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मूल दस्तावेज की फोटो प्रतियों से भी मुकदमा साबित किया जा सकता है

समस्या-

चैक बाउंस हो जाने पर मेरे विरुद्ध एक मुकदमा धारा 138 के अंतर्गत दायर हूआ। उस में  मूल चेक लगा हुआ था. मुकदमा चल ही रहा था कि वह फाइल न्यायालय से कहीं गायब हो गयी। अब एक साल बाद पुनः जिला न्यायाधीश के आदेश से दूसरी फाइल बनी है जिसमे सारे कागज फोटोकॉपी ही लगे हैं।  मै उस मुक़दमे में उपस्थित होकर अपनी जमानत करवा चुका हूँ। जो नयी फाइल बनी है उस फाइल में मेरे द्वारा दी गयी एक मूल रिकाल अप्लिकेशन भी लगी है जो मूल फाइल में थी। जबकि वह बताते है कि मूल फाइल गायब हो चुकी है। इस मामले में मेरे विरूद्ध बहुत ही बड़ी साजिश रची गयी है। क्यों कि जिस चैक के आधार पर मेरे ऊपर मुकदमा किया गया है, वह चेक बुक मेरे पास से गायब हो गयी थी जिसकी F.I.R. मैंने दर्ज करवा कर बैंक को उसकी सूचना दे दी थी। बड़ी बात यह है कि न तो मैंने चेक किसी को जारी किया था और न ही मैं चेक पर साईंन करके रखता हूँ।  जो चेक मुक़दमे में लगाया था उस पर भी मेरी साईंन नहीं है बल्कि किसकी है मै यह भी नहीं जानता हूँ।  मेरे बैंक ने भी रिपोर्ट दी थी कि चेक पर जो हस्ताक्षर हैं वह खाताधारक के हस्ताक्षर  से मेल नहीं खाते हैं।  मेरा उस व्यक्ति से कभी कोई व्यापारिक लेनदेन भी नहीं हुआ।  ऐसा लगता है कि फाइल गायब होने के लिए मुझे ही जिम्मेदार बनाया जा सकता है जबकि मुझसे कोई पूछताछ तक नहीं हुई है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आपको और क्या जानकारी उपलब्ध कराऊँ? इस मुकदमे में क्या हो सकता है? और मुझे क्या करना चाहिए?

-गगन जायसवाल, फ़ैजाबाद, उत्तर प्रदेश

समाधान-

प के विरुद्ध जो मुकदमा चलाया गया है उस की पत्रावली गायब हो गई। उस के स्थान पर छाया प्रतियों से नई पत्रावली बनाई गई।  आप इस मुगालते में कदापि न रहें कि छायाप्रतियों के आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। न्यायालय को साक्ष्य अधिनियम की धारा 64 के अंतर्गत यह शक्ति प्राप्त है कि वह विशिष्ठ परिस्थितियों में छाया प्रतियों को द्वितीयक साक्ष्य के रूप में रिकार्ड पर ले कर मुकदमे को आगे बढ़ा सकती है। इस तरह इस मुकदमे में सारी कार्यवाही वैसे ही होनी है जैसे मूल पत्रावली के होने पर होती। आप समझते हैं कि न्यायालय को यह संदेह हो सकता है कि आप ने यह पत्रावली गायब करवा दी है और इस का लाभ परिवादी को हो सकता है। तो आप का यह संदेह उचित नहीं है। किसी भी मुकदमे में अपराध संदेह के परे साबित होने पर ही अभियुक्त को दोषसिद्ध करार दिया जा सकता है, अन्यथा नहीं।

प के मुकदमे में आप को वही सब प्रतिरक्षा लेनी चाहिए जो आप मूल पत्रावली के उपलब्ध रहते ले सकते थे। अर्थात आप को यह साबित करना होगा कि चैक आप के द्वारा नहीं दिया गया था,  चैक धारक के प्रति आप का कोई आर्थिक दायित्व नहीं था, आप ने समय रहते आप की चैक बुक खोने की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी तथा चैक पर आप के हस्ताक्षर नहीं हैं और जाली बनाए गए हैं। आप को तथा आप के वकील को इस प्रकरण में पर्याप्त श्रम करना होगा। क्यों कि चैक बाउंस के मुकदमों में सदैव ही जब तक कि आप स्वयं यह साबित नहीं कर दें कि चैक किसी दायित्व के अधीन नहीं दिया गया था न्यायालय यह मानेगा कि चैक आप के द्वारा ही जारी किया गया था और किसी दायित्व की पूर्ति के अंतर्गत जारी किया गया था। इस के लिए आप को बैंक के अधिकारी का जिस ने यह टिप्पणी की है कि चैक पर आप के हस्ताक्षर नहीं हैं बयान आप को कराना होगा। प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करनी होगी और उसे प्रमाणित करने के लिए भी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने वाले अधिकारी के बयान न्यायालय के समक्ष करवाने होंगे। आप के स्वयं के बयान भी आप को करवाने होंगे और आप के वकील को परिवादी और उस के साक्षियों से अपनी प्रतिरक्षा के संबंध में पर्याप्त प्रश्न जिरह में करने होंगे।

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