ब्रिटिश संसद ने 1861 में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम पारित किया और इसी के साथ भारत में उच्च न्यायालयों के इतिहास का आरंभ हुआ। इस अधिनियम द्वारा ब्रिटिश
ब्रिटिश भारत में 1861 तक जो न्यायिक व्यवस्था विकसित हुई थी वे दो भिन्न प्रकार की थीं। प्रेसीडेंसी नगरों मद्रास, कलकत्ता और मुम्बई में सुप्रीम कोर्ट स्थापित थे
हेस्टिंग्स की 1772 की न्यायिक योजना में प्रान्तीय परिषदों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों और कुछ अन्य दीवानी मामलों की सुनवाई का दायित्व सपरिषद गवर्नर जनरल पर था।
अभिलेख न्यायालय मद्रास और मुंबई की प्रेसीडेंसियों में आबादी निरंतर बढ़ रही थी। लेकिन उस के अनुरूप न्यायिक व्यवस्था का विकास नहीं हो पा रहा था। वहाँ अभी
संशोधन अधिनियम-1781 से रेगुलेटिंग एक्ट से उत्पन्न सु्प्रीम कोर्ट और गवर्नर जनरल परिषद के बीच क्षेत्राधिकार विवाद तो हल कर लिया गया था। इस से कंपनी की शक्तियों