एक पाठक ने पूछा है–
महोदय,
मेरे द्वारा किया गया हिसाब-किताब हेतु एक दीवानी मुकदमा अदालत में विचाराधीन है इस वाद में मैं ने 2 किलोवाट का कनेक्शन लिया है जिस में मैं अपना वर्कशॉप चलाता हूँ। कनेक्शन लेते समय जो अनुबंध हुआ था वह किस प्रकार का हुआ था मुझे पता नहीं है। बिजली विभाग इसे न्यायालय में उपलब्ध नहीं करवा रहा है। वह केवल इतना कह रहा है कि आप का कनेक्शन दो किलोवाट का व्यवसायिक है। मैं ने भी दो किलोवाट का सिंगल फेस का कनेक्शन लिखा है लेकिन मैं चाहता हूँ कि दावे में संशोधन कर के मैं उस में डोमेस्टिक पावर लिख दूँ। क्या यह संभव है तो वह किस कानून के अंतर्गत हो सकता है। जब कि मुकदमा सारी प्रक्रिया बाद गवाही-बयान की स्टेज पर है। कृपया हमें उचित सलाह दें जिस से हमें न्याय मिल सके।
उत्तर–
प्रिय पाठक!
आप ने वादपत्र में संशोधन के कानून के बारे में पूछा है। सभी दीवानी मुकदमों में प्रक्रिया का निर्धारण दीवानी प्रक्रिया संहिता के अनुसार होता है। इस कारण से आप को इस से संबंधित प्रावधान इसी कानून में तलाशने चाहिए। आप ने मुकदमा किया है तो वकील भी किया ही होगा। आपने अपनी समस्या अपने वकील के सामने भी रखी होगी तो उन्हों ने भी आप को सही उत्तर दिया ही होगा। आप के वकील ने आप को क्या उत्तर दिया यह आप ने यहाँ नहीं बताया है।
दीवानी प्रक्रिया संहिता का आदेश 6 नियम 17 अभिवचनों में संशोधन करने के संबंध में है। किसी भी प्रकरण में वाद पत्र, लिखित कथन (जवाब दावा) प्रार्थना पत्र आदि में किए गए कथन अभिवचन कहलाते हैं। इन में संशोधन के लिए प्रक्रिया दीवानी प्रक्रिया संहिता के इसी प्रावधान से निर्धारित होती है। इस का मूल पाठ इस तरह है —
आदेश 6 नियम 17 दीवानी प्रक्रिया संहिता
अभिवचन का संशोधन – न्यायालय दोनों में से किसी भी पक्षकार को कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम अनुज्ञा दे सकेगा कि वह अपने अभिवचनों को ऐसी रीति से और एसे निबंधों पर, जो न्यायसंगत हो को परिवर्तित करे या संशोधित करे और सभई ऐसे संशोधन किए जाएंगे जो पक्षकारों के मध्य वास्तविक विवादग्रस्त प्रश्नों के अवधारण प्रयोजनार्थ आवश्यक हों।
परंतु संशोधन हेतु कोई भी प्रार्थना पत्र स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचता कि पक्षकार की पूर्ण सम्यक तत्परता के बावजूद पक्षकार वाद विचारण प्रारंभ होने के पूर्व उक्त तथ्य को किसी भी प्रकार से नहीं उठा सकता था।
कोई भी वादी या प्रतिवादी इस प्रावधान के अंतर्गत अपने वाद-पत्र या लिखित कथन में संशोधन कर ने का आवेधन कर सकता है। लेकिन आवेदक को यह अदालत को इस बात के लिए संतुष्ट करना होगा कि वह इस संशोधन के लिए वाद का विचारण आरंभ होने के पूर्व आवेदक किसी भी प्रकार से प्रस्तावित संशोधन के लिए आवेदन प्रस्तुत नहीं कर सकता था। न्यायालय उचित समझने पर आप के आवेदन को स्वीकार कर सकती है, लेकिन वह कोई भी शर्त लगा सकती है। आम तौर पर यह शर्त समुचित राशि हर्जाने के बतौर विरोधी पक्षकार को अदा करने की होती है।
आप के मामले में जो तथ्य आप ने बताए हैं उन के अनुसार आप का कनेक्शन दो किलोवाट का है और आप उस से एक वर्कशॉप चलाते हैं। इन तथ्यों से यह साबित होता है कि आप का कनेक्शन वास्तव में व्यवसायिक है। हो सकता है कि आप ने कनेक्शन लेने के समय घरेलू कनेक्शन के लिए आवेदन किया हो। लेकिन यदि ऐसा होता तो बिजली विभाग वाले आप के द्वारा व्यवसायिक उपयोग करने पर आप पर जुर्माना वसूल कर सकते थे। हो सकता है उन्होंने ऐसा किया हो। मुझे नहीं लगता कि आप द्वारा प्रस्तावित संशोधन आप के वाद-पत्र में चाहने पर अदालत उसे अनुमति प्रदान करेगी। मुझे यह भी नहीं लगता कि इस संशोधन से आप को कोई लाभ होगा। आप ने उस कनेक्शन को न व्यवसायिक बताया है और न ही घरेलू और न ही आप को पता है कि आप ने किस तरह के कनेक्शन के लिए आवेदन किया था। इस तरह आप का वादपत्र सही है। यदि संदर्भित दस्तावेज बिजली विभाग से प्रस्तुत कराना चाहते हैं तो आप इस के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 11 नियम 12 व 14 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।
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अच्छी जानकारी,आभार.
इसी प्रकार का एक फैसला मैने अखबार में पढ़ा था | यह खबर झुंझुनू की थी | एक हलवाई जिसके यहाँ कोई भी मशीन नहीं चलती थी | उसकी दूकान बाजार में ना होकर मोहल्ला में थी | उससे बिजली विभाग जबरन व्यावसायिक उपयोग का बिल चाहता था उसका कनेक्शन घरेलू श्रेणी का था | उस पर उड़न दस्ता ने जुर्माना भर दिया | मजबूरन उपभोक्ता को अदालत जाना पड़ा वहा इस का फैसला उपभोक्ता के हक में दिया गया था | उसमे स्पष्ट किया गया कि उस दूकान में सभी कारीगर घर के सदस्य थे | कोई भी मशीन नहीं चलती थी | वहा दुकानों कि संख्या आबादी के १५ % से कम थी | अत यह दुकान व्यावसायिक श्रेणी में नहीं आती है |
इसी प्रकार का एक फैसला मैने अखबार में पढ़ा था | यह खबर झुंझुनू की थी | एक हलवाई जिसके यहाँ कोई भी मशीन नहीं चलती थी | उसकी दूकान बाजार में ना होकर मोहल्ला में थी | उससे बिजली विभाग जबरन व्यावसायिक उपयोग का बिल चाहता था उसका कनेक्शन घरेलू श्रेणी का था | उस पर उड़न दस्ता ने जुर्माना भर दिया | मजबूरन उपभोक्ता को अदालत जाना पड़ा वहा इस का फैसला उपभोक्ता के हक में दिया गया था | उसमे स्पष्ट किया गया कि उस दूकान में सभी कारीगर घर के सदस्य थे | कोई भी मशीन नहीं चलती थी | वहा दुकानों कि संख्या आबादी के १५ % से कम थी | अत यह दुकान व्यावसायिक श्रेणी में नहीं आती है |
आभार, जानकारीपूर्ण!
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हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.