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व्यवस्थागत दोषों के विरुद्ध सामूहिक या संस्थागत कार्यवाही करने पर ही सुधार की गुंजाइश हो सकती है

समस्या-

ग्राम/पोस्ट-परेऊ, तहसील-बायतु, जिला-बाड़मेर (राज.) से मिश्रे खान ने पूछा है- 

मैं बीएससी अंतिम वर्ष का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जोधपुर का नियमित छात्र हूँ।  मैं एक साल पहले मेरे गाँव परेऊ {तहसील-बायतु, जिला-बाङमेर (राज.)} के एक निजी विद्यालय में अध्यापन करने लगा।  मुझे एक महीने में ही बिना कोई कारण बताए ही निकाल दिया।  मैं पहली बार किसी विद्यालय में लगा था, इसलिए मुझे पता नहीं था कि कर्मचारी उपस्थिति रजिस्टर भी होता है। इसलिए उसमें मैंने हस्ताक्षर नहीं किए, न ही उस में मेरा नाम लिखा गया। निजी विद्यालय के व्यवस्थापक तथा प्रधानाध्यापक बहुसंख्यक धनाढ्य परिवार से हैं तथा उनकी अधिकारियों तक पहुँच है। वे अपनी मनमर्जी से फीस वसूलते हैं, तथा अपना रोब चलाते हैं। इस विद्यालय में 600 विद्यार्थी पढते हैं। विद्यालय शुभारम्भ से विद्यालय परिसर मे बीएसएनएल टॉवर लगा हुआ है। विद्यालय में शौचालय, पुस्तकालय तथा खेल मैदान की व्यवस्था नहीं है।  कक्षा कक्ष बहुत छोटे हैं, छात्र अक्सर बीमार रहते हैं। विद्यालय में मँहगी पुस्तकें बेची जाती हैं जिन्हें खरीदना अनिवार्य है।

सूचना

मित्रों व पाठको!

तीसरा खंबा के पास कानूनी सलाह/समाधान चाहने के लिए इन दिनों बहुत प्रश्न लंबित हैं। एक दिन में अधिक से अधिक दो प्रश्नों का उत्तर दिया जाना संभव होता है। इस कारण से ऐसे प्रश्न जिन का समाधान पूर्व में दिेए गए प्रश्न से हो सकता है, हम नहीं दे पा रहे हैं। जिस प्रश्न के बारे में लगता है कि उस का उत्तर तुरंत दिया जाना चाहिए उस का समाधान हम जल्दी देने का प्रयत्न करते हैं। आज कल अनेक प्रश्नों का उत्तर देने में एक सप्ताह से अधिक समय लग रहा है। कुछ प्रश्न बिलकुल अधूरे होते हैं। उन का उत्तर हम नही दे सकते।  आशा है जिन पाठकों को इस से असुविधा हो रही है वे हमारी सीमाएं जान कर हमें क्षमा करेंगे।

अप्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा छात्रों की पिटाई की जाती है।  इसी विद्यालय में मेरा छोटा भाई गत सत्र कक्षा 5 में पढता था।    मैं ने उपरोक्त असुविधाओं को देखते हुए मेरे भाई की टी.सी. मांगी तो व्यवस्थापक ने टी.सी. देने से इनकार कर दिया, तथा मुझसे और फीस मांगने लगे जो मैंने भर दी।  रसीदें देखने पर पता चला कि मुझे अलग-अलग प्रकार की रसीदें दी गई है। कभी पीले रंग की तो कभी गुलाबी रंग की, एक में विद्यालय का नाम सरस्वती विद्या मन्दिर तो दूसरी में सरस्वती शिक्षण संस्थान।  रसीद में फीस का पूरा ब्यौरा नहीं दिया गया है। रसीद में लिखे गये रुपयों से शुरू होकर रसीद पर एक किनारे लिखे गए प्राप्तकर्ता व दूसरे किनारे पर लिखे गए प्रधानाध्यापक तक एक टेड़ी-मेड़ी अनवरत लाईन खींची गई है जिसे हस्ताक्षर बताया है। मुझे संदेह है कि कहीं ये फर्जी रसीद तो नहीं। साथ ही किसी रसीद में शौकीन खॉन पुत्र अकबर खॉन तो किसी रसीद में अकबर खॉन पुत्र शौकीन खॉन लिख दिया जिससे मेरे भाई की पूरे विद्यालय में मानहानि हुई।  मैं ने उपरोक्त समस्याओं तथा विद्यालय की अव्यवस्थाओं के बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों (नॉडल अधिकारी- परेऊ, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी- बायतु, प्रारम्भिक जिला शिक्षा अधिकारी-बाड़मेर), जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी-बाड़मेर तथा राज्य उपभोक्ता मंच-जयपुर को लिखित में शिकायत भेजी।  इसके उपरान्त मुझे पांच दिन पश्चात टी.सी. जारी की गई तथा फीस का ब्यौरा नहीं दिया तथा फीस तय की हुई है या नहीं के बारे में नहीं बताया। उपरोक्त अधिकारियों को लिखित में शिकायत भेजने के साढे तीन माह पश्चात भी मुझे कोई कार्यवाही होती नजर नहीं आई, बल्कि उस विद्यालय को एक माह पूर्व नियमों के विरुध्द अधिकारियों ने उच्च प्राथमिक से माध्यमिक में क्रमोन्नत कर दिया। जब कि सारी अव्यवस्थाएँ जस की तस हैं।  मैं ने एक माह पूर्व बी.ई.ओ. बायतु से आरटीआई के तहत मेरे द्वारा भेजे गए पत्र पर की गई कार्यवाही का विवरण मांगा वो भी 30 दिन पूरे होने के बावजूद मुझे सूचना नहीं मिली। स्कूल में लगे टॉवर, अन्य अव्यवस्थाओं तथा रसीद सम्बन्धी समस्याओं के बारे में मैं ने पंजीकृत डाक द्वारा शिक्षा अधिकारियों{नॉडल अधिकारी-परेऊ, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी-बायतु तथा जिला शिक्षा अधिकारी-बाङमेर} तक शिकायत भेजी फिर भी कार्यवाही नहीं हुई। तब मैं ने ब्लॉक शिक्षा अधिकारी से सूचना के अधिकार के तहत कार्यवाही का ब्यौरा मांगा। 30 दिन के बाद सूचना नहीं मिलने पर प्रथम अपील जिला शिक्षा अधिकारी बाङमेर को भेजी है।  मैं जानना चाहता हूँ कि –

1. क्या मैं किसी निजी विद्यालय मे अध्यापक के पद पर रह सकता हूँ?
2. क्या मैं विद्यालय से पूछ सकता हूँ कि मुझे क्यों हटाया गया? जबकि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन विद्यालय के छात्र गवाह जरूर हैं।
3. क्या विद्यालय अपने मर्जी से विद्या मन्दिर या संस्थान लिख सकता है?  रसीद अलग-अलग रंग की रख सकता है? रसीद में कभी पुत्र की जगह पिता का नाम लिख कर मान-हानि करे तो क्या कार्यवाही हो सकती है? तथा क्या हस्ताक्षर किसी भी प्रकार का हो सकता है?
4. विद्यालय में बीएसएनएल का टावर लगा हुआ है तथा अन्य सरकारी नियमानुसार सुविधाएँ नही हैं। जिला शिक्षा अधिकारी को ये सब पता है। इस मामले में कैसे कार्यवाही हो?

समाधान-

मिश्रे खॉन जी, सब से पहले तो आप को इस बात के लिए धन्यवाद दूँ कि आप ने अपने मामले को पूरे विस्तार के साथ लिखा है। इस से मामले को समझने में हमें आसानी हुई। आप जिस तरह के विद्यालय की बात कर रहे हैं उसी तरह के विद्यालय गली-गली और गाँव-गाँव में खुले हुए हैं। सब को पता है कि ये विद्यालय नियम विरुद्ध चल रहे हैं। इन में शिक्षार्थी और उन के अभिभावकों का शोषण होता है। लेकिन उन की न तो कोई शिकायत होती है और होती है तो उन्हें रफा दफा कर दिया जाता है। कानूनी लड़ाई इतनी लंबी और खर्चीली होती है और कोई भी व्यक्तिगत रूप से इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता। उसी का नतीजा है कि ये विद्यालय अधिकारियों और विद्यालय प्रबंधकों की मिलीभगत से चल रहे हैं। राज्य के दोनों प्रमुख दलों से इन की सांठ गांठ होती है। उन के नेताओं और संगठनों को ये लोग सुविधाएँ और चंदा देते हैं। इसी से यह सब चल रहा है। यह सब मौजूदा व्यवस्था का अंग है। व्यवस्थागत दोषों के विरुद्ध सामूहिक या संस्थागत रूप से इन मामलों को उठाया जाए तो इन में कुछ सुधार की गुंजाइश हो सकती है। विद्यालय संचालक धनाड्य परिवार से होने से तो यह पता लगता है कि वे राजनीति और प्रशासन पर प्रभाव रखते हैं। लेकिन बहुसंख्यक होने से कोई अंतर नहीं पड़ता है। हमारे नगर में अनेक अल्पसंख्यक धनाड्य इसी तरह के विद्यालय संचालित कर रहे हैं। खैर, आप के द्वारा बताए गए तथ्यों के आधार पर आप के प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ।

प के पहले प्रश्न का उत्तर कि आप निजी विद्यालय में अध्यापक के पद पर रह सकते हैं। आप के विश्वविद्यालय के नियमित विद्यार्थी होना इस काम में बाधा नहीं है।  लेकिन आप के अध्यापन का समय और आप के विश्व विद्यालय में अध्ययन का समय एक नहीं हो सकता। क्यों कि विश्वविद्यालय में भी एक निश्चित संख्या में अपनी उपस्थिति बनाए रखना आप के लिए आवश्यक है। निश्चित रूप से आप बाड़मेर रह कर अध्यापक की यह नौकरी करना आप के लिए उचित नहीं था। क्यों कि उस नौकरी को करते हुए आप विश्वविद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकते थे। हाँ आप किसी ऐसे निजी विद्यालय में नौकरी कर सकते हैं जो कि विश्वविद्यालय से नजदीक हो और आप दोनों स्थानों पर भिन्न भिन्न समयों पर उपस्थित रह सकते हों।

प का दूसरा प्रश्न का उत्तर है कि आप विद्यालय से पूछ सकते हैं कि आप को क्यों हटाया गया। लेकिन उस का उत्तर आप को यह मिलेगा कि आप को नौकरी पर रखा ही नहीं गया था।  वे यह भी कह सकते हैं कि आप तो स्वैच्छिक सेवाएँ दे रहे थे, आप विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हैं और पढ़ते हुए आप के लिए यह संभव नहीं था कि आप यह नौकरी कर सकें। आप के पास कोई दस्तावेजी साक्ष्य़ भी नहीं है जिस से आप यह साबित कर सकें कि आप ने किसी वेतनभोगी शिक्षक के रूप में उन के यहाँ काम किया था। छात्रों की गवाही से आप यह तो साबित कर सकते हैं कि आप ने वहाँ अध्यापन किया था लेकिन यह नहीं कि आप वहाँ नियोजित थे।

प के तीसरे प्रश्न का उत्तर है कि वास्तव में प्रत्येक मान्यता प्राप्त विद्यालय का संचालन एक पंजीकृत सोसायटी ही कर सकती है। इस कारण एक तो उस विद्यालय का संचालन करने वाली संस्था है जिसे आप के मामले में संस्थान कहा गया है दूसरी संस्था विद्यालय स्वयं है। दोनों संस्थाओं की अलग अलग रंग की रसीदें हो सकती हैं। उन्हों ने आप को जो रसीद विद्यालय के नाम से दी है वह शुल्क की रसीद है और जो संस्थान के नाम से दी गई है वस्तुतः वह संस्था को दिए गए अनुदान की रसीद है। लेकिन यदि स्थानान्तरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए संस्था के लिए अनुदान लिया गया है तो यह गंभीर बात है। इस की शिकायत आप शिक्षा अधिकारी और शिक्षा निदेशक तक को कर सकते हैं। इस के अतिरिक्त विद्यार्थी एक उपभोक्ता भी है उस के संरक्षक उपभोक्ता न्यायालय में शुल्क की कह कर संस्थान के लिए अनुदान प्राप्त करने के लिए शिकायत प्रस्तुत कर सकते हैं। उपभोक्ता न्यायालय को शिकायत एक दावे के रूप में प्रस्तुत की जाती है। आप के द्वारा डाक से प्रेषित की गई शिकायत पर निश्चित रूप से की कार्यवाही नहीं होगी। यदि आप कार्यवाही चाहते हैं तो आप को एक दावे के रूप में शिकायत प्रस्तुत करनी होगी तथा अपनी शिकायत के तथ्य न्यायालय के समक्ष साबित करने के लिए दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य (शपथ पत्र के रूप में) भी प्रस्तुत करनी होगी।  उपभोक्ता न्यायालय आप की शिकायत की सुनवाई कर उचित निर्णय प्रदान करेगा। आप का मामला इतनी बड़ी मानहानि का नहीं है कि वर्तमान व्यवस्था में उस के लिए कानूनी कार्यवाही की जाए। फिर भी आप मानहानि की क्षतिपूर्ति के लिए मानहानि का दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

बीएसएनएल के टावर से संबंधित शिकायत आप ने की है। आप पुनः इस की शिकायत कलेक्टर और संभागीय आयुक्त से कर सकते हैं। वैसे राज्य सरकार ने सभी स्कूलों मोबाइल टावर हटाने के निर्देश दे दिए हैं। हो सकता है इस स्कूल का मोबाइल टावर हट चुका हो।

शिक्षा अधिकारी को निजी विद्यालय से संबंधित जानकारी आप को देनी चाहिए थी। लेकिन नहीं दी है। आप ने पहली अपील की है। निश्चित रूप से उस के अच्छे परिणाम आप को प्राप्त होंगे।