व्यावसायिक उपयोग के लिए वस्तु खरीदने पर भी आप कब उपभोक्ता हैं?
|मेरे एक मित्र जिनका यूरेका फोर्ब्स के वाटर फिल्टर डीलरशिप का बिजनेस है…उन्होंने अपने लिए एक इनवर्टर खरीदा और बिल फर्म के नाम बनवाया…..इनवर्टर में खराबी आने पर उपभोक्ता फोरम में आवेदन दिया….पर वहां से यह कहकर लौटा दिया कि मामला सिविल न्यायालय का है…फर्म या कंपनी के नाम से खरीद क्या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम से बाहर है…..राज्य आयोग में अपील होने पर भी वही फैसला रहा…..मुझे कुछ संशय है….क्या वाकई ये मामला उपभोक्ता अदालत में विचारणीय नहीं है….फर्म के नाम से यदि फर्म के उपयोग के लिए सामान खरीदा गया है तो उपभोक्ता की श्रेणी में आयेगा या नहीं ?
भुवनेश जी,
आप का सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है। लेकिन इस मामले में जो भी विवाद था उसे उच्चतम न्यायालय ने 4 अप्रेल 1995 को ही लक्ष्मी इन्जिनियरिंग वर्क्स बनाम पी एस जी इण्डस्ट्रीयल इन्स्टीट्यूट के प्रकरण में हल कर दिया है। यह निर्णय 1995 एआईआर सुप्रीम कोर्ट पृष्ठ 1428 पर प्रकाशित भी है। इसे यहाँ चटका लगा कर भी पढ़ा जा सकता है।
इस निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने अधिनियम में वर्णित और परिभाषित शब्द उपभोक्ता की व्याख्या की है। अधिनियम में जो परिभाषा दी है उस में कहा गया है किसी भी वस्तु को कीमत देकर या देने का वायदा कर के खरीदने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है लेकिन इस में वह व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो उस वस्तु को पुनः विक्रय करने या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए खरीदता है।
लेकिन बाद में इस परिभाषा में एक स्पष्टीकरण और जोड़ा गया कि व्यावसायिक उद्देश्यों में खरीदी गई वस्तु को स्वयम् द्वारा पूरी तरह स्वयं के स्वनियोजन हेतु उपयोग में लेना सम्मिलित नहीं होगा।
उच्चतम न्यायालय ने इस की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऑटो रिक्षा खरीदता है और खुद चलाता है अथवा कोई वृद्ध या अक्षम व्यक्ति स्वयं के भरण पोषण के लिए ऑटोरिक्षा खरीदता है और किसी चालक को नौकर रख कर उसे चलवाता है तो वह उपभोक्ता माना जाएगा।
आप के मामले में आप के मित्र ने यूरेका फोर्ब्स के उपकरणों की डीलर शिप ली हुई है। यह एक विस्तृत व्यापार है और यह नहीं कहा जा सकता है कि यह व्यापार केवल स्वनियोजन के लिए है। फिर आप के मित्र ने जो इन्वर्टर खरीदा है उस की खरीद का धन अपने व्यवसाय से निकालते हुए उसे व्यावसायिक खर्चों में डाला है। ऐसी स्थिति में इस खरीद को व्यावसायिक उद्देश्य के लिए खरीद ही माना जाएगा।
हो सकता है कि आप के मित्र की यह डीलरशिप स्वनियोजन के स्तर की हो। लेकिन जब उन्हों ने इन्वर्टर की खरीद को अपने व्यवसाय के खर्च में प्रदर्शित किया है तो यह साबित करने का भार भी आप के मित्र पर ही था कि उस का व्यवसाय स्वनियोजन के स्तर का है। परिवाद में उन तथ्यों का उल्लेख करना भी आवश्यक था जिन के आधार पर उस का व्यवसाय स्वनियोजन साबित किया जा सकता था। मुझे लगता है कि इस तरह के तथ्यों का उल्लेख आप के मित्र के परिवाद में नहीं था, जिस के कारण उनका परिवाद वापस लौ
इस पोस्ट पर जो टिप्पणिया कि गयी है उसमे कुछ सवाल किये गये है । उन के जवाब शायद मेल द्वारा दिये गये है । बहुत अच्छा होता यदि भेजी गयी मेल को यहा टिप्पणी के जवाब मे टिप्पणी के रूप मे ही दिखाया जाता । जिससे अन्य पाठको की भी जानकारी मे वृद्धि हो जाती ।जानकारी के लिये आभार
यह कानुन की बाते बहुत कठिन है, जानकारी के लिये धन्यवाद
क्या स्वनियोजन के अंतर्गत अपने स्वयं के जीवन-यापन के लिए कोई व्यवसाय करना आता है या एक फर्म का संचालन भी जिसमें कुछेक कर्मचारी काम करते हैं….मैंने ठेकेदारी फर्म बनाई और उसके लिए डंपर खरीदे…जिसके द्वारा और लोगों को भी नियोजन मिलता है…डंपर में कोई खराबी आने पर क्या मेरी हैसियत एक उपभोक्ता की नहीं होगी ?
बस यहीं गड़बड़ पैदा हो रही थी कि व्यावसायिक उद्देश्यों में क्या शामिल है क्या नहीं…शुक्रिया
सर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की लिंक पर जाने से एरर दे रहा है….फैसला कैसे पढ़ा जाए ?
इस कानूनी पहलू को बताने के लिये आभार आपका.
रामराम.
इस बार बातें कुछ क्लिष्ट हो गयी हैं, कुछ स्पष्ट नहीं हुआ।
बात कम समझ में आई।
वस्तु भले ही दुकानदार ने खरीदी और अपने व्यापार की सुरक्षा और व्यापार में वृध्दि के लिए खरीदी किन्तु वह है तो उपभोक्ता ही। वस्तु उसने ‘व्यापार करने के लिएद्ध नहीं अपितु ‘अपना व्यापार सुरक्षित रखने और उसमें वृश्दि करने’ के लिए खरीदी थी, न कि उस वस्तु का पुनर्विक्रय कर, उसका व्यापार करने के लिए।
व्यवहारत: तो, वस्तु क्रेता उपभोक्ता ही तो है!
नवीनत जानकारी के लिये धन्यवाद
पुनः विक्रय के अलावा व्यापार में इस्तेमाल भी तो उपभोग ही कहलाना चाहिये–और उपभोगक्ता की श्रेणी में ही आना चाहिये. खैर, बात कानूनी है-जानकारी का आभार.