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हत्यारा कौन? सजा किसे?

हत्या को पूरे तीन माह भी नहीं हुए थे। उसे हत्या के दिन ही गिरफ्तार कर लिया गया था। यूँ वह पेशियों पर आता रहता था। पर सुनवाई के लिए यह मुकदमे की पहली ही पेशी थी, और उसी दिन उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई।

आठ लाख की आबादी के कोटा नगर में जहाँ सदा गन्दगी के ढेर लगे नजर आ जाएँगे।  वहीं परंपरागत रूप से सफाई करने और मैला ढोने के काम में लगे मेहतर परिवारों के सैंकड़ों नौजवान बेरोजगार मिल जाएँगे। वे रोजगार विहीन हैं। यही है हमारे देश की नियति कि एक ओर गंदगी के ढेर लगे हैं, दूसरी ओर इस गंदगी को नगरों, बस्तियों से हटाने का रोजगार करने वाले बेकार घूमते नजर आ जाएँगे।

राजू भी उन्हीं बेरोजगारों की फौज में एक है। उस की उम्र 30 साल की है। माँ-बाप कभी के काल के ग्रास हो चुके। बचा वह और उस की दो बहनें। माँ-बाप ने एक झोपड़ा छोड़ दिया था, उसी में जैसे तैसे रहते थे। बहनें बड़ी हो रही थीं। पर न उन्हें कोई काम मिल रहा था और न ही भाई को। न जाने कितने दिनों से घर में फाकाकशी थी। भाई को कोई काम न मिला तो कचरे के ढेर से काम की चीजें तलाशने चला गया। दिन में न जाने कितने कचरे के ढेर नापे। कुछ काम की वस्तुएं मिली भी। कबाड़ी के यहाँ उन्हें बेच कर मिले दस रुपए।

शाम को घर आ कर दस रुपए बहनों को दे दिए। भूख से दोहरी तीन जानें, जानती थीं की इस से पेट न भरेगा। बहनों ने दस रुपए में दूध, चाय-पत्ती और शक्कर का जुगाड़ किया। तीनों ने चाय पी। भाई फिर चला गया। शायद कुछ जुगाड और हो जाए। आधी रात तक भी वह लौट आया, खाली हाथ। सोचता था बहनों ने कुछ तो खाने का जुगाड़ किया ही होगा। पर बहनें सोयी पड़ी थीं।

उस के आने की आहट से उठी। खाने को रोटी मांगी। रोटी होती तो बहनें परस देतीं। उन्होने मौन इनकार में सिर हिला दिया। इधर भाई का सिर हिल गया। खुद की भूख बर्दाश्त न हुई. या तीनों की। उस पर जुनून चढ़ गया था। उस ने पत्थर उठाए और मारने लगा बहनों को। न जाने कब जुनून उतरा, होश आया तो बहनें लहूलुहान थीं। उस ने पड़ौसी को खबर की। पड़ौसी ने कोतवाली को। पुलिस बहनों को अस्पताल ले गई। लेकिन तब तक वे इस जीवन के नर्क से मुक्त हो चुकी थीं। राजू को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।

सुनवाई के पहले दिन ही उसे जब आरोप सुनाया जाने लगा तो जज के सामने उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और सब से कड़ी सजा देने की मांग की “मुझे फाँसी दे दो”। जज ने उसे बहुत समझाया, उसे सोचने का समय भी दिया। पर राजू टस से मस न हुआ। जज ने उसे आजीवन कारावास और सौ रुपए जुर्माने की सजा सुना दी। उस राजू को जिस के पास हत्या वाले दिन इतने रुपए होते तो शायद उस की बहनें जीवित होतीं।

कोटा के न्यायिक इतिहास में यह पहला अवसर था, जब हत्या के अभियुक्त ने जुर्म स्वीकार किया था। पहली बार एक ही सुनवाई में निर्णय हुआ था।

यह वह देश है जहाँ एक आरुषी की हत्या में देश भर को मीडिया ने एक माह से उलझा रखा है। पेट्रोल की कीमतों में बढौतरी और पौने नौ प्रतिशत महंगाई उस खबर के नीचे दब कर रह गई है। वहाँ कौन सोचेगा कि उन दो बहनों की हत्या के लिए उस समाज, उस शहर, उस देश का हर एक बाशिन्दा अपराधी है, जिन्होंने गन्दगी को बर्दाश्त करने की आदत बना ली है। और उसे उन से दूर करने का रोजगार चाहने वालों को भूख, बान्धवों की हत्या और कैद की
सजा बख्श दी है।

वह चाहता था उसे फाँसी हो जाए। उसे भी इस नर्क से मुक्ति मिले। पर हमारी न्याय-प्रणाली ने उसे जीवन दिया, और दो जून के खाने की व्यवस्था कर दी। उसे अभी न जाने कितनी बार मरना शेष है।

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