अब जा कर यह स्थिति बनने लगी है कि निर्माण कंपनियाँ कानून के प्रति जो असावधानियाँ बरतती है उस के खिलाफ कार्यवाही होने लगी है। हालाँ कि इस स्थिति के निर्माण में मीडिया की भूमिका प्रमुख है, क्यों कि दुर्घटना होने के तुरंत बाद जिस तरह से मीडिया संवाददाता खोज बीन कर कानूनी कमियों को खोज निकालते हैं और पुलिस व अन्य एजेन्सियों के लिए कानूनी कार्यवाही करना आवश्यक हो जाता है अन्यथा ठेकेदारों, अफसरों और नेताओं के कृष्ण धनबंधन उजागर होने लगते हैं। लेकिन कानूनी कार्यवाही की जो तलवार लटकी है उस से निपटने के लिए अब अफसरों ने हड़ताल का सहारा लिया है कि उन के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही न की जाए।
कुछ ही दिनों पहले राजस्थान के झालावाड़ जिले के नीमोदा के पास निर्माणाधीन 1200 मेगावाट के सुपर थर्मल पावर स्टेशन पर 6.7 टन की एल्बो उठाते समय रोप टूट जाने से हुए हादसे में तीन श्रमिकों की दब कर मृत्यु हो गई। बात राष्ट्रीय स्तर तक मीड़िया में गई तो पुलिस ने आनन फानन में सदोष मानव वध मानते हुए निर्माण उप कंपनियों के अफसरों को गिरफ्तार कर लिया और अदालत ने फिलहाल उन की जमानत लेने से इन्कार कर दिया। थर्मल के निर्माण में जुटे ठेकेदारों और निर्माण उपकंपनियों के अफसरों ने इस कदम के विरुद्ध हड़ताल कर दी है और थर्मल इकाई का निर्माण कार्य रुक गया है।
यह एक नई परिस्थिति है, और लगता है हमारे प्रशासन के पास इस नई परिस्थिति से निपटने के लिए केवल यही एक रास्ता बचा है कि कानून को अपना काम करने से रोक दिया जाए। वैसे भी जमीन के नीचे धन की जो नहरें बहती हैं उन के कारण कानून अपना काम कभी कभी ही कर पाता है। इस नई परिस्थिति का कारण यह है कि कानून ठेकेदारों और निर्माण उपकंपनियों के प्रबंधकों को इन लापरवाहियों के लिए दोषी मानता है। जब कि ये प्रबंधक वास्तव में साधारण वेतन पर रखे गए कर्मचारी होते हैं। उन की स्थिति मजदूरों की अपेक्षा कुछ ही बेहतर होती है और रोजगार बनाए रखने के लिए अपने नियोजक की हर अच्छी बुरे काम को अंजाम देते रहते हैं। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि इस तरह की दुर्घटना होने पर मुख्य निर्माण कंपनी के निदेशकों/मालिकों और उप निर्माण कंपनी के मालिकों और ठेकेदारों को ही इस तरह की दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मानने के लिए कानन बनना चाहिए। क्यों कि असल में सुरक्षा की आवश्यकता को दरकिनार करने का काम धन बचाने के लिए उन्हीं के निर्देशन पर संपन्न होता है औऱ बचे हुए धन के स्वामी भी वे ही बनते हैं। इस तरह यदि किसी दुर्घटना के लिए कोई अपराधिक लापरवाही का मामला बनता है तो सजा का भागी भी वस्तुतः उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो कि उस व्यवसाय से अधिक से अधिक धन कमाते हैं। उन्हीं की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि जिस कार्य से वे धन कमा रहे हैं उस से मनुष्य के प्रति कोई अपराध घटित न हो।
लेकिन अब तक जो कानून हैं उन में हमेशा कुछ विशिष्ठ पदों पर नियुक्त अधिकारियों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। ये अधिकारी बड़ी कंपनियों में तो बड़े वेतन पाते हैं लेकिन मंझोले कारोबारों और उद्योगों में ये अधिकारी बहुत मामूली वेतनों पर काम कर रहे होते हैं। यही वजह है कि जब ठेकेदार कंपनियों के अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया तो वे ही हड़ताल पर उतर आए। उन का हड़ताल पर जाना बहुत वाजिब लगता है। क्यों कि वे सारे काम तो अपने मालिकों के निर्देशो
Sahi hai
सहमत है जी आप से
बिल्कुल सही कहा आपने.
रामराम
सही कहा आपने |