरण से मद्रास नगर बना।
न्याय प्रशासन
आरंभ में यहाँ का प्रशासन सूरत फैक्ट्री के अधीन था और इसे ऐजेंट स्तर प्रदान किया गया था। मुख्य प्रशासक ऐजेंट कहलाता था जो अपनी परिषद के सहयोग से व्यापारिक, प्रशासनिक और नौसैनिक गतिविधियों का संचालन करता था। प्रारंभ में ऐजेंट को व्हाइट सिटी में रहने वाले अंग्रेजों से सम्बंधित सामान्य प्रकृति के दीवानी और अपराधिक मामले निपटाने के लिए प्राधिकार दिया गया था। लेकिन उन की शक्तियां और अधिकारिता स्पष्ट नहीं थी। गंभीर प्रकृति और मृत्युदंड के मामले इंग्लेंड में उच्चाधिकारियों को प्रेषित किए जाते थे जिस से न्याय में बहुत देरी होती थी और बहुत समय नष्ट होता था। 1600 और 1623 के चार्टरों में यह स्पष्ट नहीं था कि ऐजेंट को भारतीयों के मामलों में भी न्यायिक प्राधिकार था या नहीं इस कारण से भारतीयों के मामले आ जाने पर उन के साथ कोई न्याय नहीं हो पाता था। एक महिला से बलात्संग का आरोप होने पर एक भारतीय को बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया पूरी हुए ही उसे फाँसी पर लटका दिया गया था। एक भारतीय की एक अंग्रेज की लापरवाही के कारण हुई दुर्घटना में मृत्यु हो जाने पर यह कह कर कि यह दुर्घटना संयोग थी, अपराधी को बरी कर दिया गया। व्हाइट सिटी के बाहर के क्षेत्रों के लिए राजा ने न्यायालय स्थापित किए हुए थे लेकिन उन में न्याय भारतीय विधि से होता था। प्रारंभिक अवस्था में न्याय के लिए प्रक्रिया में अस्पष्टता के कारण भारतीयों को पक्षपात का भागी बनना पड़ता था। भारतीयों को कठोर दंड दिए जाते थे वहीं अंग्रेजों को अपेक्षाकृत हलके दंडों से दंडित कर छोड़ दिया जाता था।
1661 के चार्टर के द्वारा प्रेसीडेंसी के गवर्नर और उस की परिषद को न्यायिक शक्तियाँ प्रदान कर दी गईं और कंपनी के कर्मचारियों तथा प्रेसीडेंसी में निवास करने वाले सभी भारतीयों पर अधिकारिता प्रदान कर अंग्रेजी विधि के अनुसार निर्णय देने का अनुमोदन कर दिया गया। लेकिन म
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5 Comments
बेहतरीन जबरदस्त जानकारी…
धन्यवाद गिरिजेश जी, दुरुस्त कर दिया है।
nice
1965 और 1961 को ठीक करिए।
मजा आ गया
इस जानकारी के लिए शुक्रिया