समलैंगिक विवाह फिर कानून के गलियारे में
19/08/2010 | Civil Law, Constitution, Judicial Reform, Marriage, न्यायिक सुधार, विवाह, व्यवस्था | 6 Comments
| कानून के गलियारे में समलैंगिक विवाह एक बार फिर से चर्चा का विषय बन रहे हैं। कैलिफोर्निया (अमरीका) की एक अदालत ने दो सप्ताह पूर्व इन विवाहों को अनुमति प्रदान की थी और बुधवार 18 अगस्त से समलैंगिक विवाहों आरंभ होने थे। लेकिन वहाँ के एक संघीय न्यायालय ने समलैंगिक विवाह की अनुमति को निलंबित कर दिया है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि वह इस बात विचार करेगी कि समलैंगिक विवाह पर सरकार का प्रतिबंध संवैधानिक है अथवा नहीं।
दो सप्ताह पहले ही कैलिफोर्निया की एक अन्य अदालत ने समलैंगिक विवाह की अनुमति दी थी। उस समय अदालत ने कहा था कि जो लोग समलैंगिक शादी करना चाहते हैं उनपर रोक लगाना असंवैधानिक और ऐसे लोगों के साथ भेदभाव होगा। इस फैसले को चुनौती दी गई थी, उसके बाद अदालत का ये ताजा फैसला आया है। अदालत ने कहा है कि इस मामले में अंतिम फैसले के लिए दिसंबर तक इंतजार करना पड़ेगा। उसी वक्त अदालत अपना अंतिम फैसला सुनाएगी।
इस मामले में संघीय अदालत जो भी निर्णय सुनाए मामले का सुप्रीम कोर्ट तक जाना लगभग तय है। ऐसे में अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही लेना होगा। कैलिफोर्निया मतदाताओं की सहमति से एक उपबंध बनाया गया था जिसे प्रोपोजिशन आठ कहा जाता है। इस उपबंध के लिए हुए मतदान के दौरान52 फीसदी लोगों ने इसके पक्ष में और48 फीसदी लोगों ने इसके विरुद्ध वोट दिया था। इसके अनुसार कैलिफोर्निया में केवल वही शादी मान्य होगी, जिसमें शादी एक पुरुष और एक स्त्री के बीच हुई हो। जब कि अमेरिका के पांच राज्यों में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिली हुई है।
इस मामले में संघीय अदालत जो भी निर्णय सुनाए मामले का सुप्रीम कोर्ट तक जाना लगभग तय है। ऐसे में अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही लेना होगा। कैलिफोर्निया मतदाताओं की सहमति से एक उपबंध बनाया गया था जिसे प्रोपोजिशन आठ कहा जाता है। इस उपबंध के लिए हुए मतदान के दौरान52 फीसदी लोगों ने इसके पक्ष में और48 फीसदी लोगों ने इसके विरुद्ध वोट दिया था। इसके अनुसार कैलिफोर्निया में केवल वही शादी मान्य होगी, जिसमें शादी एक पुरुष और एक स्त्री के बीच हुई हो। जब कि अमेरिका के पांच राज्यों में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिली हुई है।
दुनिया में सब से पहले डेनमार्क ने अक्टूबर 1989 में समलैंगिक संबंधों को पंजीकृत साझेदारी के रूप में कानूनी अनुमति प्रदान की थी। इस के उपरांत 2001 में हॉलेंड समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाला पहला देश बना। बेल्जियम ने 2003 में स्पेन और कनाडा ने 2005 में दक्षिण अफ्रीका ने 2006 में नॉर्वे व स्वीडन ने 2009 में पुर्तगाल, आइसलैंड और अर्जेंटीना ने 2010 में इन्हें वैधता प्रदान कर दी। मेक्सिको के सभी 31 राज्यों में समलैंगिक विवाहों को मान्यता प्राप्त है लेकिन इस तरह के विवाह केवल मेक्सिको नगर में ही हुए हैं। नेपाल के न्यायालय ने सरकार को इन विवाहों को मान्यता देने का निर्देश दिया है लेकिन अभी तक कोई कानून निर्मित नहीं किया गया है। इस तरह दुनिया की चार प्रतिशत आबादी के बीच समलैंगिक सम्बंधों को कानूनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है।
लेकिन जब अब मामला कैलीफोर्निया के संघीय न्यायालय के पास लंबित है और इस के वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय तक जाना तय है तब अमरीका में इस पर एक बहस होना लाजमी है। यह बहस आरंभ भी हो चुकी है। मुझे अमरीका की पार्टी फॉर सोशलिज्म एण्ड लिबरेशन की ओर से आज ही एक मेल मिला है जिस में फ्लोरिडा में आयोजित एक सभा में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, वकील और लेखक श्री ज़ाकरी वोल्फ इस संबंध में अपने विचार रखेंगे। संतान का पितृत्व और उत्तराधिकार विवाह से अनिवार्य रूप से जुड़े हैं, अपितु यह कहा जाना अधिक उचित होगा कि पुरुष की संपत्ति उत्
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उपरोक्त लेख पर मैं मंसूर अली, शिक्षामित्र और राज भाटिया के विचारों से सहमत हूँ.
इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें जाने हेतु मेरा ब्लॉग http://rksirfiraa.blogspot.com देखें. अच्छी या बुरी टिप्पणियाँ आप करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें.
# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
यह बिमारी जहां है वही रहे, काश मेरे देश भारत मै ना फ़ेले, वेसे डेन मार्क ओर इस के आस पास के देशो का हाल क्या है कि लोगो को इतनी आजादी है कि जिस का मन करे हर जगह वो सब कर सकता है जो हमे पर्दे मै करना चाहिये… तो इन देशो की नकल कभी नही करनी चाहिये
अच्छा लगा ………
श्रीमानजी, अगर मान्यता मिल गयी तो?………..
"ज़र खेज़ जो ज़मीं है बंजर ही रहेगी !
"हल" कितने भी चले, नहीं निकलेगा हल कोई !!
— mansoorali hashmi
यह देखते हुए कि सदियों पुरानी कई बीमारियों का अब तक कोई ठोस इलाज़ नहीं ढूंढा जा सका है,यह समय कुत्सित मानसिकता पर पूर्णविराम लगाने का है न कि उसे संवैधानिक मान्यता प्रदान करने का।
देखते चलते हैं..आगे आगे होता है क्या. अच्छा आलेख.