सात वर्ष से पत्नी अकारण मायके में रह रही है, तुरंत तलाक के लिए आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए
| शैलेन्द्र पूछते हैं –
मेरी शादी मई 2003 में हुई थी और मेरी पत्नी मार्च 2004 से उस के मायके में रह रह है। अभी तक उन लोगों ने कोई मुकदमा नहीं किया, केवल धमकी देते हैं। मेरे ससुर पुलिस विभाग में हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी पत्नी पिछले सात साल से बिना किसी वजह के मायके में रहने के कारण तलाक की अर्जी डाल सकता हूँ? वह मेरे माता-पिता से अलग रहना चाहती है। क्या वे लोग इतने वर्ष बाद मेरे खिलाफ मेरे व मेरे घरवालों के विरुद्ध झूठे मुकदमे कर सकते हैं? यदि वह भरण पोषण का मुकदमा करे तो क्या मुझे उसे पिछले सात साल का भी भरण पोषण देना पड़ेगा। मेरे ससुर अप्रेल 2011 में सेवा निवृत्त हो जाएंगे। वे कहते हैं कि सेवा निवृत्ति के बाद दुम लोगों पर मुकदमा करूंगा। वे पैसे और पुलिस वाले हैं, हमारी ताकत उन लोगों के सामने मुकदमा लड़ने की नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर –
शैलेन्द्र जी,
आप के कथनानुसार सात वर्ष से आप की पत्नी बिना किसी कारण के अपने मायके में निवास कर रही है। इतने लम्बे समय से पत्नी का मायके में रहना और आप के द्वारा उसे अपने पास लाने के लिए कोई प्रयास नहीं करना बड़ा विचित्र लगता है। हो सकता है आप ने प्रयास किए हों लेकिन वह नहीं आई हो। होना तो यह चाहिए था कि छह माह तक आप की पत्नी के न आने पर आप उसे लाने के प्रयास करते। फिर भी वह नहीं आते तो कम से कम धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना के लिए एक आवेदन परिवार न्यायालय अथवा जिला न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते। लेकिन आप ने इन प्रयासों का उल्लेख अपने प्रश्न में नहीं किया है। धारा-9 में आप के डिक्री प्राप्त कर लेने से आप का मामला मजबूत होता और आप के लिए तलाक प्राप्त करना आसान हो जाता।
हो सकता है आप यह सोचते हों कि आप के ससुर पुलिस में होने से आप अपनी पत्नी के विरुद्ध कोई मुकदमा करेंगे तो वह परेशान कर लेगा। लेकिन यह भी सोचिए जो व्यक्ति लगातार पुलिस की सेवा में होने पर आप के विरुद्ध कुछ नहीं कर सका, वह सेवा निवृत्त होने के बाद क्या कर लेगा? आप को अपने ससुर के धन और पुलिस की नौकरी से भयभीत न होना चाहिए, और मिथ्या मुकदमों का भय त्याग कर कार्यवाही करना चाहिए।
आप की पत्नी सात वर्षों से मायके में रह रही है, इस कारण से धारा 498-ए के अंतर्गत मुकदमा होने की संभावना समाप्त प्रायः है। यदि कोई मिथ्या कथन कर के कोई मुकदमा किया भी हो तो भी वह चलने लायक नहीं है और अन्वेषण के स्तर पर ही आप के प्रयासों से समाप्त हो जाएगा। वह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भरण-पोषण के लिए मुकदमा अवश्य कर सकती है। लेकिन उसे इस के लिए आप से सात वर्ष तक अलग रहने का वाजिब कारण बताना होगा जो आसान नहीं है।
कोई भी पत्नी अपने पतिगृह स्वैच्छा से त्याग दे, सात वर्ष तक न लौटे, दाम्पत्य के दायित्वों का निर्वाह न करे और पति को दाम्पत्य अधिकारों से वंचित रखे तो यह तलाक का बहुत वाजिब आधार है। आप मुकदम
More from my site
7 Comments
बहुत अच्छी जानकारी.
अच्छी सलाह के साथ ही समस्या के निवारण हेतु उपाय.विस्तार से नहीं तो संक्षिप्त में निम्नलिखित विषयों पर जानकारी प्रदान करें.
1. क्या धारा 160 व 175 का नोटिस किसी आरोपित के घर के बाहर जांच अधिकारी चिपकवा सकता हैं? जबकि जांच अधिकारी से फ़ोन पर हुई बातचीत में एक सभ्य व्यक्ति उपरोक्त नोटिस को लेने के लिए तैयार था.फिर जानबूझकर जांच अधिकारी ने समय देकर नोटिस नहीं भिजवाया और अपनी बीमारी के सिलसिले में दिल्ली से बाहर जाने पर जांच अधिकारी ने नोटिस को चिपकाकर अपमानित किया. मेरी जानकारी के अनुसार जब तक अदालत धारा 82/83 नहीं करती हैं तब तक ऐसा नहीं कर सकता है. क्या मेरी जानकारी सही है? अगर आपको उचित लगे तो इन(धारा 160 व 175 और धारा 82/83) धाराओं का मुख्य उद्देश्य समझाये.
2. क्या बच्चे की कस्टडी (संरक्षण या देखने/मिलने का) के लिए केस दायर करने से पहले कोई नोटिस भेजना जरूरी होता है या भविष्य में लाभ लेने के उद्देश्य से रजिस्टर्ड ए.डी/स्पीड पोस्ट/यू.पी.सी या फ़ोन करना व ईमेल करना या फिर किसी प्रकार की कौन से क्षेत्र के थाने में शिकायत करना उचित होगा? इसे कौन-सी धारा/अधिनियम से पुकारा/कहा जाता है? ऐसे कौन से कारण होते हैं, जिनके तहत पुत्र की कस्टडी पिता को दी जा सकती है? अगर किसी मामले में कस्टडी दी गई हो तो एक-दो का सन्दर्भ देने की कृपया करें
कई पतियों का जीवन तबाह हो चुका है बदतमीज पत्नियों के कारण। स्वयं सुप्रीम कोर्ट को पहल करनी चाहिए पतियों के लिए संरक्षणकारी कानून बनाने को लेकर।
अच्छी जानकारी दी आपने.
रामराम.
सात साल कम तो अन्ही होते… बहुत अच्छी सलाह, धन्यवाद
भविष्य के लिए सही जानकारी !
बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।