संतान की वैधता का प्रश्न
| सुनील काँवरिया ने पूछा है-
कुमारी, विधवा अथवा तलाकशुदा माता की संतान क्या हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार वैध होगी? क्या कोई अन्य अधिनियम भी किसी हिन्दू महिला की ऐसी संतान को वैध संतान करार देता है?
उत्तर –
सुनील जी,
स्वयं अपने जन्म में किसी भी व्यक्ति की कोई भूमिका नहीं होती। इस कारण से किसी भी व्यक्ति को उस के जन्म के लिए दोषी करार दिया जाना उचित नहीं हो सकता। इस कारण किसी भी संतान को अवैध नहीं कहा जाना चाहिए। किसी भी वर्तमान भारतीय कानून द्वारा किसी भी स्थिति में किसी व्यक्ति के जन्म को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है। वस्तुतः संतान की अवैधता एक कानूनी विषय न हो कर सामाजिक विषय अधिक है। भारतीय समाज में एक ऐसी संतान को जो अपने माता पिता के वैध विवाह के अलावा किसी संबंध से उत्पन्न हुई है उसे अवैध माना जाता रहा है और ऐसी संतान को सामाजिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है। सामाजिक उत्पीड़न को रोकने का काम कानून अथवा न्यायिक संस्थाएँ नहीं कर सकतीं। समाज में स्थापित सामाजिक मूल्यों में बदलाव से ही उन का निराकरण हो सकता है।
किसी भी व्यक्ति की माता का निर्धारण तो स्वयं प्रकृति ही कर देती है। लेकिन सामान्य रूप से पिता का निर्धारण इस बात से होता है कि उस व्यक्ति के जन्म के लिए उस की माता ने जिस काल में गर्भ धारण किया उस काल में वह किस की पत्नी थी। इस कारण किसी वैध विवाह से उत्पन्न संतान को वैध अथवा धर्मज संतान कहा जाता है। लेकिन वैध विवाह के बिना भी यदि किसी स्त्री-व पुरुष के सामान्य रुप से जाने जाने वाले संबंध के फलस्वरूप किसी संतान का जन्म होता है तो उस के पिता का ज्ञान हो सकता है लेकिन ऐसी संतान को भारतीय समाज एक अधर्मज संतान मानता है। आज तो विज्ञान की प्रगति के कारण डीएनए जाँच से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति किस माता-पिता की संतान है।
कानून के समक्ष सभी व्यक्ति वैध संतान होते हैं। लेकिन फिर भी कुछ मामले हैं जिन में संतान के धर्मज और अधर्मज होने का प्रश्न उत्पन्न होता है और ये सभी मामले संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले हैं चाहे वे किसी भी व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत उत्पन्न हुए हों। क्यों कि सभी व्यक्तिगत विधियों में संतान को पिता की निर्वसीयती संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त करने का अधिकार है। तब इस बात का निर्धारण किया जाना आवश्यक हो जाता है कि जिस व्यक्ति की संपत्ति के उत्तराधिकार का मामला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, उत्तराधिकार का दावेदार उस व्यक्ति की संतान है अथवा नहीं। यह प्रश्न उन मामलों में तो उत्पन्न होता ही है जहाँ दावेदार किसी वैध विवाह से जन्म नहीं लेता, लेकिन कभी कभी यह प्रश्न उन मामलों में भी उत्पन्न हो जाता है जहाँ पति-पत्नी एक लंबे समय से अलग रह रहे हों।
ऐसी परिस्थितियों के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 न्यायालय को उपधारणा करने की शक्ति प्रदान करती है। इस के अनुसार “यह त
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2 Comments
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
अच्छी जानकारी ..
.. आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!