व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं क्रूरता से महिला और बच्चों के संरक्षण के कानून
|उत्तर प्रदेश के एक नगर से 24 वर्षीय नन्दिनी का फोन मिला, वह एम. ए. है। वह बता रही थी कि उस के पति रात के डेढ़-दो बजे तक किसी अन्य महिला से बात करते रहते हैं। उस के साथ उन के रिश्ते भी हैं। उसे उसका देवर ही बताता है कि पति कब और कहां उस महिला के साथ देखे गए। पति से बात करती है तो बदले में मारपीट मिलती है। उस के साथ सास का व्यवहार भी ठीक नहीं है। एक साल का बच्चा है। बच्चे के प्रति भी पति और सास का व्यवहार ठीक नहीं है। उसे लगता है कि न केवल उस का अपितु उस के बच्चे का भविष्य अंधकार में है। मायके में उसे कोई संरक्षण उपलब्ध नहीं है। उस का मोबाइल कभी भी छिन सकता है। वह अपने ससुराल से निकल जाना चाहती है और अपने पैरों पर खड़ी हो कर बच्चे को पाल-पोस कर किसी लायक बनाना चाहती है। वह पूछती है कि वह क्या करे?
इस बीच मेरे पास एक महिला अपनी सत्रह वर्षीय पुत्री को साथ ले कर आती है। विवाह को तेईस वर्ष हो चुके हैं। पुत्री ने बारहवीं की परीक्षा दी है और इंजिनियरिंग करना चाहती है। एक बड़ी पुत्री बाहर किसी कॉलेज में पढ़ रही है। पति दुकानदार हैं। विवाह के बाद से ही अच्छा दहेज न लाने के कारण सास ने उस के साथ दुर्व्यवहार किया। पति रोज शराब के नशे में घर लौटता है। महिने में दो-बार पति उस की पिटाई कर देता है। दोनों पुत्रियों के साथ भी उस का व्यवहार ठीक नहीं है। अब तक वह दोनों पुत्रियों की पढ़ाई का खर्च उठा रहा था। घर खर्च के लिए उतना ही देता है जितने में मुश्किल से खर्च चल जाए। एक छोटे मकान में वे रहते हैं जो महिला के स्वयं के नाम है। एक रात को पति ने महिला और बेटी के साथ मारपीट की। दोनों माँ बेटी ने एक कमरे में बन्द रह कर रात बिताई। अगले दिन माँ बेटी ने खुद को घर में बंद कर लिया और पति को अंदर न आने दिया। पति ने तीन चार दिन चक्कर लगाए लेकिन अब घर आना बंद कर दिया है। दस वर्ष पहले महिला की रिपोर्ट पर 498-ए का मुकदमा पति के विरुद्ध बना था। लेकिन पति ने तब अच्छे व्यवहार का वायदा कर समझौता कर लिया। पति का व्यवहार कुछ महिने ठीक रहा, उस के बाद फिर से मार पिटाई आरंभ। महिला अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती। लेकिन यह भी चाहती है कि पति उस की बेटियों की पढ़ाई, उन के विवाह और उस का व बेटियों के पालन पोषण का खर्च देता रहे। पति ने खर्च देने से हाथ खींच लिया है। वह जानता है कि महिने भर में ही पत्नी और बेटियाँ मोहताज हो जाएंगी। इस महिला के पास भी मायके से कोई संरक्षण नहीं है और वह इस स्थिति में भी नहीं कि इस उम्र में वह अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। होना भी चाहे तो भी उसे कुछ समय किसी न किसी की मदद मिलना जरूरी है। पति सारे हालात जानता है वह इसी तरह उन्हें ब्लेक मेल करता रहेगा।
संसद ने कानून बना रखा है। पति और ससुराल वाले शारीरिक या मानसिक क्रूरता का व्यवहार करें तो धारा 498-ए में पति को जेल भेजा जा सकता है उसे सजा दी जा सकती है। पत्नी को अलग रहने का अधिकार भी है। उक्त दोनों पत्नियाँ पति के विरुद्ध कार्यवाही चाहती हैं। लेकिन उन के जीने के साधन भी केवल पति ही उपलब्ध कराता है। वे कोई कार्रवाई करें तो पति गिरफ्तार हो जाएगा। उसी के साथ पत्नी और बच्चों के भरण पोषण के साधन छिन जाएंगे। पति कुछ दिनों में जमानत करा लेगा और अपने काम पर लौट जाएगा। कानून यह भी है कि अदालत पत्नी और बच्चों का भरण पोषण हेतु प्रतिमाह पर्याप्त राशि पत्नियों को देने का आदेश दे सकती है। इस तरह का आदेश प्राप्त करने में कुछ महीनों से ले कर कुछ साल लग सकते हैं। फिर भी पति यदि आदेश का पालन न करे तो उस का पालन करवाने के लिए पत्नी को अलग से कार्रवाई करनी पड़ेगी। हो सकता है पत्नियों को कुछ साल अदालतों के चक्कर काटने पर भरण-पोषण राशि मिलने लगे। लेकिन तब तक उन का जीवन कैसे चले?
कार्रवाई आरंभ करने के दो-तीन माह में ही वे मजबूर हो जाएंगी अपने अपने पतियों से समझौता करने लिए। वे हालात से समझौता कर लेंगी। पति उन्हें फिर से गालियां देने लगेंगे, फिर से उन के साथ मारपीट करेंगे। पत्नियां समझ जाएंगी कि गालियां खाकर, मारपीट सह कर पति की सेवा करते रहना ही उन के जीवन का सच है। नन्दिनी पढ़ी लिखी है वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। लेकिन उस के लिए उसे कुछ समय चाहिए। लेकिन तब तक वह पतिगृह त्याग कर कहां रहे? खुद को और बच्चे को कैसे बचाए रखे? दूसरी महिला के साथ भी यही समस्या है। दोनों महिलाएं जीना नहीं चाहतीं। मन करता है कि अपना जीवन समाप्त कर लें। लेकिन दोनों के बच्चे उन के प्रति ममता उन्हें रोक लेती है।
कानून के पास पतियों के विरुद्ध कार्यवाही करने और परिणाम आने में लगने वाले समय में पत्नियों और बच्चों के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। समाज तो पुरुष प्रधान है ही। वह ऐसी व्यवस्था क्यों करने लगा? किसी सरकार ने भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की है जिस से पत्नी और बच्चों को इस काल में सरंक्षण मिल सके, पत्नी और बच्चों का जीवन बना रहे और बच्चों की पढ़ाई जारी रह सके। क्रूरता से महिलाओं और बच्चों के बचाव के सारे कानून इसी कारण से व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं। क्या सरकार और समाज को इस के लिए कोई व्यवस्था नहीं करना चाहिए? क्या इस पर कोई सोच भी रहा है?
नमस्कार सर
दुदुसरी क नाम माकन हा पति ने लेके दिए होगा.
औरत की जबान चलती ह तो सोच क नै बोलती.
आदमी अपनी बैजति अपना दर्द दारू में ही छुपता हा.
अगर औरत क बचे हा तो आदमी क बी है.
DDhanywad
सर जी नमस्कार, आपकी आज की ये पोस्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है ,लेकिन कई बार पति की भी कुछ आपसी समस्याय होती है ,क्यों की पति को चारो तरफ की जिम्मेबारी उठानी होती है ,और मैंने खुद अनुभव किया ह कि कई बार आखो देखा और कानो से सुना भी झूठा होता है हो सकता है कि पति कि भी कोई मजबूरी हो ? धन्यबाद
कृपया मेरे ब्लॉग पर एक बार जरुर पधारे := becharepati.blogspot.com