यह खबर कभी अखबार में न छपे कि "एक सिरफिरे ने आत्महत्या की"
|मुझे एक छोटी सी जानकारी और दें कि अगर में अन्वेषण अधिकारी के पास अपनी बात रखने जाता हूँ तो क्या वह मुझे गिरफ्तार नहीं कर लेगा? फिर कैसे मैं अपनी बात बड़े अफसर के पास पहुँचाऊंगा। और मेरी पत्नी ने शादी के बाद मेरे ही पैसों से जो सामान खरीदा था। लेकिन मेरे पास उस के बिल नहीं हैं। और जो मैं ने खरीदे थे उन के बिल मेरे नाम से हैं. उन को भी अपना बताने के साथ साथ बहुत सारा ऐसा सामान जो मैं ने अपने घर में कभी देखा ही नहीं था वह भी अपनी रिपोर्ट में लिखाया है। इस के अलावा दो लाख का सोना, एक लाख नगद, मांगते हुए कहा है कि मेरी माँ पापा ने दिए थे, वो भी चाहिए। एक बार व्यक्तिगत मीटिंग कर के अपने घऱ का सारा सामान जो मैं ने खरीदा था देने के लिए भी मैं ने कह दिया था। मगर सारा सामान लिख कर देने से इन्कार कर दिया। क्यों कि वह पहले भी काफी सामान ले कर जा चुकी है और उस को अब इन्कार कर रही है। क्या सामान लिख कर दिए बिना देना उचित होगा? मेरी पत्नी की सूची के अनुसार तो कुछ भी नहीं है फिर अन्वेषण अधिकारी को कौन सा सामान देने जाऊँ? मैं तो पहले भी अपना सारा सामान महिला प्रकोष्ठ पुलिस थाना कीर्ति नगर, दिल्ली देने को तैयार था मगर उन की जिद है कि उन्हें अपनी लिस्ट का सारा सामान चाहिए। जब कि महिला प्रकोष्ट के अन्वेषण अधिकारी ने मेरे सामने ही सेल की एसीपी को कहा था कि लड़की वालों के पास अपनी किसी भी बात को साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं हैं। लड़के के पास अपनी बात को सही साबित करने के लिए ठोस सबूत हैं। क्या महिला प्रकोष्ठ की एसीपी फाइल को डीसीपी के पास भेजने के पहले उस पर कोई टिप्पणी नहीं करता है औऱ क्या डीसीपी बिना फाइल की जाँच करे ही मेरे खिलाफ धारा 198ए और 406 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने का आदेश कर सकता है? मुझे उम्मीद है कि मेरे ससुर ने डीसीपी और एसीपी महिला प्रकोष्ठ पर कोई दबाव डलवाया है क्यों कि वह पेट्रोलियम एवं गैस मिनिस्ट्री (शास्त्री भवन, दिल्ली) में काम करता है। मैं हर तरफ से निराश हूँ बस आत्महत्या करने के सिवाय कुछ नजर नहीं आता है। लोगों के समाचार प्रकाशित करने वाले एक इन्सान की एक कॉलम में अखबार के किसी कोने में एक खबर आएगी कि “एक सिरफिरे ने आत्महत्या की”
रमेश कुमार जी,
आप की बात से यह समझ आ रहा है कि आप के विरुद्ध जो मुकदमा दर्ज कराया गया है वह पूरी तरह से मिथ्या है। लेकिन पुलिस के सामने इस मुकदमे में दो ही विकल्प हैं कि आप के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत करे या फिर इस तरह की अंतिम रिपोर्ट लगाए कि मुकदमा नहीं बनता है। पुलिस को तो जो करना है वह करेगी। आप का दायित्व यह है कि अन्वेषण अधिकारी के समक्ष अपनी बात और तथ्यो व सबूतों को पेश करना। यदि आप को गिरफ्तारी का भय है तो आप ऐसा करें कि अपना बयान लिखित में तैयार करें और उस के साथ जो भी दस्तावेजी सबूत हों उन की फोटो प्रतियाँ करवा कर संलग्न करें तथा अन्वेषण अधिकारी को रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से प्रेषित कर दें। इस आवेदन और दस्तावेजों की प्रतियाँ दो-स्तर ऊँचे पुलिस अधिकारियों को भी रजिस्टर्ड ए.डी. से प्रेषित करवा दें। जिस से आप यह कह सकें कि आप ने सभी तथ्य पुलिस के सामने रख दिए थे। आप को गिरफ्तारी का भय है तो सेशन्स न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर दें। यदि वहाँ से यह आवेदन निरस्त हो जाए तो उच्चन्यायालय के समक्ष यह आवेदन प्रस्तुत करें। इस के लिए आप विधिक सेवा प्राधिकरण से वकील उपलब्ध कराने के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। यदि आप नियमानुसार इस के अधिकारी होंगे तो यह सहायता आप को मिल जाएगी। अन्यथा आप को अपना वकील स्वयं करना होगा।
यदि आप स्वयं को निरपराध समझते हैं तो गिरफ्तारी से क्यों डरते हैं? यदि गिरफ्तारी हो भी गई तो आप को जब अदालत में पेश किया जाए तो आप अदालत से कह सकते हैं कि आप को सरकारी खर्च पर वकील दिलाया जाए। वकील आप को मिल जाएगा जो आप की जमानत करवा देगा। आप जमानत पर छूटने के बाद इस लड़ाई को लड़ सकते हैं। क्यों कि आप सच्चे हैं, तो आप इस में जीतेंगे। एक पत्रकार लेखक हो कर ऐसी निराशावादी बातें करना शोभा नहीं देता। इस तरह आत्महत्या करना तो जुल्म को प्रोत्साहन देना है। आप को ऐसा बिलकुल नहीं करना है। जो भी परिस्थितियाँ हों आप को उन का मुकाबला करना है। अंतिम जीत सत्य की होती है, इस बात पर विश्वास रखें और आगे बढ़ें। मुझे विश्वास है कि आप को जल्दी ही जीत और राहत मिलेगी। मैं यह खबर अखबार में देखना चाहता हूँ कि “रमेश कुमार सिरफिरा ने संघर्ष किया और जीत हासिल की”।
यह अधूरी है.
पूरा कर दिया है।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.कानून, नियम और उन के अंतर्गत जारी अधिसूचनाएँ अंतर्जाल पर उपबल्ध क्यों नहीं ?
आप सभी(शुभचिंतकों) ने मेरी समस्या पर दी क़ानूनी सलाह पर टिप्पणी करते हुए मेरा जो उत्साह बढ़ा है.उसके लिए आप सभी का धन्यबाद करता हूँ. घरेलू हिंसा अधिनियम व दहेज क़ानून का दुऱुउयोग हो रहा है.वूमन्स सेल में जाँच के नाम पर अपनी रिश्व्त के लिए सौदेबाजी ज़्यादा होती है. अगर महिला आयोग इतना ही दूध का धुला है तब क्यो नही पति-पत्नी के पक्ष की विडीयो फिल्म बनवाता है. आज हमारे देश के जजो व पुलिस की मानसिकता बन गई है कि आदमी अत्याचार करता है. 498अ नामक हथियार लङकी के हाथ आने से लङकी और मां-बाप के लिए पैसे कमाने का धंधा बन गया है और जो एक प्रकार से बेटी बेचने के समान है. इस मे जल्द से जल्द बदलाव होना चाहिए
मेरा नाम रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा है.मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में सिरफिरा प्रेसरिपोर्टर के नाम से पहचाना जाता है.मुझे सिर्फ हिंदी और हिंदी आती है.समय की मांग,हिंदी में काम.हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.कभी कभी लगता है कि हमारी न्यायपालिका लकीर की फकीर है.अरे चाहे संविधान में लिखा हो या ना हो जब भारत के ज्यादातर लोग हिन्दी जानते हैं और अघोषित रूप से उसे राष्ट्रभाषा मानते हैं.तब उसे कानूनी तौर पर भी राष्ट्रभाषा मान लिया जाना चाहिए,क्योंकि इसी में देशहित है. न्यायपालिका एक चीज़ और स्पष्ट करे कि कानून जनता के लिए होता है या जनता कानून के लिए? आज भी भारत में तो अंग्रेजों का कानून लागू है. हिंदी का हिंदुस्तान में अपमान निश्चय ही यह गंभीर मामला है और सुप्रीमकोर्ट ने ऐसे गंभीर मामले को सुनवाई के लिए नहीं स्वीकार करके देश के लोगों के बीच अपनी छवि को ख़राब करने का काम किया है.कम से कम सुप्रीमकोर्ट को देश और देश की भावनाओं से जुडें मुद्दों पर ऐसा रुख नहीं अपनाना चाहिए था.देश के लोग सुप्रीमकोर्ट की तरफ न्याय और हर कीमत पर न्याय के लिए देखते हैं. जिसका सम्मान सुप्रीम कोर्ट को भी करना चाहिए. एक संदेश- हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है.
आपका अपना-शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार-जीवन का लक्ष्य, शकुंतला टाइम्स, शकुंतला सर्वधर्म संजोग, शकुंतला के सत्यवचन, उत्तम बाज़ार : पत्र -पत्रिकाये, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकारिता व विज्ञापन बुकिंग. शकुंतला एडवरटाईजिंग एजेंसी.निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
Once again great post. You seem to have a good understanding of these themes.When I entering your blog,I felt this . Come on and keep writting your blog will be more attractive. To Your Success!
द्विवेदी जी आम जनता के दर्द को सुन कर, समझ कर, नेट के द्वारा उन्हें उपयुक्त सलाह और सेवा देने के लिए आप निश्चय ही धन्यवाद के पात्र है. जैसा कि हम सब जानते है कि आज देश में IPC-498A का जम कर दुरूपयोग हो रहा है. देश में बाकी हर सरकारी नीतियों की तरह, जो कानून घर जोड़ने के लिए बना था वो सबसे ज्यादा घर तोड़ रहा है और रिश्तों में खटास पैदा कर रहा है. ये कानून केवल पुलिस, वकील (अफ़सोस लेकिन आजकल दोनों पक्षों के वकील अक्सर आपस मिल जुल कर पहले ही सौदेबाजी कर लेते है) और लड़की वालो के कमाई का जरिया बन गया है. क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिसके द्वारा ऐसा कुछ किया याये कि सजा लिंग के आधार पर नहीं बल्कि उसे मिले जो गलत हो, फिर चाहे वो लड़के वाले हो या लड़की वाले ?
रमेश कुमार सिरफिरा जी जिन्दगी मै इस से भी भयानक स्थितियां आती है, इस लिये छोटी छोटी बातो पर जिन्दगी को खत्म करना या सोचना ही नही चाहिये आप निडरता से संघर्ष करे… जीत आप के पांव छुयेगी, झूठ ज्यादा दुर तक नही चलता. दिनेस जी ने बहुत अच्छी सलाह दी है
दिनेश जी, आप नि:संदेह एक सहृदय व्यक्ति हैं अन्यथा अधिकांशत: लोग मुफ़्त में इतनी विस्तृत जानकारियां देने से कतराते हैं. आभार.
sir
if my name is pulled into some controversy on one blog on net where i have no involvement what so ever with that controversy or episode then what are my legal rights
can i send a legal notice and ask for public appology
in absence of public appolgu coming thru can i lodge a defamation case
if yes then can it be then what can be the amount that i can claim in the case
i would like to discuss the same with you if you feel its ok
regds
rachna
हम भी यही खबर देखना चाहते हैं
"रमेश कुमार सिरफिरा ने संघर्ष किया और जीत हासिल की"।
प्रणाम
दिनेशराय जी,
जीवन सघर्ष में उपयुक्त सलाह,साधुवाद!
एक विचार भी यहां संघर्ष कर रहा है,अपना मंतव्य
प्रस्तूत करने पधारें।
यहां
http://blog-parliament.blogspot.com/2010/07/blog-post_19.html
जरुर दिखेगी…