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बच्चों की अभिरक्षा के विवादों में उन का हित सर्वोपरि बिन्दु है

समस्या-

क हिन्दू महिला के एक पुत्र 9 साल का व एक पुत्री 12 साल की है उसका पति से तलाक हो गया, वह स्त्री-धन भी साथ ले गई लेकिन वह दोनों संतानों को उसके पति की कस्टडी में देकर गयी।  तलाक के दो माह बाद उसके पति की मृत्यु हो गयी।  दोनों बच्चे दादा दादी की परवरिश में हैं, अच्छे स्कूल में इंग्लिश मीडियम में शिक्षा क्लास 3 और क्लास 7 में प्राप्त कर रहे हैं।  अब उस महिला ने अपने दोनों बच्चों को पाने के लिए कोर्ट में केस दायर कर दिया है और सहायता चाही है कि दोनों बच्चों को मेरी अभिरक्षा में दिया जाये, दादा दादी बुजुर्ग हैं अनपढ़ हैं।  वैसे तो वह महिला के पास आय कोई साधन नहीं है फिर भी वकीलों की सलाह के कारण उसने प्राइवेट स्कूल में सर्विस करने का सर्टिफिकेट और ट्यूशन से आय का साधन बताया है और पिता के मकान में रहना बताया है।  बच्चों की पैतृक सम्पत्ति तो यथावत है क्योंकि अभी दोनों बच्चे नाबालिग हैं जिस पर उनके स्वत्व सुरक्षित हैं और परिवार की संयुक्त सम्पत्ति है।  लेकिन बच्चो की अभिरक्षा प्राप्त कर उसके साथ उन बच्चों की सम्पत्ति हथिया लेना उसका उद्देश्य है।  वास्तव में वह तलाक के बाद वह किसी और से शादी करना चाहती थी।  लेकिन इस बात को कोर्ट में सिद्ध नहीं किया जा सकता।  यदि बच्चों और उनकी सम्पत्ति ले कर वह किसी और से शादी कर ले तो इन बच्चों का भविष्य क्या होगा?  यदि वास्तव में वह बच्चों की हितैषी होती तो तलाक के समय बच्चे मात्र 3 और 6 साल के थे तो उस में उन के प्रति ममत्व क्यों नहीं जागा? और अब क्यों जाग उठा है? क्या जब तलाक लिया था तब उसने बच्चों को अपने साथ रखने में असमर्थता होना पाया और अब बच्चे पाना चाहती है?  जब कि वह इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से जानती थी कि इन बच्चों को मात्र उनके दादा दादी ही पालन करेंगे, न कि उनके पिता।  क्या हिन्दू तलाकशुदा महिला यदि तलाक के बाद किसी से शादी नहीं करती है और उसके मायके बैठी रहती है तो उस का उसके मृत पति की सम्पत्ति में स्वत्व होगा या नहीं?  क्या उसके पति की म्रत्यु के बाद वह संतान को पाने का अधिकार रखती है?

-राकेश अरोड़ा, जावरा, मध्यप्रदेश

समाधान-

माता-पिता के तलाक के समय बच्चों की उम्र और उन की वर्तमान उम्र में छह वर्ष का अंतर है इस का सीधा अर्थ यह है कि पिछले छह वर्ष से बच्चे अपने दादा-दादी के साथ निवास कर रहे हैं जहाँ उन्हें पर्याप्त और अच्छा संरक्षण प्राप्त हो रहा है उन के संरक्षण में बच्चों के विकास की अच्छी संभावना है।  छह वर्ष से माता से दूर रहने पर बच्चे भी अब शायद ही माता के साथ जा कर रहने की इच्छा रखते हों।  ये दो तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, जिन के आधार पर बच्चों की अभिरक्षा दादा-दादी के पास बने रहने का निर्णय न्यायालय से प्राप्त किया जा सकता है।

प के द्वारा कुछ प्रश्न और तथ्य उठाए गए हैं।  “यदि बच्चों और उनकी सम्पत्ति ले कर वह किसी और से शादी कर ले तो इन बच्चों का भविष्य क्या होगा?  यदि वास्तव में वह बच्चों की हितैषी होती तो तलाक के समय बच्चे मात्र 3 और 6 साल के थे तो उस में उन के प्रति ममत्व क्यों नहीं जागा? और अब क्यों जाग उठा है? क्या जब तलाक लिया था तब उसने बच्चों को अपने साथ रखने में असमर्थता होना पाया और अब बच्चे पाना चाहती है?  जब कि वह इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से जानती थी कि इन बच्चों को मात्र उनके दादा दादी ही पालन करेंगे, न कि उनके पिता।” इन सब प्रश्नों को दादा-दादी के बयान व अन्य साक्ष्य के माध्यम से न्यायालय के रिकार्ड पर लाना होगा।  इस का लाभ दादा-दादी को बच्चों की अभिरक्षा बनाए रखने में मददगार सिद्ध होगा।  प्राइवेट स्कूल व ट्यूशन के जो दस्तावेज माता ने प्रस्तुत किए हैं उन्हें स्कूल संचालक और ट्यूशन के दस्तावेज निष्पादित करने वाले व्यक्तियों के बयान न्यायालय के समक्ष कराए बिना उन्हें साबित नहीं किया जा सकता।  आप उन्हें गलत साबित करने के लिए स्कूल से स्कूल का रिकार्ड जिस में नियुक्ति पत्र, वेतन पंजिका न्यायालय से मंगवा सकते हैं।  इस के अतिरिक्त उसी स्कूल में काम करने वाले किसी व्यक्ति के तथा जहाँ बच्चों की माता रहती है उस मुहल्ले से किसी व्यक्ति के बयान कराए जा सकते हैं। जो कोई भी वकील इस मुकदमे को लड़ रहा है उसे इस मामले में अतिरिक्त श्रम करना होगा।

भी हाल ही में एक मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया है, हालाँकि इस मामले में अभी अंतिम निर्णय पारित नहीं किया गया है लेकिन कुछ आदेश दिए गए हैं।  इस मामले में एक मुस्लिम लड़का अपने माता-पिता से बिछड़ गया था।  उसे एक हिन्दू व्यक्ति ने आश्रय दिया और बेटे की तरह पालने लगा।  उस का स्कूल में दाखिला कराया और उस ने उस का धर्म और नाम तक नहीं बदला।  कुछ वर्ष बाद बच्चे के पिता का देहान्त हो गया लेकिन माता को बच्चे का पता लगा और अब वह अपने बच्चे की अभिरक्षा प्राप्त करना चाहती है।  इस मामले में बच्चे ने कहा कि वह अपनी माता के पास न रह कर अपने पालक पिता के साथ रहना चाहता है।  सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी दी है कि ऐसी हालत में बच्चे का संरक्षण उस माता को क्यों दिया जाए जब कि बच्चे का संरक्षण अच्छी तरह हो रहा है, उस के धर्म को बदला नहीं गया है और बच्चे के खोने तक की रिपोर्ट पुलिस को नहीं कराई गई थी जिस से उसे तलाश किया जा सके।  हालाँकि इस मामले में अभी अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और सर्वोच्च न्यायालय ने महिला से उस की आय, उस के दायित्वों और स्कूल के खर्चों आदि के बारे में एक सप्ताह में शपथ प्रस्तुत करने को कहा है।  लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के विचारों से यह स्पष्ट है कि बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में निर्णय करने के लिए वह बच्चों के हितों और उन की इच्छा को सर्वोपरि स्थान दे रही है।  प्राकृतिक संरक्षक होने का इस मामले में उतना महत्व नहीं रह गया है।  एक-दो माह में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय इस मामले में हो जाएगा, उस पर आप को निगाह रखनी होगी।

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