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वारंट केस में प्रसंज्ञान अथवा आरोप निश्चित करने के आदेश के विरुद्ध उपाय

समस्या-

इरशाद ने हाथरस उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मैं एक सरकारी अध्यापक हूँ। मेरी शादी 31 अक्टूबर 2012 को हुई थी। तब से आज तक हम पति-पत्नी में कोई विवाद नहीं है। किंतु मेरे ससुर द्वारा लालच-वश दिनाँक 3 अक्टूबर 2017 को मेरे खिलाफ दहेज उत्पीड़न सम्बन्धित झूठे प्रार्थना पत्र पुलिस को प्रेषित किए गए। पत्नी का शपथ पत्र लेकर पुलिस ने मेरे फेवर में रिपोर्ट लगा दी। तब मेरे द्वारा उनके पते पर मानहानि का कानूनी नोटिस भेजा गया। जिसका जवाब उनके द्वारा मुझे भेजा गया और उसमें भी निराधार आरोप लगाए गए। तब मेरी पत्नी द्वारा 25/12/2017 को उनके खिलाफ धारा 384 की F.I.R. दर्ज कराई गई। दिनांक 14/01/18 को ये मेरे घर आये और धमकी देकर गए, जिसका परिवाद 24/01/18 को माननीय न्यायालय में मेरे द्वारा दायर किया गया, जिस पर माननीय न्यायालय ने धारा 323, 504, 506 में संज्ञान ले लिया है।

इसी दरमियान 8/02/2018 को उन्होंने ने भी न्यायालय में मेरे विरुद्ध एक झूठा परिवाद योजित किया। की मैंने 29 मार्च 2015 को उनसे 1.5 लाख रुपये अपनी नौकरी लगाने के लिए लिए (जबकि विभाग में मेरी नियुक्ति 21 जनवरी 2015 को हो चुकी थी)। जब उन्होंने पैसा मांगा तो 28/01/2018 को मैं उनके घर गया और गाली गलोज की।

माननीय न्यायालय ने सिर्फ झूठे गवाहों के आधार पर ही मुझे धारा 420, 504 506 में तलब किया है। उनके द्वारा 17/11/17 को मेरे द्वारा भेजे गए नोटिस का जवाब दिया गया था, उसमें भी कही 1.5 लाख रुपये के लेन-देन का कोई जिक्र नहीं था। मेरी धर्मपत्नी हर तरह से मेरे साथ हैं। कोई उपाय बताएं।

समाधान-

आप के ससुर ने आप के विरुद्ध धारा 200 दं.प्र.संहिता में मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया और उस पर बयान आदि लेने के बाद मजिस्ट्रेट ने प्रसंज्ञान ले कर आप को समन भेजा है। यह तो आप को ही पता है कि उक्त परिवाद मिथ्या तथ्यों पर आधारित है। आप के विरुद्ध धारा 720 होने के कारण यह एक वारंट केस है। इस कारण से इस प्रकरण में आप के मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होने पर आरोप सुनाए जाने के पूर्व परिवादी अर्थात आप के ससुर के साक्षियों के बयान न्यायालय में होंगे उस के बाद ही न्यायालय यह निर्णय करेगा कि आप के विरुद्ध कोई केस बनता है या नहीं। यदि साक्ष्य से कोई केस आप के विरुद्ध नहीं बनता है तो आप को उसी स्तर पर धारा 245 के अंतर्गत आरोप मुक्त किया जा सकता है। यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि आप के विरुद्ध कोई केस बनता है तो वह आपके विरुद्ध आरोप निश्चित करेगा और दुबारा से समस्त साक्ष्य लेगा।

यदि आप समझते हैं कि आप के विरुद्ध मजिस्ट्रेट द्वारा प्रसंज्ञान ही गलत लिया गया है तो आप मजिस्ट्रेट के प्रसंज्ञान लिए जाने के आदेश के विरुद्ध सेशन न्यायालय में अथवा उच्च न्यायालय में रिवीजन याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। रिवीजन याचिका सेशन न्यायालय में प्रस्तुत करना उचित होगा या उच्च न्यायालय में या कोई रिवीजन याचिका प्रस्तुत करना उचित नहीं होगा यह केवल आप के विरुद्ध प्रस्तुत की गयी शिकायत, दस्तावेज और प्रसंज्ञान पूर्व लिए गए साक्षियों के बयान पढ़ कर ही कोई अच्छा वकील आप को राय दे सकता है।

यदि आप इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि प्रसंज्ञान आदेश के विरुद्ध रिविजन प्रस्तुत करना ठीक नहीं है या रिविजन के लिए निर्धारित समय निकल चुका है तो धारा 245 के अतंर्गत आप के विरुद्ध आरोप तय करने का आदेश होने पर आप उस आदेश के विरुद्ध भी रिविजीन याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं।