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बिना सूचना के खाते में आयी पूरी सैलरी काट लेना बैंक की सेवा में त्रुटि है।

consumer protectionसमस्या-

प्रशान्त चौहान ने इन्दौर मध्यप्रदेश से पूछा है-

मैं रक्षा मन्त्रालय अधीनस्थ अर्ध-शासकीय निकाय में स्थायी कर्मचारी के रूप में कार्यरत होकर वेतनभोगी कर्मचारी हूँ। मेरे द्वारा एक राष्ट्रीयकृत जहाँ मेरा वेतन प्रतिमाह जमा होता है, उस बैंक से जून-2012 में रु.1,50,000/- का व्यक्तिगत ऋण 48 माह की समयावधि हेतु ग्राह्य किया गया था। तत्समय बैंक द्वारा की गणना अनुसार बैंक द्वारा मेरी EMI रु.3850/- निर्धारित की गई थी।  तदुपरांत से मेरे बचत खाते से उक्त ऋण-राशि की मासिक किश्त बिना किसी गैप/अन्तराल के नियमित रूप से लोन खाते में समायोजित होती रही है एवं समय-समय पर EMI के अतिरिक्त राशि भी मैंने सीधे अपने लोन खाते में जमा की है। विगत दिनांक 01-07-16 को बैंक के मोबाइल से आये मेसेज से ज्ञात हुआ कि मेरा वेतन (लगभग-21,100/- रु.) बैंक में मेरे बचत खाते में जमा होते ही सीधे मेरे लोन खाते में समायोजित कर लिया गया है एवं इसके उपरांत 5000/- का डेबिट बेलेंस हो गया है। याने कुल 26,000/- कि राशि एक मुश्त बैंक द्वारा बिना किसी नोटिस/ सूचना के मेरे बचत खाते से लोन खाते में समायोजित कर ली गई। बैंक में अधिकारियों से चर्चा पश्चात बताया गया कि बीता माह आपकी लोन अवधि का अंतिम माह था एवं लोन ग्राह्य समय से आज तक ब्याज के उतार चडाव इत्यादि से जो राशि का फर्क है वो कम्प्यूटर ने अपने आप काट लिया है। चूँकि मैं एक वेतन भोगी कर्मचारी हूँ, एवं उक्त कार्यवाही से मेरे सामने अपने परिवार सहित सम्पूर्ण माह के निर्वाह का प्रश्न उत्पन्न हो गया है, एवं मानसिक रूप से व्यथित हूँ। अतः आपसे स-निवेदन पूछना चाहूँगा कि क्या बैंक का लोन वसूली का उक्त तरीका सही है?  क्या एक वेतनभोगी कर्मचारी का पूरा वेतन इस प्रकार से लोन खाते में समायोजित किया जा सकता है? जबकि उक्त सम्बन्ध में मुझे कोई पूर्व-सूचना नहीं दी गई।  यदि समय पर मेरा लोन चुकता नहीं हो रहा था तो ये राशि बीच अवधि से ही मेरी मासिक किश्त में वृद्धि कर के भी वसूली की जा सकती थी? इस प्रकार की घटना मेरे अन्य साथी कर्मचारियों के साथ भी हो चुकी है, एवं सभी मानसिक आर्थिक रूप से आहत हो चुके हैं। कृपया मार्गदर्शन देवें कि चूँकि मैं उक्त बैंक का ऋणी होकर आभारी भी हूँ कि तत्समय बैंक ने मुझे ऋण प्रदाय कर अनुग्रहित किया, तो इस स्थिति में भी क्या मुझे मेरे मौलिक एवं मानवीय अधिकारों के तहत उक्त सम्बन्ध में बैंक प्रबंधन को अपनी आपत्ति दर्ज कराने, शिकायत  अथवा अन्य विधिक कार्यवाही सम्पादित कर सकता हूँ अथवा नहीं?

समाधान-

ब से पहले तो आप बैंक के आभारी होना बन्द कीजिए। बैंक ने ऋण दे कर आप पर कोई अनुग्रह नहीं किया था। ऋण देना बैंक का धंधा है उसी से बैंक के मुनाफे निकलते हैं। वे ऋण दे कर व्यवसाय कर रहे हैं किसी पर कोई कृपा नहीं कर रहे।

बैंक ने जब ईएमआई तय कर रखी थी तो ईएमाई से अधिक राशि बैंक किसी भी सूरत में आप के बचत खाते से बिना सूचना दिए नहीं काट सकता था। बैंक ने आप की पूरी सैलरी काट कर आप को शारीरिक मानसिक पीड़ा पहुँचाई है। बैंक आप को सेवाएँ प्रदान करता है इस कारण उस ने सेवा में त्रुटि की है। यह बैंक का अनुचित व्यवसायिक कृत्य भी है। आप को पूरी सैलरी कटने से जो पीड़ा हुई है उस की कीमत लाखों से कम नहीं है और आप इस शारीरिक मानसिक पीड़ा के लिए बैंक से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

आप को बैंक को नोटिस दे कर इस मानसिक शारीरिक पीड़ा के लिए क्षतिपूर्ति की मांग करनी चाहिए, उस के लिए नोटिस देना चाहिए और बैंक द्वारा सुनवाई न किए जाने पर आप को उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए।

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