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हाबड-तोब़ड़ का क्या लाभ?

ज कल किसी भी विचारण न्यायालय में यह दृश्य देखने को मिल सकता है। एक ओर अदालत का रीडर किसी मुकदमे में वकीलों से आवेदन या उन के जवाब रिकार्ड पर ले रहा है। दूसरी ओर बैठा स्टेनो किसी गवाह के बयान दर्ज कर रहा है जहाँ वकील साहब उस से जिरह कर रहे हैं। जज साहब किसी मुकदमे में बहस सुन रहे हैं। कुछ वकील अपनी बात कहने के लिए जज साहब के खाली होने के खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जैसे ही उन का ध्यान बहस से जरा सा भी हटता है, कोई वकील अपनी बात पेल देता है। तभी जिरह कर रहे वकील और गवाह के पक्षकार के वकील में विवाद हो जाता है और जज साहब उधर ध्यान देने लगते हैं। बहस में बीच में व्यवधान आ जाता है। 
न्यायिक कार्यवाहियों का कायदा यह है कि सब कुछ जज के पर्यवेक्षण में हो। लेकिन आज काम की अधिकता के बीच और जजों द्वारा अधिक से अधिक काम कर दिखाने की होड़ (जिस के लिए काम की अधिकता के आधार पर निश्चित की जाने वाली उन की परफोरमेंस का मूल्यांकनज जिम्मेदार है) ने यह दृश्य पैदा किए हैं। इन सब के बीच सत्य को खोज निकालने की और उन के आधार पर दिए जाने वाले निर्णयों की गुणवत्ता कहीं खोती जा रही है।
न सब के बीच एक अदालत में साल भर से एक जज साहब आए हैं। उन की अदालत में एक वक्त में एक ही काम होता है। अदालत में पूरी शांति रहती है। कोई वकील या मुवक्किल बीच में कोई बात कहना चाहता है तो वे उसे प्रतीक्षा करने को कहते हैं। मुझे लगा कि उन की अदालत से काम काफी कम निकल रहा होगा। मैं ने उस अदालत के पी.ए. से पूछा कि काम कितना निकल रहा है। उस ने बताया कि उतना ही निकल रहा है जितना हाबड़-तोबड़ करने पर निकलता है, और गुणवत्ता? वह सब से अच्छी है अब तक की। फिर अदालत में चल रही हाबड-तोब़ड़ का क्या लाभ?
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