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विवाह विच्छेद हो जाने के बाद पत्नी या पति जीवन साथी नहीं होते।

RTIसमस्या-

यसदानी खान ने रायपुर, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-

मैं रायपुर में ही हायर सेकण्डरी स्कूल मे प्रिंसपल के पद पर कार्यरत हूँ। मेरे स्टाफ मे कुलदीप भानू व्याख्याता पद पर कार्यरत है जिस की उम्र 40 वर्ष है कुलदीप ने अपनी शादी 23 वर्ष की उम्र में की थी। वह 30 साल की उम्र तक अपनी पत्नी के साथ रहा फिर दोनों सामाजिक समझौते के तहत तलाक लेकर अलग रहने लगे। 1 साल बाद कुलदीप ने दूसरा विवाह कर लिया। कुलदीप को अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहते हुए 9 साल हो गये हैं और उसके दो पुत्र भी हैं। जनवरी 2014 में कुलदीप की पहली पत्नि के भाई ने सूचना अधिकार के तहत कुलदीप की सारी गोपनीय जानकारी की मांग की। कुलदीप एक सरकारी कर्मचारी है जिससे उसके शासकीय गोपनीय चरित्रावली की जानकारी देना सूचना अधिकार के अंर्तगत नहीं था जिस से मैं ने उसको जानकारी नहीं दी। फिर उनके भाई उनके द्वारा राज्य सूचना आयोग में भी आवेदन किया मगर वहाँ भी उनको जानकारी देने से मना कर दिया गया। उसके बाद मार्च 2014 मे कुलदीप की पहली पत्नि ने रायपुर कुटुम्ब न्यायालय में भरण पोषण के लिए आवेदन किया और कुटुम्ब न्यायालय ने जुलाई 2014 में अंतरिम भरण पोषण की राशि तय कर दी आज तक कुलदीप अपनी पहली पत्नी को भरण पोषण की अंतरिम राशि देकर भरण पोषण कर रहा है। आज वर्तमान तक कुटुम्ब न्यायालय में कुलदीप और उनकी पहली पत्नी का केस चल रहा है फाईनल आदेश नहीं हुआ है। अब मार्च 2015 में कुलदीप की पहली पत्नी ने सूचना के अधिकार 2005 के तहत कुलदीप की शासकीय गोपनीय चरित्रावली की मांग की है कुलदीप की पहली पत्नी ने केन्द्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित निर्णय prashansha Sharma V/s Delhi Transco Ltd. No. CIC/SA/A/2014/000433 date 03.02.2015 के आधार पर आवेदन किया है। उनका कहना है कि सूचना के अधिकार कानून के तहत कोई भी अपने जीवन साथी की आय, सम्पत्ति निवेश आदि की जानकारी मांग सकता है। केन्द्रीय सूचना आयोग (सी. आई. सी) ने इस बारे में आदेश जारी कर दिये हैं। पति की कमाई आरटीआई के अधीन हो गयी है। सूचना आयुक्त ने नई रूलिंग दी है अभी तक यह सूचनाएँ थर्ड पार्टी के तहत गोपनीय होती थी। अब पति की कमाई और निवेश का ब्यौरा पत्नि मांग सकती है। यह सभी दलिलें कुलदीप की पहली पत्नि ने आवेदन में लिख कर मुझ से कुलदीप की गोपनीय जानकारियों की मांग की है। मैं आपको ये बताना चाहूंगा की मै नें सीआईसी के द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय को ध्यान से पढ़ा। मेरे हिसाब से उपरोक्त केस मेम सीआईसी ने सिर्फ आवेदिका और अनावेदक के लिए ही आदेश दिया है। उपरोक्त केस का फैसला केस से असंबंधित लोगों के लिए नहीं है और उपरोक्त केस में अनावेदक, आवेदिका का भरण पोषण नहीं कर रहा था इसलिए सीआईसी ने उपरोक्त केस का फैसला आवेदिका के पक्ष में किया। अब मै आपसे यह पुछना चाहता हूँ कि क्या सीआईसी ने ऐसा कुछ आदेश निकाला है जिसके तहत मुझे कुलदीप की गोपनीय जानकारीयाँ उनकी पहली पत्नी को देना पड़े, और अगर ऐसा कुछ नया नियम निकाला गया है तो सूचना के अधिकार 2005 के किस धारा में संशोधन/एड किया गया है और मुझे इन सभी नियमों की जानकारी किस बुक से प्राप्त हो सकता है। सीआईसी द्वारा उपरोक्त केस का निर्णय 03.02.2015 को लिया गया है और कुलदीप की पहली पत्नी के आवेदन के अनुसार सीआईसी द्वारा नई रूलिंग भी 03.02.2015 को पारित किया गया है। सीआईसी द्वारा उपरोक्त केस में पारित निर्णय के अनुसार जब कोई पति अपनी पत्नि का भरण पोषण नहीं कर रहा है तब पत्नि अपने पति से उनकी कमाई व निवेश का ब्यौरा मांग सकती है मगर यहाँ स्थिति यह है कि कुलदीप भानु अपनी पहली पत्नी का भरण पोषण न्यायालय के आदेश के अनुसार 15.07.2014 से कर रहा है तो आप बताइऐ कि क्या? कुलदीप की पहली पत्नी को उनके द्वारा मांगी गई जानकारी देना आवश्यक है या नहीं।

समाधान-

प की जानकारी के लिए बता रहे हैं कि सूचना के अधिकार कानून में कोई संशोधन नहीं किया गया है। यह केवल सूचना आयुक्त का निर्णय है। भारत का संविधान यह उपबंध करता है कि ऊंचे न्यायालय का निर्णय निचले न्यायालय पर बाध्यकारी होगा। इस कारण आप से यह मांग की जा रही है कि आप सूचना दें।

लेकिन इस मांग में कई खामियाँ हैं। आयुक्त का निर्णय यह कहता भी हो कि जीवन साथी की आय व संपत्ति के बारे में सूचना दिया जाना चाहिए, तो भी यह महिला उस व्यक्ति की जिस के बारे में आप से सूचना मांगी गयी है अब जीवन साथी अर्थात पत्नी नहीं है। उस की जीवन साथी तो उस की वर्तमान पत्नी है। जिसने सूचना मांगी है वह तो इस व्यक्ति से विवाह विच्छेद कर चुकी है। इस कारण आप को यह सूचना नहीं देना चाहिए।

दूसरी बात यह है कि यह आयुक्त का निर्णय है। कानून में कोई परिवर्तन नहीं है। और आप सूचना अधिकारी हो सकते हैं लेकिन न्यायालय नहीं हैं। आप पर यह निर्णय वैसे भी बाध्यकारी नहीं है। इस कारण आप के द्वारा यह निर्णय नहीं लेना चाहिए कि यह सूचना दी जाए। एक व्यक्ति की गोपनीय जानकारी सूचना के अधिकार के अन्तर्गत देना उचित नहीं है। यदि आप आवेदिका का आवेदन निरस्त करते हैं तो उसे अपील करने दीजिए। यदि अपील न्यायालय आप को निर्देश दे कि आप सूचना दें तो आप सूचना दे सकते हैं।

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