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खतना का निर्णय केवल पिता ही ले सकता है।

समस्या-

राही अकेला ने ग्राम पोस्ट मरार दक्षिण, जिला खगरिया, बिहार से पूछा है-

मैं आईटी सेक्टर में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। मैं किसी भी धर्म में विश्वास नहीं करता, यानी मैं नास्तिक हूँ। मेरे परिवार में भी मां और बहन के अलावा सभी नास्तिक प्रवृति के हैं। जैसा कि आप जानते हैं भारत एक संकीर्ण मानसिकता वाली सभ्यता है, इसलिए हमें शादी किसी मुस्लिम परिवार में ही करना पड़ा। क्योंकि हमारे पूर्वज मुस्लिम थे। दुर्भाग्य से मेरी शादी ऐसे परिवार में हो गयी, जो निहायत धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। अब मेरी समस्या यह है कि 2 साल का मेरा पुत्र है, जिस पर मैं किसी धर्म की शिक्षा-दीक्षा या किसी धर्म का आडम्बर  नहीं थोपना चाहता। मुस्लिम धर्म के हिसाब से सभी मुस्लिम का खतना करवाना जरूरी होता है। लेकिन मैं चाहता हूं कि मैं अपने बच्चे का खतना 18 साल से पहले न करवाऊँ। क्योंकि ऐसा करना उस पर मुस्लिम धर्म थोपना होगा। वो जब बालिग होगा तो अपना खतना खुद करवाना चाहेगा तो करवाएगा। तब मेरी कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन अभी मुझे आपत्ति है क्योंकि उसकी मम्मी और नाना,नानी जो कि बहुत धार्मिक है, उसके खतना करवाने पर बहुत जोर दे रहे हैं। आप हमें बताएं कि भारतीय कानून में ऐसा कोई प्रावधान है, जो मेरे बच्चे को 18 साल तक खतना होने से रोक सके। इसके लिए हमें क्या करना होगा, कृपया करके हमें जरूर बताएं। मैं बहुत असमंजस की स्थिति में हूँ।

समाधान-

हमने आप की समस्या पर विभिन्न कानूनों की रोशनी में अत्यन्त गंभीरता पूर्वक विचार किया है। हमने पाया है कि खतना मुस्लिम लॉ में शरीयत का हिस्सा नहीं है। खतना कुरआन पूर्व की सुन्नत है और नबी इब्राहीम से चली आती है। मुस्लिम समुदाय के अतिरिक्त यहूदी और अन्य समुदाय भी इस सुन्नत को मानते हैं। यह सुन्नत उसी प्रकार है, जैसे मुस्लिम पुरुष दाढ़ी रखना इसलिए सुन्नत मानते हैं  क्यों कि उन के नबी मुहम्मद साहेब भी दाढ़ी रखते थे। लेकिन यदि कोई मुस्लिम पुरुष दाढ़ी न रखे तो इसी कारण से वह इस्लाम से खारिज नहीं किया जा सकता है। इसी तरह खतना भी एक सुन्नत है और हर मुसलमान  के लिए जरूरी नहीं है।

इस का दूसरा पक्ष यह है कि किसी भी बच्चे के बारे में केवल उस का संरक्षक ही निर्णय ले सकता है। मुस्लिम विधि में केवल और केवल पिता ही किसी बच्चे का संरक्षक है और केवल वही यह निर्णय ले सकता है कि उस का खतना होगा या नहीं। किसी भी प्रकार से अन्य व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं है कि वह किसी नाबालिग बच्चे के बारे में कोई निर्णय ले सके।  आप की पत्नी और उस के पिता या रिश्तेदार यह निर्णय नहीं ले सकते कि बच्चे का खतना कराया जाए या नहीं। आप के पुत्र का खतना कराने का आप के जीवित रहते किसी अन्य को कोई अधिकार नहीं है। दूसरे यह कि यह भी जरूरी नहीं है कि खतना नाबालिग अवस्था में ही हो। खुद इब्राहीम के लिए कहा जाता है कि उन का खतना उन्हों ने खुद 99 वर्ष की उम्र में किया था। ऐसी अवस्था में जब कानूनन कोई बच्चा बालिग हो जाए तब खतना कराने का खुद निर्णय ले सकता है।

खतना में किसी बच्चे के शरीर से एक अंग का एक हिस्सा काट कर अलग कर दिया जाता है। यह एक तरह का आपरेशन है और इसे चिकित्सकीय रूप से किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए। खतना के संबंध में यह  तर्क दिया जाता है कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। लेकिन अभी तक यह न तो वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि यह लाभदायक है। कुछ चिकित्सक इसे लाभदायक मानते हैं लेकिन बहुमत इसे सही नहीं मानता है। ऐसी स्थिति में यह एक चाइल्ड एब्यूज है।

ऊपर हमने बताया कि खतना के संबंध में निर्णय करने का अधिकार किस का है। उस के अनुसार आप के पुत्र का खतना कराने के संबंध में एक मात्र अधिकार आप का है, आप का कोई भी रिश्तेदार इस माम ले में आप को सुझाव दे सकता है, सामाजिक धार्मिक दबाव डाल सकता है लेकिन जबरन आप के बच्चे का खतना नहीं करवा सकता। यदि वे ऐसा करते हैं तो यह अपराधिक हो सकता है, एक तरह का दुष्कृत्य तो होगा ही।  बालिग होने पर बच्चा या तुरन्त आप जबरन ऐसा कराने वाले के विरुद्ध हर्जाने का दावा कर सकते हैं।

यदि आप को अंदेशा है कि आप की संतान का आप की इच्छा के विरुद्ध यहाँ तक कि आप की जानकारी मैं लाए बगैर खतना कराया जा सकता है तो जिन लोगों द्वारा ऐसा कराए जाने का अंदेशा हो आप उन के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा का वाद संस्थित कर सकते हैं और साथ ही अस्थायी निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर अस्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने का प्रयत्न कर सकते हैं। इस के लिए आपको एक अच्छा और शोध करने वाले वकील की सहायता लेनी पड़ेगी जो कि वाद पत्र और प्रार्थना पत्र को ठीक से बना सके। साथ के साथ सभी संभावित तर्कों को साक्ष्यों और सबूतों के साथ अदालत के समक्ष रख सके। यदि ऐसा हुआ तो केवल इस आधार पर कि आप के पुत्र का खतना कराने या न कराने का अधिकार केवल आप का है आप इस मामले में अपनी पत्नी सहित सभी संभावित व्यक्तियों के विरुद्ध न्यायालय से निषेधाज्ञा प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।