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राजस्थान में परिसर के किरायों में वृद्धि का कानून और किराया पुनरीक्षण

समस्या-

बीकानेर, राजस्थान से दीपक तनेजा ने पूछा है-

मैं ने दस वर्ष पूर्व 180 वर्गफुट की एक दुकान 1100 रुपए प्रतिमाह पर किराए पर दी थी जिस के लिए 85000/- रुपए एक मुश्त (वापसी योग्य नहीं) पगड़ी भी प्राप्त की थी। प्रत्येक दो वर्ष बाद किराया पाँच प्रतिशत बढ़ाए जाने की शर्त थी। यह गलत है या सही? क्या मैं प्रतिवर्ष पांच प्रतिशत किराया बढ़ा सकता हूँ? इस के लिए मुझे क्या करना पड़ेगा? इन दिनों किराया 1375 रुपए प्रतिमाह है।

समाधान-

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम-2001 दिनांक 1 अप्रेल 2003 से प्रभावी किया गया है।  इस अधिनियम की धारा 6 (1) में उपबंधित किया गया है कि किसी करार में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां परिसर इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व किराए पर दिए गए हों वहाँ उन का किराया नीचे उपदर्शित सूत्र के अनुसार पुनरीक्षणीय होगा।

सूत्र के अनुसार 1 जनवरी 1950 के पूर्व किराए पर दिए गए परिसरों को 1 जनवरी 1950 को किराए पर दिया हुआ मानते हुए उस समय का किराया पाँच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ाए जाने का दायी होगा। किराए की राशि दस वर्ष पश्चात किराए में समाविष्ट कर दी जाएगी इस प्रकार परिनिर्धारित की गई किराए की रकम इस अधिनियम के प्रारंभ होने के वर्ष तक उसी रीति से पाँच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से उसी रीति से पुनः बढ़ाए जाने की दायी होगी।

हाँ परिसर 1 जनवरी 1950 या उस के पश्चात किराए पर दिए गए हों वहाँ किराएदारी के प्रारंभ के समय संदेय किराया पाँच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ाए जाने का दायी होगा। किराए की राशि दस वर्ष पश्चात किराए में समाविष्ट कर दी जाएगी इस प्रकार परिनिर्धारित की गई कराए की रकम इस अधिनियम के प्रारंभ होने के वर्ष तक उसी रीति से पाँच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से उसी रीति से पुनः बढ़ाए जाने की दायी होगी।

स तरह इस अधिनियम के प्रारंभ होने के वर्ष में जो किराया परिनिर्धारित किया जाएगा उस का पांच प्रतिशत किराया प्रतिवर्ष बढ़ाया जाएगा। तथा दस वर्ष पश्चात बढ़ा हुआ किराया किराए में समाविष्ट कर दिया जाएगा। ऐसा किराया किराएदारी रहने तक उसी दर से और बढ़ाए जाने का और उसी रीति से समाविष्ट किए जाने का दायी होगा।

प के मामले में किराएदारी दस वर्ष पूर्व अर्थात वर्ष 2002 में अधिनियम के प्रारंभ के पहले आरंभ हो चुकी है। आपने महिना नहीं बताया है इस कारण से हम इसे 1 नवम्बर 2002 मान लेते हैं। इस तरह आप की दुकान का किराया 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से पहली बार 1 नवम्बर 2003 को बढ़ेगा। जब कि किराया अधिनियम 1 अप्रेल 2003 को प्रभावी हो चुका था। इस से दस वर्ष तक अर्थात 1 अप्रेल 2012 तक प्रतिवर्ष इसी तरह बढ़ता हुआ माना जाएगा। प्रारंभिक किराया 1100 रुपए प्रतिमाह था इस तरह प्रतिवर्ष किराया 110 रुपए प्रतिमाह प्रतिवर्ष बढ़ाया जाना चाहिए था। अर्थात 1 नवम्बर 2003 में 1210 रुपए, 1 नवम्बर 2004 को 1320 … 1 नवम्बर 2012 को 2200 रुपए प्रतिमाह हो जाएगा।  अब चूंकि दस वर्ष पूरे हो चुके हैं इस कारण से अगले वर्ष अर्थात 1 नवम्बर 2013 को पिछले दस वर्ष में हुई किराए में बढ़ोतरी किराए में समाविष्ट हो कर आधार किराया 2200 हो जाएगा और 220 रुपए प्रतिमाह की दर से वृद्धि होगी और किराया 2420 रुपए प्रतिमाह तथा 1 नवम्बर 2014 को 2640 रुपए प्रतिमाह हो जाएगा।

लेकिन आप ने जो किराया अब तक प्राप्त किया है उस में ही आप को संतुष्ट होना होगा क्यों कि इस अधिनियम में यह उपबंधित है कि किराया निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाएगा और बढ़ाया गया किराया न्यायालय में अर्जी दाखिल करने की तिथि से प्रभावी होगा। इस प्रकार यदि आप 1 दिसंबर 2012 को अर्जी दाखिल कर देते हैं तो आप इस तिथि से रुपए 2200 प्रतिमाह किराया प्राप्त कर सकेंगे। आगे प्रतिवर्ष उक्त सूत्र के अनुसार किराया बढ़ा सकेंगे। अर्थात 1 नवम्बर 2013 से किराया 2420 रुपया प्राप्त कर सकते हैं।  किराया बढ़ाने के लिए आप को किराया अधिकरण में किराया पुनरीक्षण की अर्जी दाखिल करनी होगी। पगड़ी या अग्रिम के संबंध में इस अधिनियम में कोई उपबंध  नहीं है।    

प ने प्रति दो वर्ष में किराया बढ़ाने का जो करार किया था वह अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि के पूर्व किया था। इस कारण आप इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार किराया निर्धारित करवा सकते हैं। यदि यही करार आप ने 1 अप्रेल 2003 को या उस के बाद किया होता तो आप करार के अनुसार प्रत्येक दो वर्ष में 5 प्रतिशत से अधिक किराया बढ़ोतरी नहीं करवा सकते थे। फिर आप किराया करार के अनुसार ही किराया बढ़ा कर प्राप्त करने के अधिकारी हो सकते थे।

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