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मामला मियाद का

अब आप ने किसी को रुपया उधार दिया है, उधार देने की लिखत भी आप के पास मौजूद है और रसीद भी।  उधार दिया रुपया वापस आने का समय बीत चुका है और चुकाने वाला आप से आज-कल, आज-कल कर रहा है।  आप उसे समय दिए जा रहे हैं। अंततः आप उस पर मुकदमा करने का मन बना लेते हैं और अपने पास के कागजात ले किसी वकील से मिलते हैं। वकील आप को बताता है कि आप उस व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा नहीं कर सकते? आप पूछते हैं- क्यों? जवाब मिलता है कि मुकदमा दायर करने की मियाद निकल चुकी है। आप निराश हो जाते हैं। वस्तुतः न्याय इस आधारभूत सिद्धान्त पर न्याय करता है कि न्याय प्राप्त करने वाले को न्याय प्राप्त करने के लिए अर्जी या दावा पेश करने में देरी नहीं करनी चाहिए अपितु उसे तुरंत अदालत के सामने जाना चाहिए। कम से कम निर्धारित समयावधि के भीतर ही अदालत में कार्यवाही कर देनी चाहिए। 
आप यदि न्यायालय के समक्ष जाने में जितनी देरी करते हैं उतने ही न्याय से दूर होते चले जाते हैं। कुछ समय बाद यह दूरी इतनी हो जाती है कि आप कभी न्याय प्राप्त नहीं कर सकते। भारत में विभिन्न तरह के दावे पेश करने के लिए निर्धारित समयावधि निश्चित किए जाने के लिए कानून बना है जो मियाद अधिनियम, अवधि अधिनियम या लिमिटेशन एक्ट कहलाता है। इस कानून के साथ एक अनुसूची संलग्न की गई है जिस में दिया गया है कि किस किस तरह के मामलों के लिए क्या क्या अवधि निर्धारित की गई है। इस अनुसूची में कुल 137 बिंदु हैं।  इस लिए  इस ब्लाग की सीमा में यह तो संभव नहीं है कि यह बताया जा सके कि कौन से मामले में मुकदमा करने के लिए क्या मियाद निर्धारित की गई है? और मियाद कब आरंभ होगी? हाँ आप चाहें तो इस सूची को निम्न वाक्य पर क्लिक कर के देख सकते हैं।

मियाद अधिनियम की अनुसूची

नोट-यह आलेख विशेष रूप से उड़नतश्तरी के ब्लागर समीर लाल जी को समर्पित है, कुछ माह पूर्व उन ने यह प्रश्न किया था कि क्या अलग अलग मामलों के लिए अलग अलग मियाद है? उत्तर देने में देरी हुई उस के लिए मैं उन से क्षमा प्रार्थी हूँ।

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