लिव-इन संबंधों को एक बार और सुप्रीमकोर्ट की मान्यता
|छह माह पूर्व जब महाराष्ट्र सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में लिव-इन-रिलेशनशिप को सम्मिलित करने का प्रस्ताव किया था तो माध्यमों में वह चर्चा का विषय बना था। तीसरा खंबा पर भी कुल पाँच आलेख
(1), (2), (3), (4), (5) इस संबंध में लिखे गए थे। इन में यह स्पष्ट किया गया था कि अनेक मामलों में इन संबंधों को वर्षो से कानूनी मान्यता प्राप्त है। अब सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 29 अप्रेल 2009 को निर्णय सुनाते हुए एक और मामले में लिव-इन-रिलेशनशिप को मान्यता दी है।
इस मामले में पति और उस के दो संबंधियों के विरुद्ध धारा 498 ए एवं धारा 34 भा.दं.संहिता के अन्तर्गत माका मामला दर्ज हुआ था। पति लापता हो जाने से शेष दो व्यक्तियों के विरुद्ध विचारण हुआ और दोनों को दोषमुक्त घोषित कर दिया गया जब कि पति के विरुद्ध मामला लंबित रहा। इस बीच पति ने उच्चन्यायालय के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत एक पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत कर कहा कि क्यों कि वह पहले से विवाहित था इस लिए परिवादी स्त्री उस की वैधानिक रूप से विवाहित पत्नी नहीं है। इस कारण से मामले के तथ्यों पर धारा 498 ए प्रभावी नहीं है और उस के विरुद्ध अभियोजन को निरस्त किया जाए। उच्च न्यायालय इस याचिका को मात्र इस कारण से निरस्त कर दिया कि इस में तथ्यों के विवादित प्रश्न निहीत हैं। उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधिपति डॉ. अरिजित पसायत और असोक कुमार गांगुली ने मामले की सुनवाई की डॉ. अरिजित पसायत ने इस मामले में निर्णय दिया।
इस निर्णय में विवाह की संपूर्ण व्याख्या करते हुए तथा पूर्व में दिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों को उदृत करते हुए विस्तार से ऐसे विवाह से उत्पन्न परिस्थितियों पर चर्चा की गई जो कि किसी तकनीकी कारण से अवैध घोषित कर दिया गया हो। अंत में इस निर्णय पर पहुंचा गया कि धारा 498ए तथा धारा 304बी भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराधों के मामले में इस तथ्य से कोई अंतर नहीं पड़ेगा कि ऐसा विवाह किसी तकनीकी कारण से अवैध है। क्यों कि इन अपराधों का मूल उद्देश्य वैवाहिक संबंधों के अंतर्गत किसी स्त्री के विरुद्ध की जा रही क्रूरता से है। लेकिन यह सिद्धान्त धारा 494 भारतीय दंड संहिता के मामले में यह सिद्धान्त लागू नहीं होगा। इस तरह इस निर्णय से लिव-इन-रिलेशनशिप को धारा 498ए तथा 304बी के मामलो में सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दे दी है।
अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने के लिए आभार
अच्छी जानकारी। परन्तु सब कानूनों की तरह इसका भी उपयोग व दुरुपयोग दोनों किसी न किस तरह जरूर किए जाएँगे।
घुघूती बासूती
जमाना बदल रहा है।
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किस्म किस्म के आम
क्या लडकियां होती है लडको जैसी
अच्छी जानकारी से रूबरू कराने के लिए आपका आभार !
एक अच्छी जानकारी। आज ही एक वेब साइट पर पढ़ा कि महिला ही महिला का बलात्कार नहीं कर सकती है, कम से कम क़ानूनन। आप क्या इस मुद्दे पर रौशनी डाल सकते हैं
जिन्हें साथ रहना अच्छा लगता है वो तो रहेंगे । ताऊ और समीर जी की तरह उमर निकल जाने की दुहाई नही देंगे । जानकारी अच्छी लगी ।
अच्छी जानकारी ..शुक्रिया
शायद यह कानून आने मे समय लग गया. समीर जी वाली बात सही है.:)
रामराम.
सही जानकारी .
dinesh jee, mujhe lagtaa hai ki is nirnay kaa uddeshya ye raha hoga ki log rishte bana kar baad mein saaf na nikal jaayein aur unhein kahin to ghera jaa sake, banki liv in ko kaanoonee maanaytaa dene se galat hee hoga, kam se kam bhaartiya samaaj main to…..
अपने तो अब किसी काम का न रहा यह कानून!! 🙂
पता नहीं कानूनी जामा पहनाने से कितना फर्क पड़ता है. मैं कई लिव-इन वाले लोगों को जानता हूँ. बिना मान्यता के भी तो लोग रहते ही हैं !