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व्यक्ति अपने जीवन काल में कभी भी अपनी वसीयत बदल सकता है।

समस्या-

श्री करणपुर/श्रीगंगानगर, राजस्थान से कुलदीप सिंह पूछते हैं –

मैं एक दत्तक पुत्र हूँ।  मेरे पास दत्तक ग्रहण का कोई प्रमाण नहीं है।  लेकिन मेरे स्कूल के सभी प्रमाण पत्रों, जाति प्रमाण पत्र, मूलनिवासी प्रमाण पत्र, मतदाता प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लायसेंस आदि में मुझे दत्तक ग्रहण करने वाले पिता का नाम अंकित है। मुझे दत्तक ग्रहण करने वाले पिता का 26 फरवरी 2004 को बीकानेर में देहान्त हो गया, मृत्यु के समय मैं मौजूद था तथा बाद में भी सिख परंपरा के अनुसार मैं ने उन के संस्कार किए।  मेरे पिता के नाम 30 बीघा कृषि भूमि थी जो उन्हें उन के पिता श्री जोधासिंह से पंजीकृत वसीयत से 1961 में प्राप्त हुई थी।  दत्तक ग्रहण करने वाले पिता के देहान्त के बाद नगर पालिका ने मुझे और मेरी बहिन के नाम वारिस प्रमाण पत्र जारी करने से इन्कार कर दिया। उन्हों ने केवल मेरी माँ का नाम वारिस प्रमाण पत्र में अंकित किया। इस के आधार पर मेरी माता श्रीमती सुरजीत कौर के नाम कृषि भूमि का इंतकाल (नामान्तरण) किया गया। मेरे पिता के चार बहनें हैं, उन में से एक शाम कौर ने 2004 में इंतकाल के विरुद्ध जिला कलेक्टर को अपील की। न्यायालय का निर्णय मेरी माता के हक में हुआ और मामला अब राजस्व अपील अधिकारी के न्यायालय में लंबित है। राजस्व मंडल ने भी स्थगन के प्रार्थना पत्र पर मेरी माता के हक में विगत 18 अक्टूबर को निर्णय किया है।  मेरी माता जी सारी संपत्ति मुझे देना चाहती हैं, उन्हों ने उक्त संपत्ति की वसीयत मेरे नाम पंजीकृत कराई है। अब दत्तक ग्रहण करने वाले पिता की एक और बहिन ने एसडीएम कोर्ट में संपत्ति के लिए मुकदमा किया है। मेरे अधिकार क्या हैं? मुझे इस मुकदमे में क्या करना चाहिए? क्या मैं अपनी माता जी के देहान्त के उपरान्त उन की संपत्ति प्राप्त कर सकता हूँ?

समाधान-

प की यह बात समझ नहीं आई कि नगर पालिका ने कौन सा वारिस प्रमाण पत्र जारी किया है? नगर पालिका के अधिकारी अधिक से अधिक यह तथ्य प्रमाणित कर सकते हैं कि मृतक की पत्नी और ने पुत्र-पुत्रियों में कौन जीवित हैं। उस प्रमाण पत्र का कोई बड़ा महत्व नहीं है।  यदि आप को गोद लिया था तो आप को इंतकाल (नामन्तरण) खोलते समय प्रतिवाद करना चाहिए था कि आप गोद पुत्र हैं। यदि कोई गोदनामा नहीं लिखा गया था और उसे पंजीकृत नहीं कराया गया था तो भी गोद लिये जाने के तथ्य को साक्षीगण के माध्यम से प्रमाणित किया जा सकता है। इस के लिए उन साक्षियों के बयान कराए जा सकते हैं जिन के सामने गोद लेने का समारोह संपन्न हुआ था। पर आप के प्रश्न से लगता है कि आप फिलहाल स्वयं को गोदपुत्र प्रमाणित नहीं करना चाहते।

प ने जो तथ्य रखे हैं उन से स्पष्ट है कि आप को दत्तक ग्रहण करने वाले पिता की जो संपत्ति थी वह उन्हें उन के पिता से पंजीकृत वसीयत से प्राप्त हुई थी। इस तरह यह संपत्ति आप को दत्तक ग्रहण करने वाले पिता की स्वअर्जित संपत्ति थी। उन की मृत्यु के उपरान्त आप और आप की माताजी दोनों ही उक्त संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं। किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार उक्त संपत्ति पर नहीं है। आप को दत्तक ग्रहण करने वाले पिता की एक बहिन का दावा जिस तरह खारिज हुआ है वैसे ही दूसरी का भी खारिज हो जाएगा। उन की सिर्फ इतनी चिंता करने की आवश्यकता है कि उन के द्वारा किए गए मुकदमे आप की या आप की माता जी की लापरवाही के कारण आप के विरुद्ध तय नहीं हो जाएँ।

प की माता जी ने उन की संपत्ति की आप के नाम पंजीकृत वसीयत की है।  लेकिन यह वसीयत आप की माताजी के जीवन काल के उपरान्त ही लागू होगी। यदि आप की माता जी अपने जीवनकाल में उक्त वसीयत को रद्द कर दें और नई वसीयत किसी अन्य व्यक्ति के नाम कर दे तो आप इस संपत्ति से वंचित हो सकते हैं। हालांकि आप के गोद पुत्र होने के नाते उक्त संपत्ति के अर्धांश पर आप का अधिकार है। वे केवल आधी संपत्ति ही वसीयत कर सकती हैं। लेकिन आप ने आप की माता जी के नाम जो इन्तकाल खुला है उसे चुनौती नहीं दी है। इस कारण यह माना जाएगा कि या तो आप गोद पुत्र नहीं हैं और हैं भी तो आप ने अपना अधिकार त्याग दिया है। आप चाहें तो अभी भी आप उस इंतकाल के विरुद्ध अपील प्रस्तुत कर सकते हैं और स्वयं को गोद पुत्र प्रमाणित कर इंतकाल अपने नाम करवा सकते हैं। आप अपनी माता जी के विरुद्ध घोषणा का दीवानी वाद प्रस्तुत कर के भी स्वयं को गोद पुत्र प्रमाणित कर सकते हैं। लेकिन यदि आप को लगता है कि आप की माता जी उक्त वसीयत किसी स्थिति में रद्द नहीं करेंगी तो आप को गोद पुत्र प्रमाणित करने की कार्यवाही बेकार और निरर्थक लगेगी।  लेकिन वसीयत तो वसीयत है उसे वसीयत करने वाला जीवन के अंतिम क्षण तक भी बदल सकता है।

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