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विवाह पति पत्नी के सहयोग और समन्वय से चलता है।

handshakeसमस्या-

आंगिरस पाण्डे इलाहाबाद. उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरा विवाह नवम्बर 2008 में हुआ था, लड़की गवर्नमेंट जॉब में है, मैं प्राइवेट जॉब में था। विवाह में जयमाल के समय ही कुछ उपद्रव हो गया था। काफ़ी समझाने के बाद मैं ने दिन में विवाह किया। हम लोगों के बीच विवाद होता रहा। अप्रेल में वो चली गई, फिर नहीं आई। दिसंबर 2009 में बेटा उस के मायके में ही हुआ। उस ने कोई सूचना नहीं दी। जब 6 माह का हो गया तो मैं एक रिश्तेदार के साथ वहाँ गया, काफ़ी बात के बाद वो आई और ठीक एक महीने के बाद अगस्त 2010 में अपने घर से 8 लोगों को बुला कर बहुत सा सामान लेकर चली गई। हम लोग पुलिस स्टेशन गये और एक प्रार्थना पत्र दे कर सामान की प्राप्ति ले कर अपने पास रख ली। फिर 5 दिसंबर 2012 को कोर्ट का समन आया। धारा 13 में तलाक़ के मुकदमे का और जब नकल निकलवाई तो पता चला 2 साल से 498ए का मुक़दमा भी चल रहा है, और उस ने तलाक़ मांगने के साथ में 10 लाख रुपए भी मांगे हैं। 125 का भी मुक़दमा किया है। मै ने जवाब में यही लिखा है कि मैं उसे रखना चाहता हूँ। 2 साल 3 महीने में सिर्फ़ मिडियेशन हुआ है। मैं इस मुक़दमे को जल्द से जल्द ख़त्म करना चाहता हूँ। आब मैं भी तलाक चाहता हूँ। अगर मैं सीधे तलाक स्वीकार कर लूँ तो क्या लोक अदालत में या अन्य किसी तरीके से जल्द से जल्द ख़त्म हो सकता है और मुझे लगभग कितने पैसे देने पड़ेंगे?

समाधान-

प ने यह नहीं बताया है कि विवाह में जयमाल के समय क्या उपद्रव हुआ था और क्यों। उसी से हमें पता लगता कि आखिर आप के वैवाहिक संबंधों में विवाद का कारण क्या है। खैर आप बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं। लेकिन विवाह पति पत्नी के सहयोग और समन्वय से चलता है। विवाह के आरंभ से ही इस सहयोग और समन्वय की इच्छा दोनों के मन में होना चाहिए और इसे लगातार बलवती होते रहना चाहिए। इस इच्छा के अभाव में भारतीय विवाह में लड़की के माता पिता को बेटी का ब्याह करना होता है, और पुरुष और उस के परिवार को एक स्त्री को पत्नी बना कर घर में लाना होता है जो घर के कामों में हाथ बँटाए, वंश चलाए और उस पुरुष की यौनाकांक्षाओं की तुष्टि कर दे। लेकिन विवाह इतने से नहीं चलता। आप का मामला क्या और कैसा था यह आप जानें।

प की पत्नी सरकारी नौकरी कर रही है, आत्मनिर्भर है। उस ने सही सोचा कि वह उक्त साँचे में कभी फिट नहीं हो सकती। आप भी देर सबेर उसी निर्णय पर पहुँचे हैं। बेहतर है कि आप दोनों का विवाह विच्छेद हो जाए।

भारतीय अदालतों, विशेष रूप से पारिवारिक न्यायालयों में मुकदमों की भरमार है वहाँ कोई भी कंटेस्टेड मुकदमा पांच दस साल से कम में निर्णीत हो जाए तो आश्चर्य होता है। यदि आप चाहते हैं कि इस विवाह से छुटकारा मिले और नया जीवन आरंभ करें तो आप को बातचीत के माध्यम से हल निकालना होगा। आप लोक अदालत में अपना मामला रखे जाने का आवेदन दे दें। वहाँ बातचीत के माध्यम से आप सारी चीजों का हल तय कर लें और उस तयशुदा रीति से विवाह विच्छेद व बच्चे के प्रति दायित्व निर्धारित हो जाएँ।

ब कोई पत्नी विवाह विच्छेद के इरादे से न्यायालय जाती है तो 125 दं.प्र.संहिता और 498ए के मुकदमे दबाव बनाने के लिए अस्तित्व में आते हैं। लेकिन वे निराधार नहीं होते। आप की पत्नी सरकारी सेवा में है तो उसे भरण पोषण नहीं चाहिए लेकिन बच्चे के भरण पोषण का दायित्व तो आप का है। पत्नी जब तक आप के पास रही उस अवधि में कुछ तो ऐसा हुआ होगा जिस से 498ए भी बन ही जाए। इस धारा की क्रूरता की परिभाषा बहुत विस्तृत है।

प की पत्नी ने 10 लाख रुपए की मांग की है। हमें नहीं पता कि आप दोनों परिवारों की हैसियत क्या है। यदि पत्नी बालक के वयस्क होने और आत्मनिर्भर होने तक की जिम्मेदारी ले रही हो और आप को उस से मुक्त कर रही हो तो यह राशि अधिक नहीं है। फिर भी जब लोक अदालत में आप समझौता करने जाएंगे तो यह राशि तीन चार लाख कम हो सकती है। आप प्रयास करेंगे तो हल निकल आएगा। एक वर्ष की अवधि में इन सब चीजों से मुक्त हो सकते हैं।

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