सरकारी नौकरी में नियमानुसार नियुक्त व्यक्ति ही नियमित हो सकता है, आकस्मिक या संविदा कर्मचारी नहीं।
|श्री महेन्द्र सिंह का प्रश्न है …
मैं नरेगा कार्यालय में डाटा एन्टी आपरेटर के पद पर दिनांक 06/07/2008 से अब तक संविदा पर कार्यरत हूँ, एक वर्ष पूर्ण होने पर भी मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, क्या मैं नियमित होने हेतु दावा कर सकता हूँ? विस्तार से बताएँ या अन्य कोई सुझाव दें।
उत्तर …
किसी भी राजकीय नौकरी के लिए भर्ती के नियम और प्रक्रिया होती है। सार्वजनिक रूप से घोषणा या विज्ञापन किया जा कर आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं। उस के बाद शैक्षणिक योग्यता आदि के आधार पर परीक्षा अथवा साक्षात्कार दोनों होते हैं। तब जाकर नौकरी के लिए चयन पूर्ण होता है। सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए अनेक बाध्यताएँ हैं, जैसे आरक्षण के कानूनों व नियमों की पालना करना। इस तरह सरकारी नौकरी में कोई भी व्यक्ति इस प्रक्रिया को पूर्ण करने के उपरांत ही अस्थाई नियुक्ति प्राप्त कर सकता है जो बाद में नियमों के अंतर्गत स्थाई हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रेल 2006 को सेक्रेटरी कर्नाटक राज्य एवं अन्य बनाम उमादेवी के मामले में पारित निर्णय में स्पष्ट किया है कि सरकार और उस के अधीन संस्थाओं में नियुक्तियाँ नियमों के अनुसार ही होनी चाहिए। यदि किसी कार्यरत कर्मचारी को सरकारी सेवा में नियमित किया जा सकता है तो वह भी इन नियमों के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए। एक बार दैनिक वेतन पर, निश्चित वेतन पर, संविदा आदि पर रख कर तथा कुछ समय तक उस से काम ले कर उसे नियमित कर देना इन कानूनों और नियमों के विपरीत है। एक तरह से यह कानूनों और नियमों को दरकिनार करने का एक तरीका है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय बहुत सही है।
आप के मामले में आप को संविदा पर रखा गया है। जैसे ही संविदा की अवधि समाप्त होती है आप का नियोजन समाप्त हो जाता है। आगे आप को नौकरी पर रखने के लिए एक नयी संविदा कर ली जाती है। इस तरह संविदा पर रखे जाने से आप को कोई अधिकार उत्पन्न नहीं होता है। सरकारी नौकरी में नियमित होने का भी नहीं। हाँ, सरकारी नौकरी में नियमित कर्मचारी न रख कर उस का काम संविदा या आकस्मिक कर्मचारी से लेना गलत है और औद्योगिक विवाद अधिनियम के अनुसार अनुचित श्रम आचरण भी है। जिस के लिए संबंधित अधिकारियों को दंडित किए जाने का प्रावधान भी है। लेकिन उन प्रावधानों को लागू करने की मंशा सरकार की कभी नहीं रही। सरकार को नियमित कर्मचारियों पर बहुत धन खर्च करना पड़ता है। जब कि संविदा या आकस्मिक कर्मचारी को बहुत कम, यहाँ तक कि आधे से भी कम खर्च पर काम पर रखा जा सकता है। सरकार ने अपनी योजनाएँ चलाने के लिए खुद एक अवैधानिक तरीका निकाला है जिस का विरोध होना चाहिए।
आप को मेरी सलाह है कि अन्यत्र जैसे ही अवसर मिले आप को स्थाई नौकरी के लिए प्रयत्न करना चाहिए और तब तक जब तक कि आप को स्थाई नौकरी न मिले संविदा पर यह काम करते रहना चाहिए। इस भरोसे में बिलकुल नहीं रहना चाहिए कि यहाँ आप कुछ बरसों तक संविदा पर काम करने के बाद स्थाई या नियमित कर्मचारी हो जाएँगे। पहले ऐसा बहुत हुआ है लेकिन उमादेवी के मामले में सुप्रीमकोर्ट का निर्णय आने के बाद यह संभव नहीं रहा है।
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5 Comments
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बहुत अच्छी जानकारी दी
धन्यवाद
बजा फ़रमाया सर आपने।
यह मेरे लिए महत्वपूर्ण जानकारी है. 'सेक्रेटरी कर्नाटक राज्य एवं अन्य बनाम उमादेवी' निर्णय के बारे में, मैं पूर्णतय: अनभिज्ञ था. पहले ये चलता था कि 179 दिन किसी तरह काट लो फिर कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
इसके चलते जहां एक ओर अफसरों ने सरकारी भर्तियों का बैकडोर रास्ता निकाल रखा था वहीं दूसरी तरफ एरे-गैरे-नत्थू-खैरे भी खूब मज़े लूट रहे थे जबकि बेचारे आम लोग मुंह ताकते रह जाते थे.
माननीय उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद कि उसने श्रम कानूनों की आड़ में चल रहे एसे गोरखधंधों को पहचाना व समुचित निर्णय दिया. यूं भी आज देश में गर थोड़ा-बहुत कुछ ठीक-ठाक हो भी रहा है तो वह केवल उच्चतम न्यायालय का ही प्रताप है वरना बाकी तो हर शाख पे उल्लू बैठा है…चाहे वह विधायिका हो या प्रशासन. खबर के लिए धन्यवाद.