मुकदमों में गुणावगुण के आधार पर बचाव करना होगा, अच्छा हो मध्यस्थता से राह निकले।
|समस्या-
छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश से आसिफ ने पूछा है –
मेरा विवाह 2009 में हुआ था। पत्नी विवाह के लगभग 7-8 माह तक अच्छे से रही। परंतु फिर वह अपनी बहन की गलत सलाह में आकर घर में विवाद करने लगी। इस संबंध में उनके परिवार के लोगों से बैठक करके बातचीत की गई। उसके परिजनों से समझाया। परंतु हर बार कुछ दिन ठीक से रहने के बाद वह फिर पहले जैसे मोबाईल पर गलत सलाह पाकर झगड़ा करने लगती। फिर उसका भाई दहेज के केस में अंदर कराने की धमकी देने लगा। तब हमने पुनः उसके घरवालों के साथ बैठक की और फिर लिखित समझौता करके उसे लेकर आए। लेकिन कुछ समय ठीक रहने के बाद वह फिर विवाद करने लगी। उस मध्य वह गर्भवती हो गई थी तब मैं उसे मायके पहुँचाकर आया तथा मैं उसका स्वास्थ्य देखने एवं उससे मिलने के लिये उसके घर जाता रहा। लेकिन उसका भाई मेरे साथ बदतमीजी करता और जान से मारने की धमकी देता था। फिर हमने पुत्र के जन्म के बाद परिवार परामर्श केन्द्र में आवेदन दिया। वहाँ पर भी उसने स्वीकार किया कि हमने कभी दहेज नहीं मांगा तथा कभी उसके साथ मार-पीट नहीं की। लेकिन इस मध्य उसके पिता ने अनेकों जगह मेरे विरुद्ध झूठी शिकायत की जिससे मैं मानसिक रुप से परेशान हो गया। मैं परिवार का इकलौता पुत्र हूँ। पत्नी मुझे मेरी माँ से अलग रहने के लिये विवश करने लगी। तब मैं ने उसे मुस्लिम रीति से तलाक दे दिया। तब उसने धारा 498-ए दंड प्रक्रिया संहिता का झूठा प्रकरण दर्ज करवा दिया जो कि न्यायालय में चल रहा है। साथ ही पत्नी द्वारा भरण-पोषण का धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता का प्रकरण भी न्यायालय में चलाया जा रहा है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
आप के विरुद्ध दो मुकदमे चल रहे हैं। इन मुकदमों में आप के समक्ष अधिक विकल्प नहीं हैं। आप ने स्वयं ही यह अभिवचन किया है कि आपने मुस्लिम रीति से अपनी पत्नी से तलाक ले लिया है। लेकिन वर्तमान में न्यायालय तलाक को तभी स्वीकार करते हैं जब कि वह Shamim Ara v. State of U.P. के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप हो तथा आप उसे न्यायालय में साबित कर सकें। इस मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम विधि की विवेचना करते हुए यह निर्धारित किया है कि पुरुष को उस की पत्नी को तलाक देने का अधिकार है लेकिन वह केवल तभी तलाक दे सकता है जब कि तलाक के लिए कोई वैधानिक कारण उपलब्ध रहा हो और तलाक देने के पूर्व मध्यस्थों द्वारा पवित्र कुऱआन की सूरा 4 की आयत 35 के मुताबिक मध्यस्थता की कोशिश की गई हो। इस तरह आप को तलाक को साबित करने के लिए उक्त दोनों तथ्य न्यायालय के समक्ष दस्तावेजों और गवाहों के माध्यम से साबित करने होंगे।
यदि न्यायालय ने तलाक को वैध नहीं माना हो तो भी और वैध मान लेने पर भी धारा 498-ए की शिकायत तलाक की तिथि के पूर्व की होने पर भी आप को तलाक का कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। आप को मुकदमे के गुणावगुण के आधार पर ही अपना बचाव करना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने Danial Latifi and Anr. v. Union of India के मामले में यह निर्धारित किया है कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला जब तक पुनर्विवाह नहीं कर लेती है तब तक वह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता प्राप्त कर सकती है।
आप के मामले में यह हो सकता है कि आप द्वारा दिए गए तलाक को मुस्लिम विधि के अनुरूप वैध न माना जाए। आप को दोनों ही मुकदमों में गुणावगुण के आधार पर अपना बचाव करना होगा। इस के लिए आप को किसी अच्छे वकील की मदद लेनी होगी। सब से अच्छी बात तो यह है कि दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता से कोई राह निकल आए।