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व्यापार अवरोधक अनुबंध शून्य हैं

व्यापार में अवरोधक अनुबंध शून्य हैं …

ऐसा प्रत्येक अनुबंध जो किसी भी व्यक्ति के किसी भी वैधानिक वृत्ति (प्रोफेशन), व्यापार या कारोबार करने पर रोक लगाता है, उस सीमा तक अवैध है। 

इस के अपवाद भी हैं …

  • वह व्यक्ति जो किसी व्यापार की प्रतिष्ठा का विक्रय कर दे, क्रेता से यह अनुबंध कर सकेगा कि वह निश्चित की गई स्थानीय सीमाओं में तब तक समान प्रकृति का कारोबार नहीं करेगा, जब तक क्रेता या कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे उस बेची गई प्रतिष्ठा का अधिकार उत्पन्न हुआ हो उन निश्चित सीमाओं में समान प्रकृति का कारोबार चलाता रहे; लेकिन यह तभी जब कि उस कारोबार की प्रकृति की दृष्टि से ऐसी सीमाएँ न्यायालय को उचित प्रतीत हों।(धारा-27) 

कंट्रेक्ट कानून की यह धारा यह कहती है कि किसी भी वैधानिक वृत्ति, व्यापार या कारोबार पर किसी अनुबंध के द्वारा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। यह धारा व्यक्ति और संस्थाओं द्वारा व्यवसाय करने की स्वतंत्रता की रक्षा करती है, अर्थात कोई व्यक्ति चाह कर भी किसी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का अनुबंध कर के उस के व्यापार को प्रतिबंधित नहीं कर सकता, और न ही कोई स्वयं इस प्रकार के प्रतिबंध से आबद्ध हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार किसी अनुबंध में आबद्ध कर भी लिया जाए कि वह किन्हीं सीमाओं में किसी विशिष्ठ प्रकार की वृत्ति, व्यापार या कारोबार नहीं करेगा, तो भी उसे इस के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा। क्यों कि ऐसा अनुबंध कानून की इस धारा के कारण शून्य है, और लागू नहीं कराया जा सकता है।जैसे …

  • एक व्यक्ति नाव द्वारा यात्रियों को नदी के पार ले जाने का व्यवसाय करता था। उस ने दूसरे एक व्यक्ति से यह अनुबंध किया कि वह उसे नियमित रूप से निश्चित राशि अदा करेगा जिस के बदले वह नाव द्वारा य़ात्रियों को नदी पार ले जाने का व्यवसाय नहीं करेगा। यह मामला न्यायालय में जाने पर निर्णय दिया गया कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है।
  • एक फैक्ट्री को एक वर्ष तक रेत सप्लाई करने का अनुबंध हुआ जिस में यह शर्त थी कि वह उस क्षेत्र की किसी अन्य फैक्ट्री को इस अवधि में रेत सप्लाई नहीं करेगा। न्यायालय ने माना कि यह अनुबंध  उस अवधि में अन्य फैक्ट्रियों को रेत सप्लाई करने की शर्त की सीमा तक शून्य है। 

नियोजन के मामले – 

लेकिन विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार के कारण किसी  व्यक्ति पर इस तरह का प्रतिबंध उस का नियोजक लगा सकता है कि वह कंट्रेक्ट की अवधि में (जो कि नौकरी समाप्त होने के बाद की अवधि भी हो सकती है) किसी व्यवसाय या कारोबार में लिप्त नहीं होगा और  किसी अन्य नियोजक के यहाँ ठीक उसी प्रकार की सेवाएं नहीं देगा जैसी कि वह कंट्रेक्ट के द्वारा दे रहा है।

  • एक व्यक्ति नौकरी नहीं छोड़ता बल्कि उसे नियोजक नौकरी से हटा देता है। उस के सर्विस कंट्रेक्ट में यह शर्त थी कि वह समान प्रकार का व्यवसाय नहीं करेगा और न ही किसी अन्य नियोजक के यहाँ समान प्रकार की नौकरी करेगा। यह शर्त उस व्यक्ति पर लागू नहीं होगी।
  • एक नियोजक ने उस के साथ विक्रय प्रतिनिधि के रूप में नौकरी करने वाले कर्मचारी पर यह शर्त लगा दी कि वह नौकरी छोड़ने के बाद एक निश्चित क्षेत्र में किसी दूसरे नियोजक के लिए यही काम नहीं करेगा। न्यायालय ने इस शर्त को शून्य माना। 
  • जर्मनी की एक कंपनी ने एक भारतीय कंपनी से अपने उत्पाद विक्रय करने का कंट्रेक्ट किया और शर्त लगाई कि भारतीय कंपनी कंट्रेक्ट की अवधि समाप्त होने के पाँच वर्ष बाद तक उसी तरह के उत्पादों के विक्रय का व्यवसाय नहीं करेगी। न्यायालय ने इस शर्त को शून्य माना। 

अपवाद-

इस धारा के अंतर्गत अपवाद है कि कोई व्यक्ति यदि अपने व्यवसाय की प्रतिष्ठा का विक्रय करता है, तो वह समान प्रकृति के व्यवसाय को निश्चित स्थानीय सीमाओं में नहीं करने का प्रतिबंध लगाने वाला अनुबंध कर सकता है। लेकिन इस तरह का मामला न्यायालय के समक्ष आने पर न्यायालय उस प्रतिबंध की परीक्षा कर सकता है कि ऐसा प्रतिबंध कही अनुचित तो नहीं है। इस मामले में न्यायालय सामान्य रूप से यह देखेगा कि यह प्रतिबंध कहीं जनहित के विरुद्ध तो नहीं है। जैसे …

  • इस तरह का प्रतिबंध कहीं एक व्यक्ति की इजारेदारी तो स्थापित नहीं करता? जिस से किसी माल या सेवा के मूल्य में वृद्धि होती हो। यदि ऐसा हो रहा है, तो वह प्रतिबंध उचित नहीं माना जाएगा।
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