स्वतंत्र सहमति के बिना किए गए, कौन से कंट्रेक्ट शून्य हो सकते हैं?
स्वतंत्र सहमति के बिना अनुबंधों की शून्यकरणीयता
जब किसी भी अनुबंध के लिए सहमति जबर्दस्ती, कपट या मिथ्या-निरूपण के माध्यम से प्राप्त की गई हो, तो ऐसा अनुबंध उस पक्षकार के विकल्प पर जिस की सहमति इस तरह प्राप्त की गई है शून्यकरणीय है।
कंट्रेक्ट के जिस पक्षकार की सहमति कपट या मिथ्या-निरूपण के माध्यम से प्राप्त की गई है, यदि वह उचित समझे तो ऐसे कंट्रेक्ट का पालन करने पर और उसे ऐसी स्थिति में रखे जाने पर जोर दे सकता है जैसे कि सभी निरूपित किये गए तथ्य सत्य थे।
अपवाद- यदि सहमति ‘मिथ्या-निरूपण’ या ‘पूर्ण मौन के माध्यम से धारा 17 में परिभाषित कपट’ द्वारा प्राप्त कर लेने पर भी, सहमति देने वाले पक्षकार के पास, मामूली तत्परता से ही सत्य का पता लगा लेने के साधन उपलब्ध हों तो ऐसा कंट्रेक्ट शून्यकरणीय नहीं है।
स्पष्टीकरण- ऐसा कपट या मिथ्या-निरूपण, जिस के कारण उस पक्षकार की सहमति प्राप्त नहीं हुई हो, जिस से ऐसा कपट किया गया था, या मिथ्या निरूपण किया गया था, तो कंट्रेक्ट शून्यकरणीय नहीं है।
जिन चार कारणों से किसी अनुबंध के लिए सहमति देने वाले की ‘स्वतंत्र सहमति’ प्रभावित होती है, उन में से ‘अनुचित प्रभाव’ को छोड़ कर शेष तीन मामलों में भी कंट्रेक्ट अपने आप शून्य नहीं मान लिया जाता है, वह तभी शून्य माना जाएगा जब कि वह व्यक्ति जिस की सहमति इस प्रकार प्राप्त की गई है वह इस पर आपत्ति करे, कंट्रेक्ट को इन में से किसी आधार पर शून्य या समाप्त माने जाने पर जोर दे।
इस में भी ‘मिथ्या-निरूपण’ या ‘पूर्ण मौन के माध्यम से धारा 17 में परिभाषित कपट’ द्वारा प्राप्त सहमति के मामले में अपवाद यह है कि यदि सहमति देने वाला पक्षकार सामान्य साधनों से अन्य पक्षकारों द्वारा मिथ्या निरूपित असत्य तथ्यों या मौन के द्वारा छुपाए गए सत्यों का पता लगा सकता है, तो भी कंट्रेक्ट किसी भी स्थिति में शून्य और समाप्त नहीं होगा। कानून किसी भी कंट्रेक्ट के लिए सहमति देने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा रखता है कि वह कंट्रेक्ट करने के समय सजग तथा सतर्क रहे, और कंट्रेक्ट के अन्य पक्षकारों के कथनों या मौन को अपने विवेक, उपलब्ध साधनों से अवश्य परखे।
यहाँ कानून एक स्पष्टीकरण द्वारा यह भी स्पष्ट करता है कि यदि कपट या मिथ्या-निरूपण द्वारा किसी व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है और उस किए गए कपट या मिथ्या-निरूपण से सहमति प्रभावित नहीं है तो भी कंट्रेक्ट को किसी हालत में शून्य नहीं माना जाएगा। जैसे कोई बीमा प्रस्ताव भरने के कुछ दिन पहले किसी व्यक्ति को खांसी रही हो, और ऐसी खाँसी बाजार से कोई सीरप ला कर सेवन करने से महीने-पन्द्रह दिनों में मिट गई हो। यह तथ्य छिपा लिया गया हो तो भी इस श्रेणी के मिथ्या-निरूपण से प्रभावित कंट्रेक्ट समाप्त या शून्य नहीं माना जाएगा। हम यह कह सकते हैं कि कपट या मिथ्या-निरूपण तात्विक तथ्य के सम्बन्ध में होना चाहिए।
कानून में कुछ उदाहरण भी सम्मिलित किए गए हैं जिन से इन मामलों को स्पष्ट किया जा सके। जैसे…….
(क) ‘ख’ को धोखा देने के इरादे से ‘क’ मिथ्या-निरूपण करता है, कि ‘क’ के कारखाने में प्रतिदिन सौ टन सीमेंट बनता है और ‘ख’ को उस का कारखाना खरीदने को प्रेरित करता है। ऐसी स्थिति में ‘ख’ के जोर देने पर कंट्रेक्ट शून्य या समाप्त किया जा सकता है।
(ख) ‘क’ मिथ्या-निरूपण द्वारा ‘ख’ को यह विश्वास दिलाता है कि ‘क’ के कारखाने में प्रतिदिन सौ टन सीमेंट बनता है और ‘ख’ उस के कारखाने के लेखाओं की परीक्षा करता है जिस से यह पता लगता है कि सीमेंट का उत्पादन मात्र 80 टन प्रतिदिन का ही है और फिर भी कारखाना खरीदने का कंट्रेक्ट कर लेता है। ऐसी स्थिति में मिथ्या-निरुपण के माध्यम से किया गया कंट्रेक्ट शून्य या समाप्त नहीं होगा।
(ग) ‘क’ कपट पूर्वक ‘ख’ को यह सूचित करता है कि ‘क’ की सम्पत्ति सभी प्रकार का भारों से मुक्त और विक्रय योग्य है। ‘ख’ इस सम्पत्ति को खरीद लेता है। बाद में यह सम्पत्ति किसी के पास किसी ऋण के लिए बंधक होना ज्ञात होता है। यह कंट्रेक्ट ‘ख’ के विकल्प पर शून्य या समाप्त घोषित किया जा सकता है और ‘ख’ चाहे तो संविदा को रखते हुए उस संपत्ति को बंधक-ऋण से उन्मोचित कराने के लिए भी जोर दे सकता है।
विगत आलेख पर परिभाषित मिथ्या-निरूपण से उपजे दो प्रश्न आए थे। वैसे तो आज के आलेख से इन प्रश्नों का उत्तर मिल ही गया होगा। फिर भी अभिषेक जी ने पूछा कि ‘अगर कोई मौखिक रूप से शेयर खरीदने की सलाह देता है जिसमें कोई लिखित प्रमाण नहीं है तो क्या यह मिथ्या-निरूपण होगा?’
मिथ्या-निरूपण को कंट्रेक्ट के सम्बन्ध में परिभाषित किया गया था। शेयर के मामले में कथन करने वाले को कंट्रेक्ट का पक्षकार होना आवश्यक है। वह शेयर विक्रेता या उस का अभिकर्ता (ब्रोकर) हो। उस ने खुद आप को शेयर बेचा हो। उस ने कोई ऐसा तथ्य बताया हो जो मिथ्या हो और जिस से कथन करने वाले को लाभ या खरीदने वाले को हानि हुई हो। उक्त मामले में मिथ्या-निरूपण के सम्बन्ध में मौखिक साक्ष्य दे कर न्यायालय में तथ्य को साबित किया जा सकता है। हाँ, कम से कम एक स्वाभाविक साक्षी भी हो तो बेहतर होगा।
ज्ञानदत्त जी पाण्डे ने सवाल किया कि “मिथ्या–निरूपण किस दर्जे की चूक या अपराध है?”
मिथ्या-निरूपण अपराध तो नहीं है। चूक यह अवश्य है, वह भी ऐसी कि उस के आधार पर कंट्रेक्ट को शून्य (अकृत) घोषित कराया जा सकता है।
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आज कमेण्ट मेरे पीछे खड़ी पत्नी जी का –
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आपने बायें बाजू लिखा है:
शायद यहाँ जाना, आप पसंद करें
उच्चतम न्यायालय
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श्रीमती रीता उवाच: कौन जाना चाहेगा जी अपने आप!
सारगर्भित जानकारी है..शुक्रिया.
इस जानकारी के लिये शुक्रिया
हमेशा की तरह उपयोगी और सारगर्भित जानकारी है।
रोचक और काम की जबरदस्त जानकारी.
आभार.
बहुत कुछ साफ़ हुआ इस पोस्ट से…
और सीख लेने की बात ये:
“कानून किसी भी कंट्रेक्ट के लिए सहमति देने वाले प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा रखता है कि वह कंट्रेक्ट करने के समय सजग तथा सतर्क रहे, और कंट्रेक्ट के अन्य पक्षकारों के कथनों या मौन को अपने विवेक, उपलब्ध साधनों से अवश्य परखे।”