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लोक अदालत में निर्णय किया है तो उस का सम्मान करें।

लोक अदालत 1समस्या-

यश ने कैथल, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-

मेरे भाई, माँ, पिताजी के 498a, 506, 406 के मुक़दमे में लोक अदालत द्वारा समझौता हुआ है लोक अदालत में दिए गए तथ्य इस प्रकार हैं। 1 – बच्चा माँ के पास रहेगा। 2 – दोनों पति पत्नी 13b के अंतर्गत तलाक लेंगे। 3 – पत्नी अपने सभी केस वापस लेगी और भविष्य में कोई केस नहीं करेगी। 4 – पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता और बच्चे के भी गुजारा भत्ता प्राप्त कर लिया है जो 150000 रुपये है। जिस में से 75000 रूपये बच्चे के नाम फिक्स डिपॉज़िट किये जायेंगे जो कि बच्चे के वयस्क होने तक कोई नहीं निकलेगा और उपरोकत राशि किसी राष्ट्रीय बैंक के मांग पत्र (डी,डी) द्वारा पति द्वारा पत्नी को तलाक के समय दी जाएगी    5- यदि पति 13b में तलाक से इंकार करता है तो उपरोकत राशि पत्नी कानूनन प्राप्त करेंगी और यदि पत्नी मना करेंगी तो राशि वापिस पति को मिलेगी और उपरोक्त शब्दों से ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है। ये शब्द ज्यो के त्यों है और सभी केस उठा लिए गए हैं। बस 13 बी डालना बाकी है जो की 6 तारीख से पहले डालना है। समस्या 1- क्या हम अब किसी भी प्रकार से बच्चे को प्राप्त कर सकते है, यदि बच्चे की माँ दूसरी शादी कर ले और बच्चे को अपने साथ दूसरे पति के पास ले जाये या अपने मायके के पास छोड़ दे तो? बच्चे की माँ के पास आजीविका के कोई साधन नहीं है जब कि मेरा भाई एक कॉन्ट्रेक्ट जॉब पर है। 2 क्या उपरोक्त राशि भविष्य में बच्चे की माँ बिना हमे सूचना दिए या बच्चे की आवश्यकता के बिना निकलवा सकती है? 3 लोक अदालत में लिखकर किये गए करार को तोड़ने का असर क्या होगा? 4 – बच्चे से मिलने के हमारे अधिकार किस प्रकार लागू होंगे? 5- क्या हम मानहानि का दावा कर सकते हैं? 6 – मेरे एक भाई को पुलिस ने इस मामले में निर्दोष बताते हुए जाँच में 4 साल पहले निकाला था और समझौता इस मामले में अब हुआ है, क्या वो भाई मानहानि का दावा कर सकता है?

समाधान-

प ने पूरी सूचना नहीं दी है। क्या 498-ए, 506, 406 का मुकदमा समाप्त हो गया है, यदि यह सही है तो यह राजीनामे की बड़ी सफलता है। अन्यथा इस के लिए भी उच्च न्यायालय जा कर रिविजन करवा कर इसे समाप्त करवाना पड़ता है। अभी लोक अदालत में एक राजीनामा हुआ है। उस का निष्पादन होने दीजिए। धारा 13 बी में विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाए, और सभी मुकदमे समाप्त हो जाएँ। इसी पर अपना ध्यान केन्द्रित कीजिए। एक बार यह हो ले बाकी के प्रश्नों पर बाद में सोचना ठीक रहेगा। फिलहाल लोक अदालत के समझौते का सम्मान करें और अपेक्षा करें कि दूसरा पक्ष भी यही करेगा। बाद में कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उत्पन्न हुई समस्या के बारे में तब सोचा जाए, अभी से नहीं।

च्चे के बारे में राजीनामे में केवल यह तय हुआ है कि वह माँ के पास रहेगा। उस में पिता के बच्चे से मिलने के बारे में कुछ नहीं लिखा गया है। विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने के बाद इस मामले में दोनों पक्ष आपस में कुछ तय कर सकते हैं। यदि तय न कर सकें तो मामले को फिर से न्यायालय के समक्ष ले जाया जा सकता है। बच्चे की कस्टड़ी प्राप्त करने की बात बहुत प्रीमैच्योर है। यदि परिस्थितियाँ बदलती हैं तो बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने के लिए न्यायालय को आवेदन किया जा सकता है जिस का निर्णय इस तथ्य पर निर्भर करेगा कि बच्चे का हित किस बात में है। जो राशि आप ने दी है वह आप दे चुके हैं। पत्नी तो उसे दी गई राशि का उपयोग कैसे भी कर सकती है। बच्चे के लिए जो राशि जमा होगी वह जमा ही रहेगी जब तक कि बच्चा बालिग नहीं हो जाता। वह बच्चे को ही प्राप्त होगी। इस कारण उस मामले में संशय की कोई स्थिति नहीं है।

मामला राजीनामे से समाप्त हुआ है। जिस का अर्थ यह है कि दोनों पक्षों के बीच एक सहमति बन गई है। इस कारण मानहानि का कोई मामला नहीं बनता है। यदि एक भाई को पुलिस ने निकाल दिया था तो उस का कोई अभियोजन भी नहीं हुआ था। इस कारण उस की मानहानि का मामला भी नहीं बनेगा। मानहानि के मामले से कुछ लाभ होने वाला नहीं है।