मियाद के दिनों की चोरी
|आज के आलेख में मैं एक ऐसी चोरी के बारे में बताना चाहता हूँ, जिस की किसी भी थाने या अदालत में रपट दर्ज नहीं होती है, और न ही अपराधी को कोई सजा ही दी जा सकती है।
जब भी किसी मुकदमे का फैसला होता है तो उस फैसले की अपील की जा सकती है, जिस के लिए एक निश्चित समय निर्धारित होता है। इस निर्धारित समय में ही अपील की जा सकती है। इस निर्धारित समय के व्यतीत हो जाने के बाद अपील किया जाना संभव नहीं होता है। अपील करने के लिए निर्धारित यह समय आम बोल चाल में मियाद और अंग्रेजी में लिमिटेशन कहा जाता है। आम तौर पर यह निर्धारित समय तीस दिन, और हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में की जाने वाली अपील के मामलों में अधिक से अधिक नब्बे दिनों तक का हो सकता है। मियाद के इन दिनों में अपीलार्थी पक्षकार का ऊँची अदालत के वकील से सम्पर्क करना, सभी आवश्यक दस्तावेजों और फैसले की नकलें लेना, ऊँची अदालत के वकील द्वारा मामले का अध्ययन आदि काम करने होते हैं। यदि कोई पक्षकार इस बीच चैन से न बैठे तो यह समय पर्याप्त होता है। फैसला करने वाली अदालत से फैसले की नकल प्राप्त करने में लगा समय मियाद के समय में और जुड़ जाता है। पर मियाद के इस समय के एक भाग की बड़े ही शातिराना तरीके से चोरी हो जाती है।
होता यह है कि मुकदमे की बहस के बाद अदालत फैसले की तारीख निश्चित कर देती है। इसे अदालत अपनी सुभीते के लिए बदल कर आगे भी खिसका देती है। फैसले की निश्चित तारीख पर अदालत का समय समाप्त होने तक पक्षकार या उस के वकील के पूछने पर अदालत का रीडर यह कहता रहता है कि (जज) साहब फैसला लिखा रहे हैं। अदालत का समय समाप्त होने के ठीक पहले या कभी कभी उस के भी बाद, यह बताया जाता है कि फैसला पूरा नहीं लिखाया जा सका, कल पूछ लेना। अकसर दूसरे-तीसरे दिन भी यही जवाब मिलता है। फिर पक्षकार से कहा जाता है कि तुम क्यों रोज-रोज चक्कर लगा रहे हो? जब फैसला हो जाए तब तुम्हारे वकील साहब पता कर तुम्हें बता देंगे। पक्षकार अदालत आना बन्द कर देता है। चार-पाँच दिनों में या एक दो सप्ताह में फैसला सुना दिया जाता है। नकल लेने के लिए प्रार्थना पत्र दिया जाता है। नकल मिलती है, तब पता लगता है कि उस पर फैसले की तारीख वही छपी है जो पहले निश्चित की गई थी। ये चार-पाँच दिन या एक दो सप्ताह जो मौखिक बढ़ाए गए थे चुपचाप चोरी हो जाते हैं।
यह चोरी खुद अदालत कर लेती है।
अब बोलिए। किस थाने या अदालत में इस चोरी की रपट लिखाई जाए? और कौन सा थाना या अदालत इस चोरी की रपट दर्ज करेगा?
पहले ऐसा किसी किसी मामले में,किसी किसी अदालत में हुआ करता था। अब यह लगभग सभी निचली अदालतों का आम अभ्यास हो गया है।
और हाँ, बाहर हूँ, कल अवकाश रहेगा।
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आदरणीय दिनेश जी,
आपसे आग्रह है कि कुछ प्रकाश ICICI की कार्यप्रणाली पर भी डालें । बहुतों को दुखी कर रखा है, उनका भला हो जाये तो आपके बच्चों को दुआ देंगे !
“पहले ऐसा किसी किसी मामले में,किसी किसी अदालत में हुआ करता था। अब यह लगभग सभी निचली अदालतों का आम अभ्यास हो गया है।”
इस मामले के हल के लिये आप लोगों ने कुछ किया क्या ? या करने का इरादा है क्या??
.ये फैसले की कापी मिलने में इत्ता टाइम क्यों लगता है जी। अब तो ऐसे ऐसे साफ्टवेयर मौजूद हैं, जो बोले हुए को ही टाइप करके हाथ की हाथ प्रिंट आउट दे दें।
कीमती जानकारी है। कानून मेरे लिए काफी कठिन और बोझिल विषय है मगर अब आपकी सोहबत में धीरे धीरे इस अरुचि को कम कर पाउंगा , लगता है। हालांकि इतना धैर्य अभी है नहीं।
कुछ ऐसी चोरी तो हम भी करते हैं। पत्रों और अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर में दिनांक शुक्रवार का डाल देते हैं, जब कि हस्ताक्षर रविवार को कर रहे होते हैं। ऐसा इसलिये कि सप्ताहान्त के दिनों में दफ़्तर बन्द होता है और अगर शुक्रवार को भी हस्ताक्षर करते तो दस्तावेज वैसे ही आगे बढ़ता। 🙂