DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

औद्योगिक विवाद अधिनियम में किए जाने वाले संशोधनों के परिणाम क्या होंगे?

द्योगिक विवाद अधिनियम में फिर से एक संशोधन प्रस्तावित है। बिल को संसद में प्रस्तुत किया जा चुका है और इसे राज्य सभा ने पारित भी कर दिया है। इस संशोधन में जहाँ कुछ अच्छे बदलाव हैं वहीं कुछ खतरनाक  और घातक भी हैं। आइए इन संशोधनों से होने वाले बदलावों पर एक नजर डालें ……

  • इस कानून में कुछ औद्योगिक संस्थानों के मामले में केन्द्र सरकार को और अन्य के मामले में राज्य सरकारों को उचित सरकार माना जाता था। जिस औद्योगिक संस्थान के मामले में जो उचित सरकार हो वही इस अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती है। इस संशोधन से ऐसी कंपनियाँ जिन में 50 प्रतिशत या उस से अधिक शेयर केंद्र सरकार के हों, संसद द्वारा बनाए गए कानून के अंतर्गत स्थापित कारपोरेशन और सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय संस्थान, केन्द्र सरकार के स्वामित्व की और उस के द्वारा नियंत्रित कंपनी की सबसिडरी कंपनियों के लिए भी अब केद्र सरकार को उचित सरकार घोषित किया जा रहा है। अब इन के संबंध में कार्यवाही करने का अधिकार केंद्र सरकार को ही होगा।

  • पहले स्थिति यह थी कि किसी संस्थान के मामले में केंद्र सरकार उचित सरकार होती थी लेकिन उसी संस्थान में काम कर रहे ठेकेदारों और उन के श्रमिकों के संबंध में उचित सरकार राज्य की होती थी। अब ऐसा नहीं रहेगा। संस्थान के संबंध में जो भी उचित सरकार होगी वही ठेकेदार और उस के श्रमिकों के संबंध में होगी। 
  • अधिनियम की धारा 2 एस में कर्मकार (workman) शब्द की परिभाषा में अब तक 1600 रुपए से अधिक वेतन प्राप्त करने वाले सुपरवाइजर का कार्य करने वाले व्यक्ति सम्मिलित नहीं थे लेकिन अब 10, 000 रुपए तक वेतन प्राप्त करने वाले सुपरवाइजर कर्मकार माने जाएंगे।
  • कोई भी औद्योगिक विवाद पहले सरकार के श्रम विभाग के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, श्रम विभाग के समझौता अधिकारियों द्वारा उस में समझौते के प्रयास किए जाते हैं। इन प्रयासों के असफल होने पर रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की जाती है और सरकार द्वारा वह विवाद श्रम न्यायालय या औद्योगिक न्यायाधिकरण को प्रेषित करने पर ही उस विवाद का न्याय निर्णयन आरंभ होता है। इस संशोधन बिल में यह प्रावधान किया गया है कि सेवा समाप्ति, सेवाच्युति, सामान्य सेवामुक्ति और छंटनी  (termination, dismissal, discharge & retrenchment) के मामलों में कर्मकार संमझौता अधिकारी के यहाँ अपनी शिकायत प्रस्तुत करने के उपरांत 45 दिन में समाधान न होने पर सीधे ही औद्योगिक न्यायाधिकरण में अपना मामला ले जा सकेगा। अब ऐसे कर्मकार को अपना मामला न्यायालय तक ले जाने के लिए सरकार से निर्देश कराने की आवश्यकता नहीं होगी। 
  • इस संशोधन से उपबंधों का एक नया अध्याय अधिनियम में जोड़ा जा रहा है जिस के अनुसार 20 या उस से अधिक कामगारों वाले औद्योगिक संस्थान में कोई भी विवाद उत्पन्न होने पर उस के समाधान के लिए विवाद समाधान समिति का गठन किया जाएगा। लेकिन यह समिति कामगार के औद्योगिक विवाद अधिनियम के उपायों को प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं होगी।
  • औद्योगिक न्यायाधिकरणों के पीठासीन अधिकारी के पद पर अब तक केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखने वाले अथवा जिला या अपर जिला न्यायाधीश के पद पर तीन वर्ष तक कार्य करने की योग्यता रखने वाले व्यक्तियों को नियुक्त किया जा सकता है। श्र
5 Comments