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Category: Judicial Reform

अदालत क्या करे? 1500 से अधिक मुकदमे अन्तिम बहस में

बाल श्रम उन्मूलन पर हुई परिचर्चा के दिन ही श्रम न्यायालय, कोटा की जज साहिबा से बात हुई थी।  वे बता रही थीं कि अदालत में साढ़े चार
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सरकारों की कुम्भकर्णी निद्रा तोड़ने के लिए शीघ् न्याय को राजनैतिक मुद्दा बनाना होगा

पिछले आलेख मुख्य न्यायाधीश ने कहा-अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या में पाँच गुना वृद्धि आवश्यक में तिरुनेलवेल्ली में हुए एक कार्यक्रम में जो कुछ कहा गया था उस की
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मुख्य न्यायाधीश ने कहा-अधीनस्थ न्यायालयों की संख्या में पाँच गुना वृद्धि आवश्यक

अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश  और मध्यस्थता व संराधन परियोजना के प्रधान श्री एस.बी. सिन्हा ने पिछले शनिवार को  कहा कि देश की अदालतों में मुकदमों का अम्बार
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मोइली साहब! हमारी न्याय-व्यवस्था का ढाँचा चरमरा कर गिरने की कगार पर है

नए विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने कार्यभार संभालने के उपरांत बहुत ही आशाजनक बातें भारतीय न्याय-व्यवस्था के बारे में कही हैं। उन का कहना है कि  भारतीय न्याय-व्यवस्था
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भारत की अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या और बढ़ी

भारत में न्यायार्थियों को शीघ्र न्याय दिलाने और अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के लिए अदालतों की संख्या बढ़ाने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय शेष
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क्या आप अपने लिए एक काम करेंगे?

भारत के मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने बहुत बार कहा है कि देश में अदालतों की संख्या बहुत कम है इस कमी को तेजी से समाप्त किया
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अदालतों की संख्या बढ़ाना न्यायिक सुधारों का प्राथमिक कदम है

बेचारगी न्यायपालिका की आलेख तीसरा खंबा में साल भर पहले प्रकाशित हुआ था।  इस पर आज दो टिप्पणियाँ मिली।  इन में एक श्री अजय कुमार झा की थी। 
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रेगिंग को रुकवाने के लिए लोकसभा के उम्मीदवारों से वायदा लें

अभी हिमाचल प्रदेश में रैगिंग के कारण एक स्टूडंट की मौत का मामला  ठंडा भी नहीं पड़ा कि आंध्र प्रदेश के गुंटूर में कृषि अभियात्रिकी की एक छात्रा
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अदालत का सुझाव : नशे में दुर्घटना कर मृत्यु कारित करने को अजमानतीय और दस वर्ष तक की कैद की सजा से दंडनीय बनाने के लिए कानून बनाया जाए

सड़क दुर्घटना में कु. बबिता चौधरी की मृत्यु का प्रकरण  आखिर अदालत में रंग लाया।  14 दिसम्बर 2008 को कोटा के एक कॉलेज की कुछ छात्राएं शिक्षण टूर
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नियुक्तियों के अभाव में रिक्त पड़ी अदालतें और भटकते न्यायार्थी

तीसरा खंबा लगातार यह बताता रहा है कि न्यायालयों की कमी के कारण किस तरह आम न्यायार्थी को बरसों तक न्याय नहीं मिल पा रहा है।  विगत दिनों
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