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मैं पति से न्यायिक पृथक्करण चाहती हूँ …

 राजेश्वरी जी ने पूछा है –
मैं 48 वर्ष की कामकाजी महिला हूँ, मेरे दो बच्चे हैं। पति एक प्रोपर्टी डीलर हैं और घर चलाने के लिए कोई धन नहीं देते। यहाँ तक कि कोई बैंक बैलेंस भी नहीं है, उन्होंने कोई सम्पत्ति भी नहीं बनाई है, किसी तरह से भी वित्तीय मदद नहीं करते। बच्चों को पढ़ाने में भी कोई मदद नहीं करते। अक्सर मदिरापान करते हैं, मैं ने घर में पीने पर आपत्ति उठाई क्यों कि यह घर मुझे अपनी नौकरी के कारण आवंटित हुआ है और इसलिए भी कि मदिरापान के उपरांत मुझ से दुर्व्यवहार किया है और मुझे पीटा है। मैं अब अपने आप को इन सब परिस्थितियों में जकड़ा हुआ और स्वयं को शोषित अनुभव करती हूँ। मैं कानूनी पृथक्करण चाहती हूँ। इस में कितना समय लगेगा? कृपया सलाह दें। 
 उत्तर –


राजेश्वरी जी, 
प को तुरंत ही न्यायिक पृथक्करण के लिए न्यायालय में आवेदन कर देना चाहिए, बिना किसी देरी के। आप यह आवेदन परिवार न्यायालय और यदि आप के क्षेत्र में परिवार न्यायालय स्थापित न हो तो जिला जज के न्यायालय में इस के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत प्रस्तुत कर सकती हैं। इस के लिए कोई एक अथवा वे सभी आधार लिए जा सकते हैं जो कि एक तलाक के लिए आवश्यक हैं। आप के विवरण से लगता है कि आप न केवल घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं अपितु क्रूरता की शिकार भी हुई हैं। यह न्यायिक पृथक्करण के लिए पर्याप्त आधार है।
प के साथ अत्यंत बुरा व्यवहार उस व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा है, जो अपने परिवार के लिए पूरी तरह गैर जिम्मेदार है और उलटे आप के साथ क्रूरता से पेश आता है। वह आप के परिवार के साथ रहने का अधिकार खो चुका है। वह घर आप का है, वह वहाँ बिना आप की अनुमति के नहीं रह सकता। आप घरेलू हिंसा की शिकार भी हुई हैं। आप को स्वयं अपनी ओर से तथा अपने बच्चों की ओर से तुरंत घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 18 व 19 के अंतर्गत राहत प्राप्त करने के लिए आप के निवास स्थान के क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आवेदन करना चाहिए। मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा  18 (ग) के अंतर्गत  यह आदेश पारित कर सकता है कि आप के पति आप के नियोजन स्थान तथा आप के बच्चों के विद्यालय में प्रवेश न करे, धारा 18(घ) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कि वह आप के साथ किसी प्रकार से कम्युनिकेट न करे, धारा 18 (ङ) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कोई संयुक्त बैंक या अन्य किसी प्रकार का खाता आप दोनों के द्वारा चलाया जा रहा हो तो उसे ऑपरेट न करे, संयुक्त संपत्ति का व्ययन न करे और स्त्री-धन को आप से अलग न करे और अपने किसी भी व्यक्ति से आप को प्रताड़ित न कराए। मजिस्ट्रेट इसी अधिनियम की धारा 19 (ख) (ग) के अंतर्गत यह आदेश दे सकता है कि जिस घर में आप रहती हैं आप का पति और उस का कोई भी नातेदार उस घर में न आए और आसपास भी न फटके। 19 (घ) में वह आप के किसी शामलाती घर को बेचने या किसी अन्य तरीके से हस्तांतरित न करने का आदेश भी आप के पत

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