स्वस्थचित्तता और सहमति के अर्थ
कंट्रेक्ट करने के उद्देश्य से कौन स्वस्थ चित्त है?
कंट्रेक्ट करने के उद्देश्य लिए एक व्यक्ति को तब स्वस्थ चित्त कहा जाएगा, जब कि कंट्रेक्ट करने के समय वह कंट्रेक्ट को समझने के योग्य हो, और स्वयं के हितों पर इस के प्रभाव के सम्बंध में तर्कसंगत निर्णय करने में सक्षम हो।
एक व्यक्ति जो सामान्य रूप से अस्वस्थ चित्त रहता है, जब स्वस्थ चित्त हो तो कंट्रेक्ट कर सकता है।
एक व्यक्ति जो सामान्य रूप से स्वस्थ चित्त रहता है, जब अस्वस्थ चित्त हो तो कंट्रेक्ट नहीं कर सकता है।
इन बातों को हम यूँ समझ सकते हैं कि-
- एक बीमार व्यक्ति जो मानसिक चिकत्सालय में भर्ती है, जो बीच बीच में स्वस्थ चित्त रहता है, तो वह जब स्वस्थ चित्त हो कंट्रेक्ट कर सकता है।
- एक व्यक्ति जो सामान्य रूप से स्वस्थ ही रहता है, लेकिन बुखार के कारण होश में नहीं है, या वह मदिरा या अन्य किसी नशीले पदार्थ के इतने प्रभाव में है कि कंट्रेक्ट की शर्तों को नहीं समझ सकता, या अपने हितों के सम्बन्ध में तर्क संगत निर्णय नहीं कर सकता तो जब तक वह होश में नहीं आ जाता है तथा नशीले पदार्थ के प्रभाव से बाहर नहीं आ जाता है तब तक कंट्रेक्ट नहीं कर सकता।
- इस तरह एक व्यक्ति जो अस्वस्थ चित्त होने के समय कोई कंट्रेक्ट करता है तो वह एक शून्य कंट्रेक्ट होगा। यहाँ केवल दिमागी कमजोरी को चित्त की अस्वस्थता नहीं माना जा सकता।
- कोई व्यक्ति जो अनपढ़ है और कंट्रेक्ट के विलेख को पढ़ने में असमर्थ है, उस के किसी कंट्रेक्ट पर हस्ताक्षर मात्र से कंट्रेक्ट उस पर बाध्यकारी नहीं माना जा सकता, इस के लिए यह साबित करना होगा कि उस ने यह हस्ताक्षर कंट्रेक्ट के विलेख के अच्छी तरह समझ कर ही हस्ताक्षर किए थे।
- जब कभी भी किसी दस्तावेज का निष्पादन किए जाने के समय निष्पादनकर्ता के अस्वस्थ चित्त होने का मामला अदालत के सामने आएगा तो इसे तथ्य का प्रश्न समझा जाएगा। सामान्य रूप से यही समझा जाएगा कि कोई भी विलेख स्वस्थचित्त हो कर ही निष्पादित किया गया था। इस कारण से न्यायालय के समक्ष जो पक्ष यह कथन करेगा कि विलेख पर हस्ताक्षर करने के समय हस्ताक्षर कर्ता के अस्वस्थ चित्त होने के कारण विलेख शून्य है वही पक्ष यह साबित करेगा कि ऐसा था। लेकिन यदि किसी मामले में यह साबित कर दिया जाता है कि हस्ताक्षरकर्ता सामान्य रूप से अस्वस्थ चित्त ही रहता है तो विलेख को सही होने का कथन करने वाले पक्ष को यह साबित करना होगा कि विलेख के निष्पादन के समय निष्पादनकर्ता स्वस्थचित्त था। (धारा-12)
किसी भी कंट्रेक्ट में ‘सहमति’ (Consent) का बहुत महत्व है। यही कारण है कि इस शब्द को कंट्रेक्ट कानून में विशेष रूप से इस तरह परिभाषित किया गया है…
…जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक समान वस्तु के सम्बन्ध में एक समान अर्थ में सहमत हो जाते हैं तो उसे ‘सहमति’ (Consent) कहा जाएगा। (धारा-13)
आगे इस कानून में ‘स्वतंत्र सहमति’ को भी परिभाषित किया गया है। जिस पर हम आगामी कड़ियों में बात करेंगे।
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सरल – सहज उपयोगी जानकारी…
Good & technically very informative post
achchi jankari uplabdh kara rahe hain aap…kam se kam basic jankari mil jayegi sabko.
इस कारण से न्यायालय के समक्ष जो पक्ष यह कथन करेगा कि विलेख पर हस्ताक्षर करने के समय हस्ताक्षर कर्ता के अस्वस्थ चित्त होने के कारण विलेख शून्य है वही पक्ष यह साबित करेगा कि ऐसा था।
इसका कोई दृष्टांत हो तो पढ़ने में मजा आ जाये!
सहमति और स्वतंत्र सहमति के बारे में लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानने की जरूरत है क्योंकि अक्सर लोग इन चीजों के बारे में अज्ञान होने के कारण ही अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं
धन्यवाद एक अच्छी जान कारी देने के लिये
वाकई उपयोगी जानकारी…..
कंट्रेक्ट की उपयोगी जानकारी के लिए आभारत।
बहुत उपयोगी जानकारी..सरल और सहज.