समस्या का हल बँटवारे के दावे से ही निकलेगा।
रज़ाउल हक़ ने संभल उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
हम पाँच बहने और दो भाई हैं। हमारे पिता ने अपने बाद एक मकान छोड़ा था जिसका कोई बटवारा नहीं हुआ है। लेकिन इस मकान का हाउस टैक्स मेरे भाई ज़ियॉलहक़ ने सन् 2007 में अपने नाम करवा लिया नगरपालिका के सरवे में। अब ज़ियॉलहक़ ने इस मकान में कुछ किरायेदार रखे हुए हैं, कुछ साल से। अब मैं और मेरी बहने चाहते हैं कि हमको तकसीम का दावा न करना पड़े। क्यों कि दीवानी के मुक़दमे बहुत लंबे चलते हैं। हम केवल इतना चाहते हैं कि किरायेदार किराया या तो हमें भी दें या अदालत में जमा करें। या मकान खाली कर दें। ज़ियाउल हक़ ने कोई किराया नामा नहीं लिखा रखा है, न उनको रसीद देता है। मेरे सवाल हैं कि हाउस टैक्स को कैसे सब के नाम कराया जाये? हाउस टैक्स नाम होने का स्वामित्व पर क्या असर पड़ता है? क्योंकि मेरे भाई ने कोई किरायानामा नहीं लिख रखा है तो क्या हम पुलिस द्वारा मकान खाली करा सकते हैं? क्या बिना तकसीम के दावे के किरायेदारों को किराया अदालत में जमा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
समाधान-
असल में आप की समस्या है कि आप अदालत में कोई कार्यवाही नहीं करना चाहते क्यों कि वहाँ समस्या का हल बहुत देरी से होता है। आप का कहना बिलकुल वाजिब है। भारत में अदालतें जरूरत की 10-20 प्रतिशत हैं। अमरीका के मुकाबले 10 प्रतिशत और ब्रिटेन के मुकाबले 20 प्रतिशत। तो यही कारण है कि अदालत में फैसले बहुत देर से होते हैं। इस का असर यह होता है कि लोग विवादों के हल के लिए अदालत के स्थान पर गैर कानूनी तरीके अपनाते हैं। इसी कारण देश में अपराध बढ़ रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की यह नीति देश को शनै शनै अराजकता की ओर धकेल रही है। उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था के खराब होने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है।
पुलिस किसी भी किराएदार से या कब्जेदार से किसी संपत्ति का कब्जा वापस नहीं दिला सकती। वह ऐसा करने के लिए कोई कार्यवाही करेगी तो वह भी गैरकानूनी होगी। पुलिस ऐसी कोई कार्यवाही कर के खुद अराजकता बढ़ा रही होगी। आप को चाहिए कि आप तकसीम अर्थात बंटवारे का दावा कर दें। यही आप की समस्या का उचित हल है। आप इस दावे को प्रस्तुत करते ही अदालत को आवेदन कर के रिसीवर नियुक्त करवा सकते हैं जो मकान को अपने कब्जे में ले कर किराया वसूल करे और अदालत में जमा करे। इस से आप की बहुत सी तात्कालिक समस्याओं का हल निकल आएगा। साथ ही तकसीम का दावा भी चलता रहेगा जिस में कभी न कभी तो फैसला होगा ही।
यदि कोई किरायानामा नहीं लिखाया गया है तो आप अपनी बहनों के साथ जो कि उक्त मकान के संयुक्त स्वामी हैं, मिल कर संयुक्त रूप से किराएदारों को नोटिस दें कि वे किराया अदा नहीं कर रहे हैं इस कारण मकान खाली करें। वे कहेंगे कि वे तो किराया अदा कर रहे हैं। लेकिन बिना रसीद के तो किराया बकाया ही माना जाएगा। किराया बकाया मान कर आप किराएदारों के विरुद्ध मकान खाली करने के दावे भी कर सकते हैं। ऐसे दावों में किराएदारों को किराया अदालत में जमा कराना होगा। इस तरह भी आप का आशय पूरा हो जाएगा। यदि इस विवाद के कारण आप का भाई आप के साथ सहमति से बंटवारा करने को तैयार हो जाए आप लोग मिल बैठ कर भी बंटवारा कर सकते हैं।
आप दोनों कार्यवाहियाँ एक साथ भी कर सकते हैं। अधिकांशतः होता यह है कि लोग लम्बी कार्यवाही के भय से कार्यवाही नहीं करते और यह सब चलता रहता है। इस से मकान पर कब्जा बनाए रखने वाले व्यक्ति को नाजायज फायदा मिलता रहेगा। समस्या का हल केवल अदालत से ही निकलेगा। आप जितना देर करेंगे उतनी देर से समस्या हल होगी। इस कारण जितना जल्दी हो कार्यवाही करें।
श्रीमान राय साहब बहुत ही उम्दा तरीके से आप ने इस विषय की जानकारी दी है।