माँ को घरेलू हिंसा व बँटवारे के लिए कार्यवाही करनी चाहिए।
|समस्या-
विक्रम सिंह रावत ने गली नम्बर 112,बी ब्लाक, बुराड़ी, दिल्ली से समस्या भेजी है कि-
मैं जब तीन साल का था तब मेरे नाना-नानी ने मुझे अपने पास रख लिया था। कुछ साल बाद मेरी माँ भी वहीं रहने आ गई। अब मेरी उम्र 39 और मेरी माँ की 57 साल हैं । मेरे पिताजी अलग रहते थे सन् 1997 में उनका स्वर्गवास हो गया। नाना जी ने हमको एक कमरा और किचन दे रखा था। नानाजी 1999 में गुजर गए थे। मेरे नाना जी के तीन बच्चे हैं जिस में सबसे बड़ी मेरी माँ और उसके बाद दो भाई हैं । नानाजी मरने से पहले कोई वसीयत नहीं करके गए। मकान 100 गज का है और यह 1970 में लिया गया था जो कि अभी भी नाना जी के नाम हैं। पिछले कुछ सालो सें हम पर दोनों मामा-मामी द्वारा घर ख़ाली करने का दबाव डाला जा रहा था। मै टूरिस्ट गाड़ी चलाता हूँ और अधिकतर दिल्ली से बाहर रहता हूँ। एक दिन मैं शाम को घर आया मैं ने थोड़ी ड्रिंक भी कर रखी थी तो दोनों मामी और उनकी लडकियाँ मेरे से लड़ने लगी तो थक कर मैं ने 100 नम्बर पर कॉल करके पुलिस को बुला लिया वो लोग पुलिस के सामने भी मुझे गाली दे रहे थे। पुलिस वालो ने मेरे को कहा अगर मैने ड्रिंक नही की होती तो कुछ होता तुम थोड़ी देर घर से बाहर चले जाओ थोड़ी देर में ये अपने आप शांत हो जाएँगी मैने वैसा ही किया। मेरे घर पर वापस आने के थोड़ी देर बाद वो लोग थाने से पुलिस को लेकर आ गए और 107/151 में मुझे तिहाड़ भिजवा दिया जहाँ से अगले दिन मुझे जमानत मिली। इस केस की दो तारीख पड़ी जिस में उनकी तरफ से कोई नहीं आया तो जज ने केस ख़तम कर दिया। मैं घर पर ना जाकर अपने ससुराल में चला गया। इस वक्त मेरी माँ गाँव में थी जो की उत्तराखंड में है। उन लोगों मेरी माँ को फोन करके गाँव से बुलवाया और उन्हें धमका कर कि तेरे लड़के को जेल से बाहर नही आने देँगे किसी वकील के ऑफिस में अंग्रेजी के कुछ पेपरों पर साईन करवा लिए। हम लोगों ने अपने कमरे में अपना ताला लगा रखा है। जिसके ऊपर उन लोगों ने भी अपना ताला लगा दिया है हमने 100 नम्बर कॉल किया पुलिस वाले बोले लोकल थाने में शिकायत करो। हम ने थाने में लिखित में शिकायत दी तो वो बोले की हम ताला नहीं खुलवा सकते कोर्ट से ऑडर निकलवाओ। तब से हम किराये के कमरे में रह रहे हैं। नानी को भी उन लोगो ने अपने साथ मिला रखा हैं । अब हम चाहते हैं कि उस मकान में से मेरी माँ का हिस्सा उन्हें मिले। हमारे कमरे में लगा उन लोगों का ताला खुले और जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता हम लोगो को उस घर में रहने का हक मिले।
समाधान-
उस दिन की घटना के पहले आप और माँ उसी कमरे किचन में निवास कर रहे थे। उस पर आपका ताला लगा हुआ है ऊपर से मामा मामी का भी लगा हुआ है। यदि उसी समय आप पुलिस को या न्यायालय में शिकायत करते तो धारा 145 दं.प्र.सं. का प्रकरण दर्ज हो कर सुनवाई होती और कब्जा आप को सौंपने का आदेश हो जाता। लेकिन लगता है उस बात को अब 60 दिन से अधिक हो गए हैं। धारा 145 दं.प्र.संहिता में अब वह काम नहीं हो सकता।
आप की माता जी को चाहिए कि उन के पिता (आप के नाना) की संपत्ति में अपना अलग हिस्सा प्राप्त करने के लिए बँटवारे का वाद दीवानी न्यायालय में संस्थित करें। इस वाद के संस्थित करने के बाद न्यायालय से आप के कब्जे के कमरे और रसोई का ताला खुलवाने के लिए तथा आपके कब्जे में दखल न करने के आदेश के लिए आप अस्थाई निषेधाज्ञा हेतु आवेदन कर सकते हैं।
इस के अलावा आप और आप की माता जी उस परिसर में रह रहे थे। ताला लगा कर आप की माता जी को वहाँ रहने से रोक दिया गया है यह महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का मामला भी है। आप की मताजी घरेलू हिंसा अधिनियम में भी आवेदन कर उक्त परिसर पर उन्हें कब्जा दिलाने की कार्यवाही कर सकती हैं। इस सम्बन्ध में आप स्थानीय वकीलों से सलाह कर कार्यवाहियाँ आरंभ कर सकते हैं।