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विश्वविद्यालय व बोर्ड सेवा प्रदाता और विद्यार्थी उपभोक्ता नहीं।
समस्या-
अतुल कुमार पाठक ने ४, अश्वनीपुरम कालोनी, फैजाबाद, उ०प्र० से पूछा है –
मैंने वर्ष २०१२ में राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी में पंचवर्षीय विधि स्नातक पाठ्यक्रम में एडमिशन लिया था। यूनिवर्सिटी द्वारा सेमेस्टर एग्जाम हमेशा विलम्ब से सम्पादित कराया गया जिसके कारण आज २०१८ तक (६ वर्षों में) भी मेरा कोर्स पूरा नही हुआ। पांच वर्ष का कोर्स पूरा होने में लगभग ७ वर्ष का समय लग जायेगा। हम छात्रों द्वारा लखनऊ उच्च न्यायलय से डायरेक्शन भी कराया जा चुका है समय से परीक्षा करने के लिए। जिसका कोई फायदा नही मिला। क्या यूनिवर्सिटी से क्षतिपूर्ति प्राप्त किया जा सकता है? और कैसे? यदि कोई केस लॉ हो तो अवश्य बतायें।
समाधान-
विश्वविद्यालय एक विधि द्वारा स्थापित निकाय है जो किसी विशिष्ठ पाठ्यक्रम में अध्ययन की पूर्णता हो जाने पर विद्यार्थी की जाँच कर के तय करता है कि उस ने यह पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूर्ण किया है या नहीं। यह विश्वविद्यालय का वैधानिक दायित्व है। परीक्षा आयोजित करने में देरी के कारण उस के विरुद्ध केवल उपभोक्ता कानून के अंतर्गत ही क्षतिपूर्ति प्राप्त किए जाने की संभावना बनती थी। किन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार स्कूल एक्जामिनेशन बोर्ड बनाम सुरेश प्रसाद सिन्हा “(2009) 8 एससीसी 483” के प्रकरण में यह निर्धारित किया है कि बोर्ड व विश्वविद्यालय सेवा प्रदाता नहीं हैं और न ही विद्यार्थी एक उपभोक्ता है।
ऐसी स्थिति में वर्तमान में किसी भी विश्वविद्यालय से परीक्षाएं आयोजित करने व परिणाम प्रदान करने में हुई देरी के लिए कोई क्षतिपूर्ति प्राप्त करना संभव नहीं है। यदि कभी कानून में संशोधन कर के विश्वविद्यालयों को सेवा प्रदाता मान लिया जाए और विद्यार्थियों को उपभोक्ता मान लिया जाए तो इस तरह की देरी के लिए उन से क्षतिपूर्ति प्राप्त की जा सकती है। वर्तमान स्थिति में नहीं। कानून में संशोधन केवल विधानसभाएँ और संसद ही कर सकती हैं।
इधर जिस तरह से शिक्षा का बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ है, विश्वविद्यायों को स्वायत्त्त घोषित किया जा रहा है वैसे स्थिति में यह आवश्यक है कि इन के कार्यों को सेवा माना जाए और उन्हें उपभोक्ता कानून के दायरे में लाया जाए। इस के लिए विद्यार्थियों व अभिभावकों को सरकरों पर यह दबाव बनाना चाहिए कि वे कानूनों में पर्याप्त संशोधन कर के विश्वविद्यालयों, शिक्षा बोर्डों तथा विद्यालयों को उपभोक्ता कानून के दायरे में लाएँ।
राहत प्राप्त करनी है तो रिट याचिका तो करनी होगी।
समस्या-
राहुल कुमार प्रजापति ने चिल्काडांड बस्ती पोस्ट- शक्तिनगर, जिला- सोनभद्र, उत्तर प्रदेश से पूछा है-
एनटीपीसी लिमिटेड के सिंगरौली परियोजना की स्थापना के समय मेरे पिता श्री भोला पुत्र दलजीत के नाम से मकान व जमीन अधिगृहीत किया गया जिसके एवज मे पिता जी को नौकरी भी दी गयी लेकिन आवासीय प्लॉट नहीं मिला। प्रार्थी ने एनटीपीसी से प्लॉट मांगा और जिलाधिकारी से भी प्लॉट आवंटन के लिए आवेदन किया परंतु उप जिलाधिकारी द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 29/07/2016 को पारित आदेश का हवाला देकर कहा जा रहा है कि आप उच्च न्यायालय मे अपनी रिट दाखिल कर अनुतोष प्राप्त करें। प्रार्थी बहुत ही असहाय और आर्थिक स्थिति से कमजोर है जिस कारण उच्च न्यायालय मे अपनी पृथक रिट याचिका दाखिल नहीं कर सकता। कृपया समाधान बताएँ।.
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि उच्चतम न्यायालय का दिनांक 29-07.2016 का निर्णय या आदेश क्या है। फिर भी न्यायालय से बिना मांगे तो वह कोई राहत प्रदान नहीं करेगा। आप को किसी भी प्रकार से रिट याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष अवश्य प्रस्तुत करनी चाहिए।
आप की समस्या आर्थिक है तो रिट में कोई बड़ी शुल्क नहीं लगती। केवल खर्चा और वकील की फीस है। यदि आप एक कमजोर आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति हैं तो उच्च न्यायालय में स्थापित विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन दें। वे आप के वकील की फीस अदा कर देंगे और आप को मुकदमे का खर्च भी देंगे। कुछ तो आप भी खर्च कर ही सकते हैं। यह समझ लें कि आप को रिट करनी ही होगी उस के बिना आप को राहत नहीं मिल पाएगी।
अज्ञात वाहन से दुर्घटना होने पर मुआवजे की व्यवस्था – सोलेशियम फंड
सूरज कुमार ने मंडावा, जिला झुंझुनूं से पूछा है-
मेरे रिश्तेदार की अज्ञात वाहन से पिलानी में दुर्घटन हो कर मौके पर मृत्यु हो गई क्या ऐसी स्थिति में क्लेम मिल सकता है?
समाधान-
किसी भी अज्ञात वाहन से होने वाली दुर्घटना में मारे जाने वाले व्यक्ति के आश्रितों व गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को सहायता प्रदान करने के लिए मोटर वाहन अधिनियम 1988 के अन्तर्गत सोलेशियम फंड की व्यवस्था की गयी है। इस अधिनियम की धारा 161 से 163 तक में इस फंड की स्थापना और इस के अंतर्गत मुआवजा देने के उपबंध किए गए हैं। इस योजना के अंतर्गत मृतक के आश्रितों को 25 हजार रुपये तथा गम्भीर रूप से घायल व्यक्ति को 12,500 रुपये की क्षतिपूर्ति देने की व्यवस्था की गयी है।
यह मुआवजा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक जिले के कलेक्टर के कार्यालय में व्यवस्था है। वहाँ इस के लिए आवेदन प्राप्त किए जाते हैं। आवेदन के साथ प्रथम सूचना रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, चोट प्रतिवेदन, मर्ग सूचना, पंचनामा आदि दस्तावेजों की जरूरत होती है। सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ आवेदन करने पर मुआवजा प्राप्त हो सकता है।
एक क्षति के लिए दो बार क्षतिपूर्ति प्राप्त करना अनुचित ही नहीं अपराध भी है।
हरिओम सोनी ने कोटा, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरी वन विभाग में अनुकम्पा पर सरकारी नौकरी एल.डी.सी. के पद पर व जून २००४ में लगी। २००७ में मेरी दुर्घटना हुई। मेरा निजी चिकित्सालय में २६ दिवस तक ईलाज चला। २६ दिन के मेरे लगभग रुपये २०००००/- लगे। मैंने मोटर मालिक व ईन्श्योरेंस कम्पनी पर न्यायालय में केस किया। न्यायालय से मुझे रपये २५००००/- मिले। रुपये २०००००/- के बिल न्यायालय में लगे हैं। मुझे मेरे विभाग/ राज्य बीमा विभाग से रुपये २०००००/- के मेडिकल बिल की राशि मिल सकती है कया? यदि हाँ तो किस तरह?
समाधान-
आप का इलाज में 2 लाख रुपया खर्च हुआ। आप का इस खर्चे में आप को हुई अक्षमता और मानसिक व शारीरिक संताप को मिला कर 2.5 लाख रुपया मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरण ने आप को दिला दिया। जब अधिकरण से निर्णय हुआ तो उस ने आप को खर्चे के बिलों की राशि इसी कारण दिलाई कि आप ने सरकार, राज्य बीमा या अन्य किसी बीमा से यह राशि प्राप्त नहीं की। यदि आप ने प्राप्त कर ली होती तो न्यायालय आप को यह राशि नहीं दिला सकता था।
एक ही हानि को आप दो लोगों से या एक से अधिक बार वसूल नहीं कर सकते। यदि किसी भी तरीके से आप ऐसा करते हैं तो यह एक प्रकार का छल वह धोखाधड़ी होगी जो कि अपराध होगा। इस अपराध की सजा भी आप को मिल सकती है और साथ में नौकरी भी जा सकती है। यह लालच छोड़ें और एक बार जो क्षति आप को प्राप्त हो चुकी है उस के लिए दूसरा प्रयास न करें।
मोटर यान दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावे कहाँ प्रस्तुत किए जा सकते हैं?
अंश प्रताप ने उन्नाव, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरी टैक्सी से एक दुर्घटना हो गया था जिस में एक आदमी की मृत्यु हो गयी थी। उस के परिवार वालों ने क्षतिपूर्ति के लिए आवेदन दिल्ली में प्रस्तुत किया है जब कि मरने वाला और उस के क्लेम का दावा करने वाले और मैं सब एक ही शहर उन्नाव के हैं। वकील का कहना है कि दिल्ली में बीमा कंपनी का दफ्तर है इस लिए वहाँ मुकदमा बनता है। क्या दिल्ली में मुकदमा खारिज हो सकता है?
समाधान–
मोटर व्हीकल एक्ट ने मोटर यान दुर्घटना दावों के संबंध में यह प्रावधान दिया गया है कि क्षतिपूर्ति का दावा करने वाला व्यक्ति उस की इच्छा से तीन तरह के स्थानों पर स्थित मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरणों में से किसी एक में अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है। ये तीन स्थान निम्न प्रकार हैं-
- वहाँ जहाँ दुर्घटना घटित हुई हो;
- वहाँ जहाँ दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई हो; तथा
- जहाँ दावे के विरोधी पक्षकारों में से किसी एक का कार्यालय हो या जहाँ वह व्यापार करता हो।
इस तरह यदि दिल्ली में बीमा कंपनी का दफ्तर है तो वहाँ क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत किया जा सकता है और यह दावेदार पर निर्भर करता है कि वह उक्त स्थानों में से कहाँ अपना दावा प्रस्तुत करना चाहता है। आप के मामले में वकील की सलाह उचित है।
आप के पास यदि बीमा है तो आप बीमा कंपनी को लिख कर दे सकते हैं कि आप बीमा धारी हैं और इस बीमा क्लेम को लड़ने का दायित्व आप का है। बीमा कंपनी आप की ओर से मुकदमा लड़ेगी यदि आप ने बीमा पालिसी की किसी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है। यदि बीमा कंपनी कहती है कि आप ने बीमा प्रमाण पत्र की किसी शर्त का उल्लंघन किया है और आप समझते हैं कि ऐसा हुआ है तो आप को फिर अपना वकील कर के अपना पक्ष अधिकरण के समक्ष रखना चाहिए।
दुर्भावनापूर्ण अभियोजन व मानहानि के लिए क्षतिपूर्ति हेतु दीवानी वाद व अपराधिक अभियोजन दोनों किए जा सकते हैं।
सुनील कुमार ने भोपाल, मध्यप्रदेश समस्या भेजी है कि-
मेरे भाई और उसकी पत्नी के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं होने की वजह से मेरे भाई ने उसे तलाक का नोटिस दिया और 2002 में न्यायालय में वाद दायर कर दिया। |उस के बाद मेरे भाई की पत्नी ने हमारे पूरे परिवार के खिलाफ दहेज़ प्रताड़ना और मारपीट का झूठा मुकदमा न्यायालय में दायर कर दिया, इसी दौरान उस ने अपने पीहर पक्ष के लोगो के साथ मिलकर हमें कई बार पुलिस की प्रताड़ना भी दी ताकि मेरा भाई तलाक की अर्जी वापस ले ले। लेकिन मेरे भाई ने ऐसा नहीं किया; और अब 2015 में दहेज़ के झूठे मामले में स्थानीय न्यायालय का फैसला आ गया जिस में पूरे परिवार को बरी कर दिया गया और माननीय न्यायालय ने उसे झूठा मुकदमा करार दिया। अब मैं आपसे सलाह लेना चाहता हूँ कि क्या मैं अपने भाई की पत्नी और उसके पीहर पक्ष वालों के खिलाफ मानहानि का दावा कर सकता हूँ। क्योंकि पूरे सात वर्ष तक हम पूरे परिवार वाले लगातार परेशान रहे, दावे की क्या प्रक्रिया होगी, क्योंकि मेरे भाई की पत्नी ने सारा झूठा मुकदमा और पुलिस प्रताड़ना अपने पीहर वालो की मदद और मिलीभगत से किया था?
समाधान-
जब यह प्रमाणित हो गया है कि मुकदमा झूठा था तो आप अब दो काम कर सकते हैं। एक तो आप और वे सभी लोग जिन्हें इस मुकदमे में अभियुक्त बनाया गया था, दुर्भावना पूर्ण अभियोजन तथा मानहानि के लिए क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं। इस के लिए आप को न्यायालय में साबित करना होगा कि 1. आप को मिथ्या रूप से अभियोजित किया गया था, 2. उक्त अभियोजन का समापन होने पर आप को दोष मुक्त कर दिया गया है, 3. अभियोजन बिना किसी उचित और उपयुक्त कारण के किया गया था, 4. अभियोजन करने में दुर्भावना सम्मिलित थी और 5. आप को उक्त अभियोजन से आर्थिक तथा सम्मान की हानि हुई है। आप को उक्त मुकदमे की प्रथम सूचना रिपोर्ट, आरोप पत्र तथा निर्णय की प्रमाणित प्रतियों की आवश्यकता होगी इन की दो दो प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त कर लें। जितनी राशि की क्षतिपूर्ति के लिए आप दावा प्रस्तुत करेंगे उस पर आप को न्यायालय शुल्क नियम के अनुसार देनी होगी। प्रक्रिया दीवानी होगी और वैसे ही चलेगी जैसे क्षतिपूर्ति के लिए दीवानी वाद की होती है।
इस के अतिरिक्त आप उक्त दस्तावेजों के साथ साथ मिथ्या अभियोजन व मानहानि के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 211 व 500 में परिवाद मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। इस पर प्रसंज्ञान लेने और अपराधिक मुकदमे की तरह प्रक्रिया पूर्ण हो कर न्यायालय निर्णय प्रदान करेगा। इस में मिथ्या अभियोजन करने वाले दो वर्ष तक के कारावास और अर्थदंड की सजा हो सकती है। आप को इन दोनों ही कार्यवाहियाँ करने के लिए किसी स्थानीय वकील की सेवाएँ प्राप्त करना होगा।
कालेज की सेवा में कमी के लिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करें।
सौरभ ने प्रतापगढ़, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मैं ने 2007-08 में भानपुरा एम.एड. कालेज में एम.एड. हेतु प्रवेश लिया था। प्रवेश के समय कालेज ने मुझे एन.सी.आर.टी. से मान्यता प्राप्त होने के प्रमाण दिखाये थे। मैं ने कुल 1 लाख रुपये फीस दी। जिस में से रु. 25000/- की उन्होंने रसीद दी। शेष की कच्ची रसीद मेरे पास है। 2009 में परीक्षा हुई किन्तु आज तक परिणाम नहीं आया। बाद में पता चला उन को विश्वविद्यालय से मान्यता नहीं हुई थी। उन्होने कोर्ट के द्वारा परीक्षा करवाई थी। अब कोर्ट में मामला है। कालेज बनाम वि.वि.। मैं ने 2013 में कालेज को नोटिस भी भेजा किन्तु कोई जवाब नहीं आया। अब मैं कालेज के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई कर सकता हूँ क्यों कि कालेज ने धोखे में रख कर मेरे 5 वर्ष एवम् 1 लाख रुपये से लूटा है तथा मानसिक रुप से भी में परेशान हुआ हूँ।
समाधान-
आप कालेज के उपभोक्ता हैं। आप की परीक्षा का परिणाम का कालेज की कमी से रुका है जिस से आप को असुविधा हुई है। वैसी स्थिति में कालेज को न केवल आप से प्राप्त की गई समस्त शुल्क लौटाना चाहिए बल्कि उस राशि पर ब्याज भी देना चाहिए।
इस के अतिरिक्त आप को शारीरिक व मानसिक संताप भी सहन करना पड़ा है और कालेज की कमी के कारण आप का बहुमूल्य समय भी नष्ट हुआ है। इस के लिए भी पर्याप्त क्षतिपूर्ति कालेज को करना चाहिए।
इन सब क्षतियों की पूर्ति मूल्य में संभव नहीं है। इस कारण मैं मानता हूँ कि इस मामले में आप को कुल मिला कर कम से कम 20 लाख रुपए क्षतिपूर्ति के रूप में कालेज से मिलना चाहिए। इस राशि में कमी तभी हो सकती है जब कि कालेज किसी तरह आप को एमएड की डिग्री दिलाने में सफल हो जाए।
आप को इस के लिए जिला उपभोक्ता प्रतितोष मंच के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए।
बिना बीमा के मोटर वाहन चलाना अपराध है, परिणाम भुगतने होंगे।
विजय ने दिल्लीसे पूछा है-
मेरे उपर झूठा आरोप मोटर एक्सिडेंट का लगाया गया है।मैं ट्रैक्टर चला रहा थाकि अचानक शिकायतकर्ता का पैर मेरे पिछले पहिए पर उसके अचानक रुकने से आ गया।
पुलिस ने मेरा ट्रैक्टर जब्त किया और उसके बाद जमानत देने पर छोड़ दिया ट्रैक्टर का बीमा भी नहीं है। शिकायतकर्ता ने अपना डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट भी कोर्ट में लगाया है राशि सैटलमैंट के तौर पर बहुत ज़्यादा माँग रहा है। मैं क्या करूँ?
समाधान-
सब से पहली गलती तो आपकी यह है कि आप ने ट्रेक्टर का बीमा नहीं करवा रखा है। बिना बीमा के कोई भी मोटर वाहन सार्वजनिक स्थल पर चलाना गैरकानूनी है और अपराध भी है। पुलिस ने आप के विरुद्ध जो अपराधिक मुकदमा बनाया है उस में बिना बीमा के ट्रेक्टर चलाने का भी आरोप आप पर लगाया होगा। क्यों कि गलती आपकी है इस कारण से उस के परिणाम तो आप को भुगतने ही होंगे।
डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट चोटग्रस्त व्यक्ति ने लगाया है। तो आप को नोफाल्ट के आधार पर उसे 25000/- रुपए की क्षतिपूर्ति तो देनी ही होगी। उस से आप बच नहीं सकते। क्यों कि इस में यह नहीं देखा जाता है कि वाहन चालक की कोई गलती है या नहीं। केवल वाहन दुर्घटना में चोट लगना पर्याप्त है।
इस के आगे यदि आप मोटर यान दुर्घटना दावा अधिकरण में अपनी साक्ष्य से यह साबित कर देते हैं कि दुर्घटना में आप का कोई दोष नहीं था तो आप बाद के दायित्व से बच सकते हैं। यदि आप खुद को निर्दोष और चोटग्रस्त व्यक्ति का दोष साबित नहीं कर सके तो आप को चोट की प्रकृति के आधार पर और क्षतिपूर्ति देनी पड़ सकती है। यदि आप को लगता है कि समझौते के माध्यम से आप कम राशि दे कर मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इस के लिए आप न्यायालय में लगने वाली लोक अदालत में अपने मामले के निपटारे के लिए आवेदन दे सकते हैं।
द्वेषपूर्ण अभियोजन का वाद कब संस्थित करें?
अर्जुन ने बालाघाट मध्यप्रदेश से पूछा है-
एक नाबालिग लड़की के पापा और मामा ने मिल कर मुझ पर बलात्कार का आरोपलगायाजो झूठा था। कोर्ट से उस का निर्णय हो चुका है। दिनांक 20-02-2014 को मुझे दोषमुक्त कर दिया गया है। क्या मैं मानहानि केस केद्वारा उनसे हर्जाने की राशी मांग सकता हूँ?
समाधान-
आप के विरुद्ध जिन लोगों ने पुलिस को शिकायत दर्ज कराई थी आप उन के विरुद्ध द्वेषपूर्ण अभियोजन का वाद संस्थित कर सकते हैं। लेकिन किसी भी अपराधिक मामले में दोषमुक्त हो जाना मात्र पर्याप्त नहीं है। आप को अपना मामला साबित करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा-
1. कि लड़की के पापा और मामा ने पुलिस को शिकायत दर्ज कराई हो।
2. कि आप के विरुद्ध शिकायत समाप्त हो चुकी हो।
3. कि शिकायत बिना किसी औचित्य और उचित कारण के की गई हो।
4. कि शिकायतकर्ताओं ने शिकायत किसी दुर्भावना और द्वेष के कारण की हो जो तथ्यात्मक रूप से भी मिथ्या रही हो।
5. कि इस से आप की प्रतिष्ठा, शारीरिक सुरक्षा, सांपत्तिक सुरक्षा को हानि हुई हो।
यदि ये पाँच बातें आप के मामले में हैं तो आप क्षतिपूर्ति चाहने हेतु द्वेषपूर्ण अभियोजन का वाद संस्थित कर सकते हैं।
इस के अलावा आप चाहें तो भारतीय दंड संहिता की धारा 211 व धारा 500 के अन्तर्गत अपराधिक परिवाद भी उक्त व्यक्तियों के विरुद्ध संस्थित कर सकते हैं जिस में उन्हें दंडित किया जा सकता है।
बीमा कंपनी द्वारा दावा अस्वीकार करने पर उपभोक्ता न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करें।
देवेन्द्र ने अमृतसर, पंजाब से पूछा है-
मैं ने अगस्त 2012 में आईओबी बैंक से कम्यूटर का शोरूम बनाने के लिए 11 लाख रुपए का ऋण लिया था। बैंक ने मेरे घर को सीक्योरिटी में रख कर मुझ 11 लाख की लिमिट दी थी। अप्रेल 2013 में मेरी दुकान में चोरी हो गई। मेरा सारा सामान चोरी हो गया। बैंक ने स्टाक का बीमा करवा रखा था लेकिन बीमा कंपनी ने मेरा दावा अस्वीकार कर दिया। मेरे पास बैंक का ऋण चुकाने के लिए कुछ भी नहीं है। मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
बैंक तो अपना ऋण आप से वसूल करेगा क्यों कि उस ने ऋण आप को दिया था। वह सीक्योरिटी में रखे मकान को कुर्क कर के ऐसा कर सकता है।
मूल समस्या बीमा कंपनी द्वारा आप का दावा अस्वीकार करना है। बीमा कंपनी ने आप का दावा किस आधार पर खारिज किया है यह जानने की कोशिश करें। यदि वह आधार गलत है तो आप बीमा कंपनी को नोटिस दे कर उपभोक्ता न्यायालय में अपना परिवाद बीमा कंपनी के विरुद्ध प्रस्तुत करें। चूंकि बीमा बैंक द्वारा कराया गया था, इस कारण आप इस परिवाद में बैंक को भी प्रतिपक्षी पक्षकार बना सकते हैं और उपभोक्ता न्यायालय से यह निवेदन कर सकते हैं कि जब तक आप के परिवाद का निर्णय न हो जाए बैंक आप से ऋण की वसूली को स्थगित रखे।
इस परिवाद को करने के लिए आप को किसी अच्छे वकील की मदद लेनी होगी जो कि बीमा कंपनी से इस परिवाद के माध्यम से चोरी से हुई आप की क्षतियों की क्षतिपूर्ति दिलवा सके।