कोई परिवार, जातीय समूह या कबीला किसी व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता।
|समस्या-
पंचरत्न नेगी ने जगदलपुर, छत्तीसगढ़ से पूछा है-
अनुसूचित जनजाति समाज को अपने जनजाति परिवार के लड़के लड़कियों का विवाह किसी अन्य जाति के लड़के लड़कियों से होने से रोकने का अधिकार है कि नहीं? यदि रोकते हैं तो जनजाति समाज पर कोई कानूनी कार्रवाई हो सकती है कि नहीं?
समाधान-
आपके द्वारा उठाया गया यह प्रश्न बहुत बार उठाया गया है, लगातार उठाया जाता रहा है और शायद भविष्य में भी उठाया जाता रहे। लेकिन हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने “शक्तिवाहिनी बनाम भारत संघ” के मुकदमे में 18 मार्च 2018 को दिए गए निर्णय से इस प्रश्न को अन्तिम रूप से निर्णीत कर दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि जब दो वयस्क एक दूसरे से विवाह करने के लिए सहमत हो जाएँ तो परिवार या समुदाय या जातीय समूह की सहमति का कोई अर्थ नहीं जाता है। जातीय पंचायतों या किसी भी अन्य समूह द्वारा शादी करने की सहमति वाले वयस्कों को उनके जीवन और संपत्ति के अधिकारों से बेदखल करना या रोकना पूरी तरह से “अवैध” है। जब दो वयस्क एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनकी पसंद की अभिव्यक्ति होती है। जिसे संविधान की धारा 19 और 21 के तहत मान्यता प्राप्त है। किसी भी व्यक्ति द्वारा अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार संविधान प्रदत्त है, उसे जातीय गौरव के नाम पर व्यक्ति से नहीं छीना जा सकता। इस जातीय सम्मान के नाम पर किसी भी तरह की यातना या पीड़ा या दुर्व्यहार, किसी भी समूह द्वारा किसी व्यक्ति की प्रेम और विवाह से संबंधित पसंद को नकारना अवैध है और इसकी एक पल के लिए भी अनुमति नहीं दी जा सकती।
इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि वयस्कों द्वारा शादी करने के लिए परिवार, समुदाय या कबीले की सहमति अनावश्यक है। जब दो वयस्क अपनी इच्छा से विवाह करते हैं तो वे अपना रास्ता चुनते हैं; वे अपने रिश्ते को समाहित करते हैं; उन्हें लगता है कि यह उनका लक्ष्य है और उन्हें ऐसा करने का अधिकार है। इस अधिकार का उल्लंघन एक संवैधानिक उल्लंघन है। जीवन-साथी चुनने का अधिकार संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है “इस संवैधानिक अधिकार को संरक्षित करने की जरूरत है और इस अधिकार को वर्ग सम्मान या समूह सोच की अवधारणा से नष्ट नहीं किया जा सकता। जातीय सम्मान की जो धारणाएँ इसे रोकती हैं वे वैध नहीं हैं और आपराधिक कानून के तहत अपराध के रूप में दंडनीय है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों के प्रसार के लिए प्रतिबद्ध हैं। कानून में “सपिंड और “सगौत्र” विवाहों की मंजूरी नहीं है, लेकिन इस प्रतिबन्ध के बाहर यदि दो व्यक्ति विवाह करना चाहते हैं तो उन्हें नहीं रोका जा सकता। उन्हें रोकने के लिए कोई गतिविधि की जाती है तो वह सब अवैध है और दण्डनीय है।
इस तरह कोई भी परिवार, जनजातीय समूह, कबीला,अन्य व्यक्ति समूह किसी लड़की लड़के को उनकी इच्छा के अनुसार विवाह करने से नहीं रोक सकता। यदि वे रोकने के लिए प्रयास करते हैं तो यह दण्डनीय है और उनके विरुद्ध कार्यवाही करना राज्य का कर्तव्य है जिसमें न्यायालय, पुलिस और राजकीय प्रशासन शामिल हैं।