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वसीयत को प्रोबेट कराना कब जरूरी है?

समस्या-

मैं हिन्दू हूँ।  मेरे पति की दो बहने हैं तथा कोई भाई नहीं है। सन् 1987 में बड़ी बहन की शादी हो गई। छोटी बहन की शादी 2002 में हुई। सन् 2001 में ससुर जी का देहांत हो गया।  सन् 2000 में मेरे ससुर जी ने मेरे पति के पक्ष में एक रजिस्टर्ड वसीयत निष्पादित की थी जिसमें अपनी सारी चल-अचल सम्पति उन्हें दे गए हैं। दोनों बहनों को वसीयत में किसी भी प्रकार का हक नहीं दिया गया है।  ससुर जी की मृत्यु के बाद अभी तक वह वसीयत ज्यों का त्यों रखी हुई है।  कृपया इस सम्बन्ध में मार्गदर्शन करें कि क्या इस वसीयत के प्रोबेट के लिए हमें कोई कार्यवाही करनी होगी? अथवा जब भविष्य में कोई विवाद उत्त्पन्न हो तब हमें उस वसीयत को बाहर निकालना चाहिए? क्या इस वसीयत के होते हुए दोनों बहनों को पिता की संपत्ति में कोई हक प्राप्त हो सकता है? 2005 के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम संशोधन के अनुसार अब पुत्रियाँ भी पुत्र के बराबर उत्तराधिकार प्राप्त कर सकती हैं,  क्या इस मामले में यह लागू होगा?

-विभा उपाध्याय, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश

समाधान-

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संपत्ति को वसीयत करने का अधिकार है।  इसी अधिकार के अंतर्गत आप के ससुर जी ने उन की चल-अचल संपत्ति वसीयत की है। वसीयत 2000 में हुई तथा ससुर जी का 2001 में देहान्त हो गया। उस के बाद 2002 में आप के पति ने अपनी छोटी बहिन का विवाह कर के अपने पिता के शेष दायित्व का निर्वाह भी कर दिया है।

 

कोई व्यक्ति यदि अपनी संपत्ति की वसीयत न करे और उस का देहान्त हो जाए तो ही हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उस के उत्तराधिकारियों को उस संपत्ति में हित प्राप्त होंगे। लेकिन यदि वसीयत कर दी जाए तो फिर उस व्यक्ति की संपत्ति वसीयत के अनुसार लोगों को प्राप्त होगी, न कि उत्तराधिकार के कानून के अनुसार।

प के ससुर जी अपनी समस्त चल अचल संपत्ति की वसीयत कर गए हैं इस कारण से उन की कोई निर्वसीयती संपत्ति शेष नहीं रह गई है जिस में पुत्रियों को अधिकार प्राप्त हो। केवल बंगाल, बिहार, उड़ीसा और आसाम प्रान्तों में तथा मद्रास व बम्बई उच्च न्यायालयों के मूल अधिकार क्षेत्रों में निष्पादित की गई तथा उन में स्थिति संपत्तियों के संबंध में निष्पादित की गई वसीयत को ही प्रोबेट कराने की आवश्यकता है, अन्यथा नहीं। आप के मामले में वसीयत की गई संपत्ति न तो उक्त क्षेत्रों में स्थित है और न ही उक्त क्षेत्रों में निष्पादित की गई है। इस कारण से उसे प्रोबेट कराने की आवश्यकता नहीं है। जब कभी विवाद हो, तब उक्त वसीयत का  उपयोग किया जा सकता है।

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